चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिन की नवरात्रि आराधना आज 25 मार्च से शुरू हो गई. आज देवी दुर्गा की पूजा के लिए सबसे पहले कलश स्थापना शुभ मुहूर्त में की जाएगी. उसके पश्चात दुर्गा सप्तशती के पाठ और आरती के साथ पूरे नौ दिन मां के नौ स्वरूपों की आराधना देशभर में की जाएगी. प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर रामनवमी तक मां दुर्गा का यह पर्व मनाया जाएगा. नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग स्वरूप की पूजाकी जाती है.नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-उपासना की जाती है. पर्वतों के राजा शैल की सुपुत्री होने के कारण इनको शैलपुत्री नाम दिया गया. माता प्रकृति की देवी हैं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है. मां शैलपुत्री को ही देवी पार्वती का अवतार माना जाता हैं. देवी शैलपुत्री का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ है और इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं. नवदुर्गाओं में प्रथम पूज्य देवी शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनेक हैं.
नवदुर्गा में प्रथम पूज्य देवी शैलपुत्री को लेकर एक कथा काफी प्रसिद्ध है.
कहा जाता है, एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ आयोजित किया.इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया. जब माता सती को यह जानकारी हुई कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं. शंकरजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, लेकिन उन्हें नहीं बुलाया गया है ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है. लेकिन पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता की जिद के आगे शंकरजी को उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति देनी पड़ी. लेकिन सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ उनकी मां ने ही उन्हें स्नेह दिया.सती ने देखा कि उनके पिता के घर में कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है.बहनों की बातों में उनके लिए व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे.
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत तकलीफ पहुँचा. उन्होंने वहां भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भी भरा हुआ दिखा. यहां तक की उनके पिता दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक शब्द भी कहे.यज्ञ के पूजन में सभी देवी देवताओं को स्थान दिया गया लेकिन शंकर जी को स्थान नहीं दिया गया. यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से तप उठा. उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर उन्होने बहुत बड़ी गलती कर दी है.
सती अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ बेदी में ही कूदकर अपने प्राणों की आहूती दे दी. इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी क्रोधित हुए और दक्ष के उस यज्ञ को भंग कर दिया.सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्इ. पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं. देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. नवदुर्गा में यही देवी प्रथम दुर्गा हैं. शैलपुत्री ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं.
श्रीमार्कण्डेय पुराणान्तर्गत श्रीदुर्गासप्तशती में भगवती को स्तुति करते हुए देवता कहते हैं—
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।
देवि,तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो़
जो लोग तुम्हारी शरण में आते हैं, उन पर कभी विपत्ति आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में जाने वाला मनुष्य दूसरों को शरण देने का योग्य हो जाते हैं. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिए समस्त संसार में व्याप्त एक ही तत्व है, वह है देवीतत्व या शक्तितत्व.भगवती, इससे बढ़ कर स्तुति करने के लिए और रखा भी क्या है.
देवी शैलपुत्री का ध्यान इन श्लोक व मंत्र से करना चाहिए.
श्लोक:
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
मंत्र:
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
Prabhatkhabar.com की तरफ से आप सबों को हिंदू नूतन वर्ष व चैत्र नवरात्र की अनेकों शुभकामनाएं. इस नवरात्र व नव वर्ष में हम आपके बेहतर सेहत की कामना करते हैं और देश के लिए चुनौती बने कोरोना संक्रमण से बचे रहने के लिए अपने – अपने घरों में ही सुरक्षित रहने का निवेदन करते हैं.