आध्यात्मिक प्रगति नि:शब्द एवं अदृश्य होती है. इसकी तुलना उस कली से की जा सकती है, जो रात्रि की नीरवता में धीरे-धीरे पुष्प रूप में खिलती है. अत: यह सोच कर उदास न हों कि आपकी प्रगति नहीं हो रही है.
वास्तविक आध्यात्मिक प्रगति का सही मूल्यांकन उस शांति और शुद्धता से होता है, जो आपके व्यावहारिक जीवन में अभिव्यक्त होती है. आपका शरीर और मन स्वस्थ होगा. आप सदैय शांत, संतुलित, प्रसन्न, निर्भय एवं संतुष्ठ रहेंगे. आपके अंदर वैराग्य एवं विवेक का विकास होगा तथा संसार के प्रति कोई आकर्षण नहीं रह जायेगा. जिन वस्तुओं एवं बातों से पूर्व में आप अशांत हो जाते थे, उनसे अब आप प्रभावित नहीं होंगे. जिन चीजों से पूर्व में आपको सुख मिलता था उनसे आप विरक्त होते जायेंगे. आपका मन एकाग्र, कुशाग्र एवं सूक्ष्म हो जायेगा. आप ध्यान में अधिक रुचि लेने लगेंगे. आपके अंदर यह विचार अधिकाधिक सुस्पष्ट एवं दृढ़ होगा कि सभी रूप प्रभु के ही रूप हैं. आपके अंदर नि:स्वार्थ सेवा की तीव्र इच्छा उत्पन्न होगी. आध्यात्मिक अनुभव की कुछ झलक मिलते ही आप अपनी साधना बंद न करें.
जब तक आप परम ब्रह्म में स्थित नहीं हो जाते, अपना अभ्यास जारी रखें. यदि आप अभ्यास बंद करके संसार में विचरण करेंगे, तो पतन की पूरी संभावना रहेगी. मात्र एक झलक से आप पूर्णत: सुरक्षित नहीं रह सकते. आप नाम और यश से उन्मत्त न हों. आप पत्नी, बच्चे, माता-पिता, घर, मित्र एवं संबंधियों का परित्याग कर सकते हैं, किंतु प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि का त्याग करना अत्यधिक कठिन है. सांसारिक आदमी के लिए संसार अतिमहत्वपूर्ण है, किंतु एक ब्रह्मज्ञानी के लिए यह तिनके के समान है.
तुच्छ सांसारिक चीजों पर ध्यान न दें, अपने अभ्यास में नियमित रहें. पूर्ण ब्राह्मी चेतना में निरंतर स्थिति प्राप्त होने तक अविराम साधना करते रहें. प्रत्येक प्रलोभन का निवारण, बुरे विचार का िनरोध, इच्छा का शमन एवं कटु शब्द पर नियंत्रण कीजिये. दूसरी तरफ प्रत्येक उत्कृष्ट आकांक्षा को प्रोत्साहन दीजिये एवं उदात्त विचारों का पोषण कीजिये. आपके द्वारा की गयी साधना का प्रत्येक अंश निश्चित रूप से आपकी अदृश्य चेतना में अंकित होता है.
– स्वामी शिवानंद सरस्वती