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Chaiti Chhath Puja 2022: शुरू हुआ चैती छठ का त्योहार, जानें इसकी कथा व इतिहास

Chaiti Chhath Puja 2022: चैती छठ के त्योहार का बहुत अधिक महत्व होता हैं. इस दिन छठी माता की पूजा की जाती हैं और छठी माता बच्चो की रक्षा करती हैं. इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता हैं. इसके पीछे के पौराणिक कथा हैं :

Chaiti Chhath Puja 2022: चैती छठ के त्योहार की अपनी विशेषता है. इस महापर्व का आगाज 5 अप्रैल से होने जा रहा है. यह पर्व भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार इतना प्रसिद्ध है कि इसे भारत के साथ साथ विदेशों में भी मनाया जाता है.

छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है. साल में दो छठ महापर्व होते हैं. जिसमें पहला चैत्र मास में जिसे चैती छठ के नाम से भी जाना जाता है, तो दूसरा कार्तिक मास में आता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं. लोक आस्था के महापर्व चैती छठ का अनुष्ठान चार दिवसीय होता है. छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है.

Chaiti Chhath Puja 2022 Date: चैती छठ पूजा 2022 की प्रमुख तिथियां

05 अप्रैल 2022, मंगलवार – नहाय-खाय

06 अप्रैल 2022, बुधवार – खरना

07 अप्रैल 2022, गुरुवार – डूबते सूर्य का अर्घ्य

08 अप्रैल 2022, शुक्रवार – उगते सूर्य का अर्घ्य

चैती छठ पूजा पर अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त-

सूर्यास्त का समय (संध्या अर्घ्य): – 07 अप्रैल, 05:30 संध्या

सूर्योदय का समय (उषा अर्घ्य) – 08 अप्रैल, 06:40 प्रात:

छठ पूजा कथा व इतिहास

इसका बहुत अधिक महत्व होता हैं. इस दिन छठी माता की पूजा की जाती हैं और छठी माता बच्चो की रक्षा करती हैं. इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता हैं. इसके पीछे के पौराणिक कथा हैं :

बहुत समय पहले एक राजा रानी हुआ करते थे. उनकी कोई सन्तान नहीं थी. राजा इससे बहुत दुखी थे. महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये. राजा ने उनकी सेवा की महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई लेकिन उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा रानी अत्यंत दुखी थे जिस कारण दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया. जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करे जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी. दोनों राजा रानी ने विधि के साथ छठी की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई.तब ही से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती हैं.

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