डर से मुक्त होना जरूरी

हमें डर लगता है, केवल बाहरी कारणों से ही नहीं, अपने अंदर से भी. नौकरी-धंधा छूट जाने का डर, भोजन-पानी से महरूम रहने का डर, अपने पद को गंवा देने का डर, अपने से ऊंचे पद पर बैठे अफसरों के वजह-बेवजह फटकारे-लताड़े जाने का डर. यानी तरह-तरह के बाहरी डर बने ही रहते हैं. इसी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2016 6:59 AM

हमें डर लगता है, केवल बाहरी कारणों से ही नहीं, अपने अंदर से भी. नौकरी-धंधा छूट जाने का डर, भोजन-पानी से महरूम रहने का डर, अपने पद को गंवा देने का डर, अपने से ऊंचे पद पर बैठे अफसरों के वजह-बेवजह फटकारे-लताड़े जाने का डर. यानी तरह-तरह के बाहरी डर बने ही रहते हैं.

इसी तरह हम अंदर से भी डरे रहते हैं- हमेशा ना रह पाने या मर जाने का डर, सफल न हो पाने का डर, मौत का डर, अकेलेपन का डर, कोई प्यार नहीं करता इसका डर, बहुत ही ऊब भरी वही रोजाना की घिसी-पिटी रूटीन जिंदगी का डर आदि. यह बात साफ है कि आत्मरक्षा अपनी देह की रक्षा के लिए की गयी प्रतिक्रिया डर नहीं होती. रोटी, कपड़ा और मकान यह हम सभी की जरूरत है, केवल अमीर या बड़े लोगों की ही नहीं. यह धरती पर रहनेवाले प्रत्येक मनुष्य की जरूरत है.

यह डर तो बुद्धिसंगत हैं. समस्या वे डर हैं, जो इनसे इतर होते हैं, दिमागी फितूर होते हैं. रोटी, कपड़ा और मकान प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकता है, लेकिन इसका हल राजनेताओं के पास नहीं. राजनेताओं ने सारी दुनिया को देशों में विभाजित कर दिया है. इन देशों की अपनी अपनी प्रभुता संपन्न सरकारें हैं, अपनी सेना होती है और राष्ट्रवाद जैसी तमाम तरह की जहरीली मूर्खताएं होती हैं.

राजनीतिक समस्या केवल एक है और वह है मनुष्य और मनुष्य के बीच में एकता लाना और वह तक नहीं लायी जा सकती, जब तक आप अपने राष्ट्रीय या जातीय विभाजन से चिपके हुए हैं. अगर आपका घर जल रहा हो, तो आप यह नहीं पूछते कि पानी कौन ला रहा है? जिस व्यक्ति ने घर में आग लगायी, उसके बालों का रंग भी नहीं पूछते. जैसे धर्मों ने मनुष्यों को विभाजित कर दिया है, वैसे ही राष्ट्रीयता ने भी मनुष्यों को बांट दिया है.

राष्ट्रीयताओं और धार्मिक विश्वासों ने मनुष्य को मनुष्य के खिलाफ खड़ा कर दिया है. लेकिन यह कोई भी देख सकता है कि ऐसा क्यों हो पा रहा है, वह इसलिए कि हम कूपमंडूक बने रहना चाहते हैं. इसलिए मनुष्य को इन डरों से मुक्त होना होगा, परंतु यह बहुत ही दुष्कर कार्यों में से एक है. हम जान ही नहीं पाते कि हम डरे हुए हैं, ना ही यह जानते हैं कि हम किस बात से डरें हैं. – जे कृष्णमूर्ति

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