ध्यान का पांचवां स्तर

ध्यान वह अवस्था है, जिससे सब कुछ आया है और जिसमें सब कुछ जाता है. ध्यान आंतरिक मौन है, जहां आप आनंद, खुशी और शांति आदि महसूस करते हैं. क्या जानते हैं कि तीन तरह के ज्ञान होते हैं. एक वह जो हम अपनी इंद्रियों से प्राप्त करते हैं. ज्ञान का दूसरा स्तर होता है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2017 6:06 AM
ध्यान वह अवस्था है, जिससे सब कुछ आया है और जिसमें सब कुछ जाता है. ध्यान आंतरिक मौन है, जहां आप आनंद, खुशी और शांति आदि महसूस करते हैं. क्या जानते हैं कि तीन तरह के ज्ञान होते हैं. एक वह जो हम अपनी इंद्रियों से प्राप्त करते हैं. ज्ञान का दूसरा स्तर होता है बुद्धि से. बुद्धि द्वारा हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह इंद्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान से अधिक श्रेष्ठ होता है.
फिर, ज्ञान का तीसरा स्तर है अंतरज्ञान. आनंद के भी तीन स्तर होते हैं. जब हमारी इंद्रियां भौतिक वस्तुओं में संलग्न होती हैं, जैसे आंखें देखने, कान सुनने में व्यस्त होते हैं, तब हम केवल देख, सुन, चख या छूकर ही खुश हो जाते हैं. हमें इंद्रियों से खुशी तो मिलती है, लेकिन इंद्रियों द्वारा खुशी पाने की क्षमता बहुत कम होती है. फिर दूसरे स्तर का आनंद हैं, जब आप कुछ रचनात्मक करते हैं.
रचनात्मकता से एक तरह का आनंद आता है. तीसरे स्तर का आनंद भी है, जो कभी कम नहीं होता. यह न इंद्रियों और न ही रचनात्मकता द्वारा आता है, लेकिन किसी बहुत गहरे और रहस्यमय स्थान से आता है. उसी तरह, शांति, ज्ञान और आनंद ये तीनों चीजें एक अन्य स्तर से आती हैं.
इनका स्रोत है ध्यान. ध्यान के तीन महत्वपूर्ण नियम हैं. ये हैं, कि अगले दस मिनट जब मैं ध्यान के लिए बैठ रहा हूं, तब तक ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे कुछ नहीं करना और मैं कोई नहीं हूं’. हम इन तीन आवश्यक नियमों का पालन करेंगे, तब हम गहरे ध्यान में जा पायेंगे. शुरुआत में ध्यान केवल एक तरह का विश्राम है. दूसरे स्तर पर कुछ ऐसा है, जो आपको ऊर्जा देता है. तीसरे स्तर पर वह अपने साथ रचनात्मकता लाता है. चौथे स्तर पर उत्साह और आनंद लाता है. ध्यान के पांचवें स्तर का वर्णन नहीं किया जा सकता. किसी को समझाया नहीं जा सकता. यही ध्यान का पांचवां स्तर है.
इससे पहले आप रुकियेगा नहीं. सिर्फ थोड़ा सा आनंद, थोड़ा उत्साह या फिर कुछ छोटी-मोटी इच्छाएं पूरी हो जाने से रुकिये नहीं. ध्यान से आपकी आनंद पाने और इच्छाएं पूरा करने की क्षमता भी बढ़ जाती है. और जब आपको अपने लिए कुछ नहीं चाहिए होता, तब आप दूसरों की इच्छाएं भी पूरा कर सकते हैं. यह बहुत ही बढ़िया है. तो इसके पहले रुकियेगा नहीं, ध्यान करते रहिये.
श्री श्री रविशंकर

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