Adhik Maas Ekadashi 2023: अधिकमास की एकादशी कब है? नोट कर लें डेट, पूजा विधि, व्रत नियम और सामग्री की लिस्ट

Adhik maas Ekadashi 2023 Kab hai: अधिकमास में पड़ने वाली एकादशी तिथियों का विशेष महत्व होता है. अधिकमास की पद्मिनी एकादशी और परमा एकादशी का व्रत तीन साल बाद रखा जाएगा. आइए जानते हैं अधिकमास की एकादशी की डेट, मुहूर्त और महत्व.

By Radheshyam Kushwaha | July 17, 2023 4:44 PM

Adhik Maas Ekadashi 2023: मलमास और अधिकमास 18 जुलाई 2023 से शुरू हो जाएगा. जिसके कारण साल 2023 में 24 की बजाय 26 एकादशी का संयोग बन रहा है. अधिक मास का समापन 14 अगस्त 2023 को होगा. अधिकमास को पुरुषोत्तम मास और मलमास के नाम से भी जाना जाता है. हर 3 साल में अधिकमास या मलमास आता है. एकादशी और अधिक मास दोनों ही श्रीहरि विष्णु को समर्पित है. ज्योतिषाचार्य अम्बरीश मिश्र के अनुसार 3 साल बाद अधिकमास की पुरुषोत्तमी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस एकादशी तिथि को पद्मिनी या कमला एकादशी के नाम से जाना जाता है. वहीं कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को परमा एकादशी के नाम से जानते है. आइए जानते हैं अधिकमास की एकादशी तिथि, पूजा विधि, व्रत नियम और सामग्री की लिस्ट…

अधिकमास (पुरुषोत्तमी) एकादशी 2023 डेट (Adhik maas Ekadashi 2023 Date)

  • पुरुषोत्तमी (पद्मिनी या कमला) एकादशी – इस साल अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 29 जुलाई 2023 दिन शनिवार को है.

  • पुरुषोत्तमी (परमा) एकादशी – साल 2023 में अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 12 अगस्त 2023 शनिवार को है.

(Adhik maas Ekadashi 2023 Date) पुरुषोत्तमी एकादशी 2023 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार अधिक मास के कृष्ण पक्ष की पुरुषोत्तमी (पद्मिनी या कमला) एकादशी तिथि 28 जुलाई 2023 दिन शुक्रवार की सुबह 09.29 मिनट पर शुरू होगी. अगले दिन 29 जुलाई 2023 दिन शनिवार की सुबह 08 बजकर 23 मिनट तक रहेगा. लेकिन उदया तिथि होने के कारण एकादशी व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा.

पद्मिनी एकादशी व्रत पारण का शुभ समय

सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर 06.35 तक आप पारण कर सकते है. इसके बाद प्रदोष लग जाएगा.

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(Adhik maas Ekadashi 2023 Date) अधिक मास की एकादशियां

अधिकमास में 2 एकादशियों के नाम है. मलमास में पड़ने वाली एकादशी तिथि को पुरुषोत्तमी एकादशी कहा जाता है. इसके साथ ही पद्मिनी या कमला एकादशी और परमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पद्मिनी या कमला एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं.

एकादशी पूजा विधि (Ekadashi 2023 Puja Vidhi)

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.

  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.

  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें.

  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें.

  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.

  • भगवान की आरती करें.

  • भगवान को भोग लगाएं.

  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.

(Adhik maas Ekadashi 2023 Date) अधिकमास की एकादशी तिथि का महत्व

अधिकमास में परमा एकादशी और पद्मिनी एकादशी का व्रत रखे जाने का विशेष महत्व है. क्योंकि यह तीन वर्ष बाद ही आती है. अधिक मास में पड़ने वाली एकादशी तिथि को पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहते हैं. पद्मिनी एकादशी का व्रत सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, इसके साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला भी होता है. जबकि परमा एकादशी का व्रत धन-वैभव देती है और पापों से मुक्ति दिलाती है.

(Adhik maas Ekadashi 2023 Date) पद्मिनी और कमला एकादशी कब आती हैं

पद्मिनी को कमला एकादशी कहते हैं. पद्मिनी एकादशी तब ही आती है, जबकि व्रत का महीना अधिक हो जाता है. यह एकादशी अधिमास में ही आती है. इस बार श्रावण मास में अधिकमास के माह भी जुड़ रहे हैं. यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके कांसे के पात्र में जौ-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खाएं. इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है, जो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है.

(Adhik maas Ekadashi 2023 Date) पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार, यह त्रेता युग की बात है. सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पद्मिनी एकादशी की कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार, त्रेता युग में एक प्रजा प्रेमी राजा कृतवीर्य थे, जो निसंतान थे. राजा की कई रानियां थी. लेकिन, उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी. पुत्र रत्न के लिए राजा ने अनेकों यज्ञ, हवन, पूजा पाठ और अनुष्ठान करवाए. लेकिन राजा की संतान की प्राप्ति की इच्छा पूरी नहीं हुई. संतान प्राप्ति के लिए सभी तरह के प्रयास असफल होने पर राजा ने तपस्या करने का प्रण लिया. वे अपने राज्य का कार्यभार अपने काबिल मंत्रियों को सौंप दिया.

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माता अनुसुइया ने रानी पद्मिनी को व्रत रखने का दिया सुझाव

इसके बाद राजा कृतवीर्य अपनी चहेती रानी पद्मिनी के साथ गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए. कठोर तपस्या के बाद भी राजा कृत वीर्य को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. एक दिन गंधमादन पर्वत पर रानी पद्मिनी, माता अनुसुइया से मिली. रानी पद्मिनी ने माता अनुसुइया को अपनी पीड़ा बताई, तब माता अनुसुइया ने रानी पद्मिनी को अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया. माता अनुसुइया ने बताया कि इस एकादशी व्रत के प्रभाव से सभी तरह की मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं.

रानी पद्मिनी ने निर्जल और निराहार व्रत

रानी पद्मिनी ने माता अनुसुइया द्वारा बताए गए व्रत का संकल्प लेकर विधि विधान से व्रत का पालन किया. रानी पद्मिनी ने निर्जल और निराहार रहकर अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया. रानी पद्मिनी की सच्ची भक्ति और सेवाभाव से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने रानी पद्मिनी को पुत्रवती होने का वरदान दिया. इसके साथ ही भगवान विष्णु ने कहा कि संसार में अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाएगा. कुछ समय बाद रानी पद्मिनी गर्भवती हुई और अत्यंत ही तेजस्वी, बलशाली और योग्य पुत्र को जन्म दिया. जिसका नाम कृतवीर्य अर्जुन रखा गया. बड़े होकर कृतवीर्य बहुत ही कुशल राजा बना.

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