भीतर की ओर देखना

जो व्यक्ति अध्यात्म की चेतना में प्रवेश करता है, अध्यात्म की चेतना के जागरण का प्रयास करता है, वह अपने पर बहुत उत्तरदायित्व लेता है. इतना बड़ा दायित्व कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति उतना बड़ा दायित्व नहीं उठाता. एक पूरे साम्राज्य को चलानेवाले सम्राट पर भी उतना दायित्व नहीं होता, जितना बड़ा दायित्व होता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2016 12:04 AM

जो व्यक्ति अध्यात्म की चेतना में प्रवेश करता है, अध्यात्म की चेतना के जागरण का प्रयास करता है, वह अपने पर बहुत उत्तरदायित्व लेता है. इतना बड़ा दायित्व कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति उतना बड़ा दायित्व नहीं उठाता. एक पूरे साम्राज्य को चलानेवाले सम्राट पर भी उतना दायित्व नहीं होता, जितना बड़ा दायित्व होता है उस साधक पर, जो चेतना के जागरण में लगा हुआ है.

अब सवाल है कि एकांत में, एक कोने में बैठ कर अपने भीतर झांकनेवाला, अपने-आपकी साधना करनेवाला बड़ा दायित्व कैसे लेता है? यह तर्क-संगत नहीं, किंतु विरोधी बात है. साधना का मार्ग तर्क का मार्ग नहीं है, अनुभव का मार्ग है, देखने का मार्ग है, दर्शन का मार्ग है. प्रत्येक व्यक्ति सुख-दुख का दायित्व दूसरों पर डालता है. चाहे सम्राट हो या अन्य कोई सब अपने-आपका बचाव करते हुए दायित्व दूसरों पर डाल देते हैं. सारा दोष दूसरों में देखते हैं, स्वयं निर्लिप्त रह जाते हैं. किंतु अध्यात्म की साधना करनेवाला, चेतना के जागरण की साधना करनेवाला, सारा दायित्व अपने पर लेता है.

चाहे वह सुख का दायित्व हो या दुख का, वह दायित्व अपने पर लेता है, दूसरों पर नहीं थोपता. कोई शत्रुता करता है, तो साधक सोचता है कि कहीं न कहीं मेरी ही भूल है. कितना बड़ा दायित्व है यह? ऐसा दायित्व वही व्यक्ति उठा सकता है, जो अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश करता है. आप सारे इतिहास को देखिये, जिन लोगों ने बाहर की दुनिया में विचरण किया है, उन्होंने हमेशा दूसरों पर ही दोषारोपण किया है. सत्ता बदलती है, तो नयी सत्ता पुरानी सत्ता पर दोषारोपण करती है. बाह्य जगत में रहनेवाला दूसरों के कंधों पर भार डाल कर स्वयं हलका रहना चाहता है.

अध्यात्म का साधक दायित्व को ओढ़ कर भारी रहता है. वह अपना दायित्व दूसरों पर कभी नहीं डालता. अध्यात्म साधना की पहली परिणति है- दायित्व को लेने का साहस. अध्यात्म साधक की भ्रांतियां सबसे पहले टूटती हैं. वह असत्य से दूर और सत्य के निकट होता है. सामान्यतया आंखें बंद करने का अर्थ होता है- नहीं देखना, सो जाना. लेकिन, साधक के लिए आंखें बंद करने का अर्थ होता है- भीतर की गहराइयों को देखना, जागृत होना. – आचार्य महाप्रज्ञ

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