काशी भ्रमण पर निकलेंगे बाबा विश्वनाथ, अबीर – गुलाल खेल कर काशी मनायेगी ‘रंगभरी एकादशी’

रंगभरी एकादशी, Rangbhari Ekadashi

By Kaushal Kishor | March 4, 2020 1:50 PM

पटना : फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में ‘रंगभरी एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है. इसे ‘आमलकी एकादशी’ भी कहते हैं. रंगभरी एकादशी का दिन भगवान शिव की नगरी काशी के लिए विशेष महत्व रखता है. यह पर्व को भोले की नगरी काशी में मां पार्वती के स्वागत की खुशी में मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव पत्नी गौरा और अपने गणों के साथ अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं. इस साल फाल्गुन माह की रंगभरी एकादशी छह मार्च को है.

पौराणिक परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पत्नी पार्वती से विवाह के बाद पहली बार उन्हें लेकर अपनी नगरी काशी आये थे. इस खुशी में भोलेनाथ के गणों ने रंग-गुलाल उड़ाते हुए काशी नगरी में खुशियां मनायी थी. मान्यता है कि तभी से हर वर्ष रंगभरी एकादशी को काशी में बाबा विश्वनाथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं और माता पार्वती का गौना कराया जाता है. ब्रज में जिस तरह होली का पर्व होलाष्टक से शुरू होता है, उसी तरह वाराणसी में यह रंगभरी एकादशी से शुरू होता है.

रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष शृंगार होता है और उनको दूल्हे के रूप में सजाया जाता है. इसके बाद बाबा विश्वनाथ के साथ माता पार्वती का गौना कराया जाता है. शिव परिवार की प्रतिमाए काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा काशी विश्वनाथ मंत्रोच्चारण व हर-हर महादेव के नारों के बीच अपनी जनता, भक्त और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने सपरिवार काशी भ्रमण पर निकलते है. पूरी काशी इस दिन उल्लास के साथ भक्ति के रंग में सराबोर रहती है. देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग आकर इस दिन काशी के इस अद्भुत दृश्य का गवाह बनते हैं.

रंगभरी एकादशी पूजा करने की विधि

  • सुबह में स्नान-ध्यान करने के बाद पात्र में जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाएं

  • माता पार्वती और भगवान शिव को रंग, गुलाल, बेलपत्र तथा चंदन अर्पित करें

  • अक्षत, धूप, पुष्प, गंध आदि से पूजा-अर्चना करें

  • इस दिन आंवले का विशेष महत्व है. भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा करें.

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