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Aja Ekadashi 2020 Date : आज है अजा एकादशी व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और इस व्रत का महत्व…

Aja Ekadashi 2020 Date : भादो का महीना शुरू हो गया है. इस महीने में पड़ने वाले एकादशी को अजा एकादशी कहते है. इस एकादशी का काफी महत्व है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही श्रेष्ठ बताया गया है. अजा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों और व्यवहार पर संयम रखना आवश्यक है.

Aja Ekadashi 2020 Date : भादो का महीना शुरू हो गया है. इस महीने में पड़ने वाले एकादशी को अजा एकादशी कहते है. आज अजा एकादशी 15 अगस्त है. इस एकादशी का काफी महत्व है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही श्रेष्ठ बताया गया है. अजा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों और व्यवहार पर संयम रखना आवश्यक है. यह व्रत जीवन में संतुलनता को कैसे बनाए रखना है, यह सीखाता है. इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में अर्थ और काम से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त करता है, इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान से भी कई गुना शुभफलों की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं अजा एकादशी 2020 में कब है, अजा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और अजा एकादशी का महत्व…

अजा एकादशी शुभ मुहूर्त

15 अगस्त 2020 अजा एकादशी 2020 शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ 14 अगस्त को 02 बजकर 01 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त 15 अगस्त दोपहर 02 बजकर 20 मिनट तक

अजा एकादशी पारणा मुहूर्त : सुबह 05:50:59 से 08:28:36 बजे तक (16 अगस्त 2020)

अवधि : 2 घंटे 37 मिनट

अजा एकादशी पूजा विधि

– अजा एकादशी के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है.

– इस दिन घर की साफ सफाई अच्छे प्रकार से करनी चाहिए और स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए.

– सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा किसी चौकी पर स्थापित करके उन्हें पीले फूलों की माला, अक्षत , फल और नैवेध आदि अर्पित करें.

– यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद उनकी विधिवत पूजा करें और अजा एकादशी की कथा पढ़ें या सुने.

– अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और उन्हें पीली मिठाई का भोग लगाएं.

अजा एकादशी की कथा

अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था. उसका नाम हरिश्चन्द्र था. वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था. प्रभु इच्छा से उसने अपना राज्य स्वप्न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी स्त्री और पुत्र को भी बेचना पड़ा. एक दिन राजा हरिश्चन्द्र स्वयं एक डोम का दास बन गया. उसने उस डोम के यहां कफन लेने का काम किया, किन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा. कई वर्ष बीत जाने के बाद उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा.

वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करू. किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊ. एक दिन की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम् ऋषि उसके पास पहुंचे. हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख-भरी कथा सुनाने लगा. राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा- ‘हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है. तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो, इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे. ‘महर्षि गौतम इतना कह आलोप हो गये. अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया, इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये.

उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी. उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया. उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा. व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई. वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को पधार गये.

News posted by : Radheshyam kushwaha

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