14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हमारा नदी धर्म

हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं. लेकिन, प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख-करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है. आज हम गंगा नदी पर बात करते हैं, तो हमें प्रकृति का, भूगोल का यह कैलेंडर भूलना नहीं चाहिए. गंगा मैली हुई है. उसे […]

हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं. लेकिन, प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख-करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है. आज हम गंगा नदी पर बात करते हैं, तो हमें प्रकृति का, भूगोल का यह कैलेंडर भूलना नहीं चाहिए. गंगा मैली हुई है. उसे साफ करना है. सफाई की अनेक योजनाएं पहले भी बनी हैं.

कुछ अरब रुपए इनमें बह चुके हैं. इसलिए केवल भावनाओं में बह कर हम फिर ऐसा कोई काम न करें कि इस बार भी अरबों रुपयों की योजनाएं बनें और गंगा मैली ही रह जाये. अच्छा हो या बुरा हो, हर युग का एक विचार, एक झंडा होता है. उस युग के, उस दौर के करीब-करीब सभी मुखर लोग, मौन लोग भी उसे एक मजबूत विचार की तरह अपना लेते हैं. पौराणिक कथाएं और भौगोलिक तथ्य दोनों यही बताते हैं कि गंगा अपौरुषेय है. अनेक संयोग बने और तब गंगा का अवतरण हुआ, जन्म नहीं. भूगोल, भूगर्भ शास्त्र बताता है कि इसका जन्म हिमालय के जन्म से जुड़ा है. कोई दो करोड़, तीस लाख बरस पुरानी हलचल से. इस विशाल समय अवधि का विस्तार अभी हम भूल जायें.

इतना ही देखें कि प्रकृति ने गंगा को सदानीरा बनाये रखने के लिए इसे अपनी कृपा के केवल एक प्रकार- वर्षा-भर से नहीं जोड़ा. वर्षा तो चार मास ही होती है. बाकी आठ मास इसमें पानी लगातार कैसे बहे, कैसे रहे, इसके लिए प्रकृति ने उदारता का एक और रूप गंगा को दिया है. नदी का संयोग हिमनद से करवाया. प्रकृति ने गंगोत्री और गौमुख हिमालय में इतने ऊंचे शिखरों पर रखे हैं कि वहां कभी हिम पिघल कर समाप्त नहीं होता. जब वर्षा समाप्त हो जाये तो हिम, बर्फ पिघल-पिघल कर गंगा की धारा को अविरल रखते हैं.

तो हमारे समाज ने गंगा को मां माना और समाज ने अपना पूरा धर्म उसकी रक्षा में लगा दिया गया. इस धर्म ने यह भी ध्यान रखा कि हमारे धर्म, सनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है- वह है नदी धर्म. नदी अपने उद्गम से मुहाने तक एक धर्म का, एक रास्ते का, एक घाटी का, एक बहाव का पालन करती है. हम नदी धर्म को अलग से इसलिए नहीं पहचान पाते, क्योंकि अब तक हमारी परंपरा तो उसी नदी धर्म से अपना धर्म जोड़े रखती थी.

– अनुपम मिश्र

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें