नया साल, हिंदू नववर्ष Hindu new year भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है. इसे नवसंवत्सर कहते हैं.हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे. इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है. हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है. ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र 1 रविवार था. इस वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी पहली तिथि से हिन्दू नववर्ष 2077 का प्रारंभ हो जाएगा.इस दिन से ही कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्रि का भी शुभारंभ हो जाएगा.
चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था. हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है. इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है . हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है .
पेड़-पोधों मे फूल ,मंजर ,कली इसी समय आना शुरू होते है , वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है . जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है .इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था .भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था . नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है. जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है .
परम पुरुष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है. इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है. वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है. चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया.
न शीत न ग्रीष्म पूरा पावन काल. ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए, श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था . आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी . यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है .संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल “विक्रम संवत्सर विक्रम संवत” का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है.
चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास.मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास.यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त चैत्र में होता है . सारी वनस्पति और सृष्टि पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में प्रस्फुटित होती है . चारों ओर पकी फसल का दर्शन होता है जो आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है. खेतों में हलचल, फसलों की कटाई , हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें मनमोहक होती है.चैत्र क्या आता है मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा जाती है.
नई फसल घर मे आने का समय भी यही है . इस समय प्रकृति मे उष्णता बढने लगती है , जिससे पेड़ -पौधे , जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है . लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय गीत गुनगुनाने लगते है .चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है , मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है.
सूर्य-चंद्र और ग्रह-नक्षत्रों पर आधारित हिंदू महीनों का नाम रखा गया है. जैसे- चित्रा नक्षत्र के आधार पर चैत्र, विशाखा के आधार पर बैसाख, ज्येष्ठा के आधार पर ज्येष्ठ, उत्तराषाढ़ा पर आषाढ़, श्रवण के आधार पर श्रावण आदि.
हिंदू पंचांग की गणना के आधार पर यह कई हजारों साल पहले बता दिया था कि किस दिन, किस समय पर सूर्यग्रहण होगा.जो आज भी यह गणना सही और सटीक साबित हो रही है.तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चंद्रग्रहण पूर्णिमा को ही होगा तय है. इस आधार पर दिन-रात, सप्ताह, महीने, साल और ऋतुओं का निर्धारण हुआ.वैदिक परंपरा में 12 महीनों और 6 ऋतुओं के चक्र यानी पूरे वर्ष की अवधि को संवत्सर नाम दिया गया. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तिथि माना गया है. विक्रम संवत् भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू किया था.चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के जिस दिन (वार) से विक्रमी संवत शुरू होता है, वही इस संवत का राजा होता है. सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है, तो वह संवत का मंत्री होता है. समस्त शुभ कार्य इसी पंचांग की तिथि से ही किए जाते हैं.