अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं. पूजा के समय इस माला कि रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है, इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है. व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं.
अहोई माला पहनने का महत्व
अहोई अष्टमी के दिन स्याहु माला को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ पहना जाता है. दिवाली तक इसे पहनना आवश्यक माना जाता है. मान्यता है कि इससे पुत्र की आयु लंबी होती है.
पहनने का सही तरीका
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करें और करवा में जल भरकर रखें. अहोई माता की कथा सुनें. स्याहु माता के लॉकेट की पूजा करें, उसके बाद संतान को पास में बैठाकर माला बनाएं. इस मौले को मौली के धागों की मदद से तैयार करें. माला बनाने के लिए किसी प्रकार की सूई या पिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. संतान का तिलक करें और माला धारण करें.
दीपावली पूजा के बाद उतार कर रख दी जाती है स्याहु की माला
अहोई अष्टमी पर माताएं संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. कार्तिक महीने में आने वाली अष्टमी पर संतान की रक्षा और उनकी मंगलकामना के लिए माताएं निर्जला व्रत रखती हैं. व्रत पूजा के साथ स्याहु की माला की भी पूजा होती है. स्याहु संतान की संख्या के आधार पर बनता है और उसे मौली में देवी अहोई की लॉकेट के साथ माताएं धारण करती हैं. इस माला को अष्टमी के दिन धारण करने के बाद दिवाली तक लगातार पहने रहना होता है. दिवाली वाले दिन जब अहोई अष्टमी के दिन जल भरे करवा से संतान जब स्नान कर लेती है तब माताएं स्याहु को निकला कर सुरक्षित रख देती हैं.