अभिशाप नहीं है बुढ़ापा

शरीर जब पैदा होता है, तो वह कभी बचपन, कभी जवानी और उसी तरह बुढ़ापा में प्रवेश करता है. अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे अनुभव करें. प्रकृति तो अपना काम करती ही है. हमारे चाहने से कुछ नहीं होता. इसलिए जिस प्रकार हमने बचपन को उल्लासपूर्ण बनाया, जवानी को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2016 6:37 AM
शरीर जब पैदा होता है, तो वह कभी बचपन, कभी जवानी और उसी तरह बुढ़ापा में प्रवेश करता है. अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे अनुभव करें. प्रकृति तो अपना काम करती ही है. हमारे चाहने से कुछ नहीं होता. इसलिए जिस प्रकार हमने बचपन को उल्लासपूर्ण बनाया, जवानी को प्रेमपूर्ण बनाया, उसी प्रकार बुढ़ापे को भी सहज रूप से स्वीकार करते हुए आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करना है. दुख तो तभी होगा, जब हम प्रतिरोध करेंगे.
बुढ़ापे का विरोध करने से, इसे आत्मग्लानि के साथ स्वीकार करने से अधिक पीड़ा होती है. जो लोग प्रकृति से सहमत हो जाते हैं, उन्हें दुख नहीं होता. जो स्वीकार कर लेते हैं कि बचपन की तरह वे मौज-मस्ती नहीं कर सकते, उन्हें दुख नहीं होता. जो व्यक्ति परिवार में रहतेहैं, उन्हें परिवार के साथ सामंजस्य करना पड़ता है; क्योंकि अब तक वे अकेले परिवार में जी रहे थे, अब परिवार में अन्य कई सदस्य आ गये.
जो बुजुर्ग इन सदस्यों के साथ सामंजस्य करने में कुशल होते हैं, उन्हें दुख नहीं होता. दुख उन्हें होता है, जो अब भी परिवार में अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं. परिवार में किसी बुजुर्ग का आदर, सम्मान और स्वीकृति उसके वर्चस्व के कारण नहीं होती, बल्कि परिवार के सदस्यों के साथ प्रेमपूर्ण सामंजस्य से होती है. यह सच है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना सम्मान अच्छा लगता है. कोई उसे प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है. अगर हमें दूसरों का प्रेम अच्छा लगता है, तो दूसरों को भी हमें प्यार करना चाहिए, क्योंकि परिवार ही ऐसा स्थान है, जहां केवल प्रेमपूर्ण बंधन रहता है. प्रश्न है कि बुढ़ापे को लोग अभिशाप क्यों मानते हैं?
बुढ़ापा अभिशाप तब बनता है, जब आप स्वयं उसे बीमारी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. इस मानसिक स्थिति के कारण लोग इसे अभिशाप मानते हैं. आजकल बुढ़ापे का अर्थ होने लगा है क्रोधी बन जाना, अकारण किसी से झगड़ जाना. कोई अगर आपको नमस्कार नहीं करता है, तो उससे भिड़ जाना. जब समाज उसे उस रूप में स्वीकार नहीं करता, तो उस अपमान को वह बर्दाश्त नहीं कर पाता और तब वह महसूस करने लगता है कि बुढ़ापा अभिशाप बन गया है.
– आचार्य सुदर्शन

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