नयी दिल्ली : हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस बार देवोत्थान एकादशी 10 और 11 नवंबर को है. हालांकि उदया तिथि के कारण यह 11 को विशेष रूप से मनाया जायेगा हिंदुओं में कार्तिक मास की इस एकादशी का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान किया जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी तिथि को भगवान विष्णु चार माह के विश्राम के बाद शयनावस्था से जागृत अवस्था में आते हैं. इसलिए देवोत्थान एकादशी को वर्षभर में पड़ने वाली एकादशी तिथियों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है. देवोत्थान एकादशी से सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं. पंडित विष्णु मिश्रा के अनुसार इस एकादशी को भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए. इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. सालभर के सभी एकादशियों में देवोत्थान एकादशी का महत्व सबसे अधिक है.
देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन श्री हरि विष्णु की प्रतिमा या उनके शालीग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह संपन्न किया जाता है. इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी-नारायण और तुलसी का पूजन किया जाता है. देवोत्थान एकादशी को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है. अर्थात इस दिन किसी भी मंगल या शुभ कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती. इस दिन आरंभ किये गये कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. इसलिए इस दिन को विवाह, सगाई, नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदारी, व्यापार या नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ माना गया है.
ऐसे करे एकादशी का पूजन
व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौका बनाएं. उस चौके में अल्पना से भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनायें.
देवोत्थान एकादशी की रात में सुभाषित स्त्रोत का पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का पाठ करें या फिर कीर्तन-भजन आदि करें.
मंत्र – उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
इस मंत्र के जाप के बाद विधिवत पूजा करें. भगवान के मन्दिर और सिंहासन पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं.
आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं और फिर फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढक दें और दीपक जलाएं.
विष्णु पूजा में पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन कर धूप-दीप जलाकर आरती करें.