Bakrid 2020: आदम अलै0 के दुनिया में आने के बाद एकेश्वरवाद की अवधारणा को हजरत नूह अलै0 ने सशक्त रूप से प्रचारित व प्रसारित किया. इसके बाद आज से लगभग चार हजार वर्ष पूर्व हजरत इब्राहीम अलै0 ने एक निराकार ईश्वर की आराधना का खुलेआम समर्थन किया. बेबीलोनिया के फैरो (फिरौन) नमरूद ने अपने को जीवित ईश्वर की घोषणा कर अपनी मूर्ति बनवा कर पूरे राज्य में उपासना का प्रचलन स्थापित किया. आइए जानते है रांची विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष सेवानिवृत्त डॉ शाहिद हसन द्वारा दी गई जानकारी…
इब्राहीम अलै0 के चाचा मूर्तिकार थे और नमरूद की मूर्तियां बनाते थे. एक दिन इब्राहीम अलै0 ने उनकी सारी मूर्तियां तोड़ दीं, जिसके परिणामस्वरूप गांव वालों ने उन्हें जिंदा जलाने का निर्णय लिया और दहकती आग में डाल दिया. लेकिन दहकती आग उन्हें जला नहीं सकी. तब गांव वालों ने उन्हें गांव से निकाल दिया. इस घटना की जानकारी जब नमरूद को हुई तब उन्हें राज दरबार में प्रस्तुत करने का हुक्म दिया. जब उनकी पत्नी सारा के साथ उन्हें राज दरबार में हाजिर किया गया तब नमरूद ने कहा… ‘मैं भगवान हूं और जिसे चाहे मार दूं और जिसे चाहे जिंदा छोड़ दूं’. यह कह कर नमरूद ने दो गुलामों को बुला कर एक की हत्या करवा दी और दूसरे को छोड़ दिया. तब इब्राहीम अलै. ने कहा- ‘अगर तुम सूरज को पूरब के बजाय पश्चिम से उगा दो, तो मैं मान लूंगा’.
इस पर नमरूद ने जवाब नहीं दिया और सारा की सुंदरता देख उसके मन में गलत विचार उत्पन्न होने लगे और क्षणभर में नमरूद का शरीर ऐंठने लगा तब उसे आभास हुआ कि ये दोनों असाधारण क्षमता के मालिक हैं और अपने पाप के प्रायश्चित स्वरूप अपनी बेटी हाजरा को उपहार स्वरूप भेंट में दे दिया. इब्राहीम अलै0 अपनी पत्नी सारा और हाजरा के साथ घूम-घूम कर निराकार ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुंचाते रहे. समय बीतता गया, मगर सारा संतान सुख से वंचित रहीं. तब उन्होंने इब्राहीम अलै0 से कहा कि हाजरा हम दोनों की इतनी सेवा करती हैं. हम बूढ़े हो चले हैं, आप इससे विवाह क्यों नहीं कर लेते. एक बच्चे के आने से हम लोगों का भी मन बहलता रहेगा.
इब्राहीम अलै0 ने हाजरा से विवाह कर लिया. उनसे एक संतान हुई, जिनका नाम इस्माइल रखा. कुछ दिनों बाद दूध पीते बच्चे इस्माइल और मां हाजरा को लेकर इब्राहीम अलै0 काबा लेकर आ गये. उस समय पहाड़ियों के बीच स्थित हज्रे असबद (स्वर्ग का पत्थर) स्थापित था, जिसे आदम अलै0 ने रखा था. काबा के दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं थी. अपने दूध पीते बच्चे और पत्नी हाजरा को जब छोड़ कर इब्राहीम अलै0 जाने लगे, उस समय हाजरा के चमड़े की पोटली में थोड़ा खजूर और पानी था. हाजरा उनके पीछे दौड़ीं और कहा- किसके भरोसे आप मुझे छोड़ कर जा रहे हैं? क्या यह अल्लाह का हुक्म है? इब्राहीम अलै0 ने कहा- हां. तब हाजरा बोलीं- ठीक है, जाइए. अल्लाह मेरी हिफाजत करेगा. पहाड़ी पर जाकर इब्राहीम अलै0 ने अल्लाह से दुआ की और वापस सारा के पास चले गये.
दो-चार दिनों बाद खजूर और पानी खत्म हो गया और इस्माइल प्यास से तड़पने लगे. तब हाजरा व्याकुल होकर काबा के दक्षिण-पूर्व में स्थित पहाड़ी सफा के ऊपर से दूर-दूर तक देखती कि कोई मददगार मिल जाये, फिर वह उत्तर-पूर्व की पहाड़ी मरवा तक दौड़तीं. इस प्रकार सातवीं बार सफा-मरवा की दौड़ के बाद देखा कि इस्माइल की एड़ी के नीचे से पानी का झरना फूट रहा है. वह दौड़ कर गयीं और ‘ज़मज़म’ कहा. और बहता पानी वहीं रुक गया. पानी के कारण आसमान में पक्षी मंडराने लगे और पास से गुजरता कबीला जिज्ञासा वश पक्षी के झुंड के नीचे की ओर चल दिया और पानी देख कर वहीं बसने का इरादा किया.
यह जुरहुम कबीला था. इसी बीच पहली पत्नी सारा को अल्लाह ने बुढ़ापे में एक संतान दी, जिनका नाम इसहाक था. कुछ समय बाद इब्राहीम अलै0 फिर मक्का लौटे और बड़े बेटे इस्माइल के साथ काबा का निर्माण किया और इसी पवित्र माह में उन्हें स्वप्न आया कि वे अपने सबसे प्रिय पात्र की कुर्बानी दें, यह आदेश अल्लाह का था. इब्राहीम अलै0 ने बेटे की गर्दन में छुरी चलायी, मगर छुरी से इस्माइल की गर्दन नहीं कटी. उसी समय अल्लाह के दूत जिब्राइल अलै0 प्रकट हुए और कहा कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली और बगल की झाड़ी में फंसे पशु दुम्बा की कुर्बानी का आदेश दिया. यहीं से कुर्बानी का सिलसिला आरंभ हुआ. इस्लामी कैलेंडर के इस पवित्र माह का महत्व सबसे ज्यादा है. इसमें इस्लाम के पांचों स्तंभ एक साथ शामिल हैं- 1. एक अल्लाह की आराधना, 2. रोजा, 3. नमाज, 4. हज, 5. खैरात-दान (कुर्बानी के मांस का एक तिहाई गरीबों में वितरण).
News posted by : Radheshyam kushwaha