Budh Pradosh Vrat 2024: आज आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है. हर मास कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रत्येक महीने के त्रयोदशी तिथि का दिन भगवान शिव को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि बुधवार के दिन पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा. इस बार बुध प्रदोष व्रत पर काफी शुभ योग बन रहे हैं. आइए जानते हैं आषाढ़ मास के बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और शिव जी की आरती…
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 6 बजकर 41 मिनट पर होगी. वहीं इस तिथि की समाप्ति 04 जुलाई 2024 की सुबह 05 बजकर 25 मिनट पर होगी. त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल के समय शिव पूजा होती है. इसलिए प्रदोष व्रत आज 3 जुलाई को रखा जाएगा. आज पूजा मुहूर्त शाम 07 बजे से रात 09 बजे के बीच रहेगा. आज पूजा करने की अवधि 2 घण्टे 01 मिनट तक है.
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
- स्नान करने के बाद एक लकड़ी की चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा की स्थापना करें.
- प्रतिमा पर गंगाजल से अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं.
- माता पार्वती को लाल वस्त्र अर्पित करें और चंदन व कुमकुम का तिलक लगाएं.
- इसके बाद व्रत कथा व शिव चालीसा का पाठ करें और भोग लगाएं.
प्रदोष व्रत में शाम की पूजा कैसे करें?
भगवान शिव के सामने घी का दीया जलाएं और 108 बार ओम नम: शिवाय मंत्र जाप करें. शाम के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव को पंचामृत (दूध दही घी शहद और शक्कर) से स्न्नान कराएं. उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर रोली मौली चावल धूप दीप से पूजन करें. भगवान शिव को सफेद चावल की खीर का भोग लगाएं.
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प्रदोष व्रत में कौन कौन सी सामग्री लगती है?
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. भगवान शिव का विधिपूर्वक अभिषेक करें. अब भगवान शिव को शमी के फूल, धतूरा और बिल्वपत्र चढ़ाएं. प्रदोष व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती के साथ भगवान गणेश की भी पूजा करनी चाहिए.
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा, स्वामी ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥