दान की भावना
हमारे देश में हर नेता को अपनी जाति और धर्म से आगे जाकर देखना चाहिए. उसकी दृष्टि में संपूर्ण मानवता के लिए स्थान होना चाहिए. एक हिंदू पुजारी को केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं, समस्त मानवता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. इसी तरह, एक मुसलिम ईमाम और ईसाई पादरी को भी समस्त मानवता के […]
हमारे देश में हर नेता को अपनी जाति और धर्म से आगे जाकर देखना चाहिए. उसकी दृष्टि में संपूर्ण मानवता के लिए स्थान होना चाहिए. एक हिंदू पुजारी को केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं, समस्त मानवता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. इसी तरह, एक मुसलिम ईमाम और ईसाई पादरी को भी समस्त मानवता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, तभी हम धर्म के उद्देश्य को पूरा कर पायेंगे. सभी धर्मों का समान सम्मान और व्यवसायों में सामाजिक कार्य जुड़ा होना चाहिए.
अगर हर व्यवसायिक संस्थान के तहत अपने मुनाफे का कुछ प्रतिशत गांवों के विकास में लगाये जायें, तो मुझे यकीन है कि इस ग्रह पर कहीं भी भुखमरी, बीमारी और निरक्षरता नहीं रह जायेगी. क्योंकि, सरकारें अकेले यह कार्य नहीं कर सकती हैं. व्यवसायिक संस्थानों एवं गैरसरकारी संगठनों के तालमेल से बहुत कुछ संभव है. इसलिए, व्यवसाय में सामाजिक कार्य जोड़ो और राजनीति में आध्यात्मिकता लाओ. महात्मा गांधी के समय में अच्छे चरित्र की वजह से राजनेताओं का बहुत सम्मान होता था.
आज की स्थिति उसके ठीक विपरीत हो गयी है. आप जानते हैं कि आज हमें अपनी राजनीति में आध्यात्मिकता लाने की बहुत आवश्यकता है. राजनेताओं को अपने देश का ख्याल होना चाहिए. मेरे दादाजी जब महात्मा गांधी से मिले, तो वे उनके साथ सेवाग्राम में 20 साल रहे और उन्हें मेरी दादीजी का साढ़े दस किलो सोना दिया. मेरी दादी बहुत ही सुंदर थीं. तब महिलाएं बहुत से सोने के आभूषण पहनती थीं, किंतु मेरी दादी ने स्वेच्छा से अपने मंगलसूत्र को छोड़ कर सभी आभूषण देते हुए कहा, ‘मैं बच्चों की देखभाल करूंगी, आप जाकर देश की सेवा कीजिए.’ तब दादा जी जाकर महात्मा गांधी के आश्रम में रहे.
आजकल देने की भावना पर मान नहीं किया जाता है. अगर दान करके व्यक्ति खुद को कृत्य समझे तो बहुत फर्क आयेगा. दान पर गौरव, अहिंसा पर गौरव, ये दोनों ही आज की शिक्षा में शामिल नहीं हैं. अगर हम फिल्में देखें, तो हीरो को गुस्सैल और अक्रामक दिखाया जाता है. जो शांत, सहनशील, दूसरा गाल भी आगे करनेवाले व्यक्ति होते हैं, उन्हें हीरो नहीं समझा जाता. इन मूल्यों को बदलना होगा.
– श्री श्री रविशंकर