आदतों का बिगाड़
इस समाज में आप किस तरह पल कर बड़े हुए? माता-पिता, शिक्षक, बंधु-मित्र इन सभी ने आपकी भलाई करने की नीयत से क्या किया था? वे लोग आस-पास के किसी व्यक्ति से तुलना करते हुए आपकी क्षमता को हमेशा कम ही आंका करते थे. उन्होंने सोचा होगा कि यदि आप खुद अपने को किसी और […]
इस समाज में आप किस तरह पल कर बड़े हुए? माता-पिता, शिक्षक, बंधु-मित्र इन सभी ने आपकी भलाई करने की नीयत से क्या किया था? वे लोग आस-पास के किसी व्यक्ति से तुलना करते हुए आपकी क्षमता को हमेशा कम ही आंका करते थे. उन्होंने सोचा होगा कि यदि आप खुद अपने को किसी और से कमतर महसूस करेंगे, तभी आपके अंदर वह प्रेरक शक्ति पैदा होगी, जो आपको कामयाबी की ओर भगाये ले चलेगी.
आपकी योग्यताओं को उजागर करने के लिए वे इससे अलग कोई मार्ग नहीं जानते थे. एक समय के बाद उन लोगों ने यों तुलना करना छोड़ दिया, लेकिन दूसरों से तुलना करते हुए स्वयं अपने को खदेड़ते रहने की आदत से आपको निजात नहीं मिली. एक बार शंकरन पिल्लै अपनी पत्नी से लड़ पड़े और गुस्से में घर से निकल गये. एक होटल में गये और बैरे को आॅर्डर दिया, ‘पत्थर जैसी कड़ी ठंडी इडली, स्वादहीन फीका सांबर, पानीदार दूध में कल वाला डिकाक्शन मिला कर ठंडी कॉफी… ले आओ.’ बैरा बोला, ‘यह भी कोई आॅर्डर है!’ शंकरन ने सफाई दी, ‘दोस्त, मैं भूख मिटाने के लिए यहां नहीं आया हूं. मुझे घर की याद आ गयी, इसलिए…’. इसी तरह आप भी पुरानी आदतों को आसानी से छोड़ने में असमर्थ होकर परेशान रहते हैं. फिर स्वयं को चुनौती देते हैं. अपने आदर्श-पुरुष से भी ऊंचा पद पाने के लिए संघर्ष करते-करते मंजिल तक पहुंच भी जाते हैं. तब तक दूसरा कोई उससे भी आगे की मंजिल में आपकी खिल्ली उड़ाता मिलता है. तब आप अगला चाबुक हाथ में ले लेते हैं. एक इलास्टिक पट्टी को दोनों ओर से खींच कर पकड़ेंगे तो तनाव में आकर उसके दोनों सिरे एक दूसरे से मिलने के लिए तड़पेंगे. हाथ हटाते ही इलास्टिक पट्टी के दोनों सिरे आपस में टकरायेंगे. फिर?
दोनों सिरे निष्क्रिय होकर पड़े रहेंगे. इस तरह बाहरी शक्ति से प्रेरित होकर आप लक्ष्य-स्थान पर पहुंच भी जायें, तब भी आगे का गंतव्य जाने बिना वहीं पर निश्चेष्ट खड़े रहेंगे. आगे के लक्ष्य को दिखा कर कोई आपको उकसाये तभी आप फिर से सक्रिय होंगे. खींच-खींच कर काम में लगाया गया इलास्टिक आखिर कितने दिन तक टिक पायेगा? एक मुकाम पर आकर वह एकदम ढीला हो जाता है और अपने स्वभाव को खो देता है.
सद्गुरु जग्गी वासुदेव