हंसना एक औषधि है
परमात्मा ने मनुष्य को हंसने की शक्ति दी है. इसके पीछे कारण है. चूंकि मनुष्य अपनी विकृतियों के जाल में बुरी तरह फंसा रहनेवाला प्राणी है, इसलिए उसे हंसी की जरूरत है. मनुष्य के स्वस्थ होने की पहली पहचान है- हंसी. हंसनेवाला व्यक्ति जीवन में स्वस्थ व प्रसन्न रहते हुए अपने जीवन को सुखी बना […]
परमात्मा ने मनुष्य को हंसने की शक्ति दी है. इसके पीछे कारण है. चूंकि मनुष्य अपनी विकृतियों के जाल में बुरी तरह फंसा रहनेवाला प्राणी है, इसलिए उसे हंसी की जरूरत है. मनुष्य के स्वस्थ होने की पहली पहचान है- हंसी. हंसनेवाला व्यक्ति जीवन में स्वस्थ व प्रसन्न रहते हुए अपने जीवन को सुखी बना लेता है.
हंसना मानव जीवन के लिए वरदान है, क्योंकि कोई अन्य जीव हंस नहीं सकता. मनुष्य का सारा जीवन उसके खुद के द्वारा निर्मिंत कुप्रवृत्तियों के विष से विषाक्त बना रहता है. उसके जीवन की सुख, शांति व प्रसन्नता सब नष्ट हो जाती है. मनुष्य स्वयं अपने ही हाथों अपने शरीर में विकृति पैदा करता है और फिर लहूलुहान होकर कराहने लगता है. मानव जीवन में जो दुख है, उसका सृजन उसने खुद किया है, क्योंकि दुख कोई किसी को नहीं दे सकता. सच तो यह है कि न तो कोई किसी को दुख दे सकता है और न ही सुख. हम स्वयं खुद को सुख या दुख देते हैं.
परमात्मा ने दुखों से मुक्ति के लिए मनुष्य को हंसने की शक्ति दी है, लेकिन आश्चर्य है कि आज कोई भी हंसने की इस शक्ति का उपयोग नहीं कर रहा है. प्रत्येक व्यक्ति दुख, चिंता, निराशा व आंसू का उपयोग करता है. ऐसे लोग शायद यह समझते हैं कि चिंतित होने से दूसरों का ध्यान उनकी ओर जायेगा. ऐसे लोग आत्मपीड़क होते हैं.
दूसरी ओर, हंसनेवाले लोग भी होते हैं, जो मुस्कुराते हुए अपना दिन शुरू करते हैं और मुस्कुराते हुए ही सो जाते हैं. हंसना एक व्यायाम है. हंसने से जीवनी शक्ति बढ़ती है. मन की कुंठाएं टूटती हैं और जीवन में जो निराशा के बीज होते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं. यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है.
अत: हंसते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हंसी के फव्वारे जब भी छूटें, तो नाभि के निकट से ही छूटें. एकांत में यदि प्रतिदिन नाभि के निकट से हंसी के फव्वारे को ऊपर की ओर छोड़ा जाये, तो पेट के सारे विकार नष्ट हो जाते हैं. प्रतिदिन ठहाके लगानेवाले कभी पेट की बीमारी से पीड़ित नहीं होते. यदि मन में कहीं दुख के बादल छाये हैं, या काम, क्रोध, लोभ व मोह के वेग से ग्रस्त रहता है, तो हंसी के एक फव्वारे से सारे मनोविकार नष्ट हो जाते हैं और एक क्षण में ही प्रसन्नता का बोध होने
लगता है.
– आचार्य सुदर्शन