Chaitra Navratri 2021 Puja Timing, Vidhi: अमृतसिद्धि और सर्वार्थसिद्धि योग कुछ घंटों में हो जाएगा समाप्त, ऐसे करें कलश स्थापना, जानें मां शैलपुत्री पूजा विधि, मंत्र, आरती
Chaitra Navratri 2021, Ma Durga Puja Vidhi, Kalash Sthapana Vidhi, Samagri List: हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार नौ दिनों का चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल, मंगलवार से शुरू हो रहा है. हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से बासंतिक या चैत्र नवरात्रि के आरंभ होने की परंपरा है. इस दौरान मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों का नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना होता है. ऐसे में आइये जानते है. कलश स्थापना विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, सभी स्वरूपों की तिथि, व पूजन विधि व अन्य डिटेल्स...
मुख्य बातें
Chaitra Navratri 2021, Ma Durga Puja Vidhi, Kalash Sthapana Vidhi, Samagri List: हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार नौ दिनों का चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल, मंगलवार से शुरू हो रहा है. हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से बासंतिक या चैत्र नवरात्रि के आरंभ होने की परंपरा है. इस दौरान मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों का नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना होता है. ऐसे में आइये जानते है. कलश स्थापना विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, सभी स्वरूपों की तिथि, व पूजन विधि व अन्य डिटेल्स…
लाइव अपडेट
देवी ब्रह्मचारिणी स्त्रोत
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी ध्यान
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
माँ शैलपुत्री स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां शैलपुत्री प्रार्थना
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी प्रार्थना
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
देवी ब्रह्मचारिणी मंत्र
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
Om Devi Brahmacharinyai Namah॥
क्या है ब्रह्मचारिणी पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिसकी कुंडली में मंगल की स्थिति खराब होती है उन्हें देवी ब्रह्मचारिणी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. जैसा कि ज्ञात हो मंगल कमजोर होने शादी-ब्याह में भी दिक्कतें आती है.
मां ब्रह्मचारिणी का इतिहास
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो मां कुष्मांडा रूप के बाद जब देवी माता पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर जन्म लिया था तो उनके अविवाहित रूप को ही मां ब्रह्मचारिणी माना गया.
मां शैलपुत्री पूजा विधि और महत्व
मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं पसंद होती हैं,
ऐसे में पूजा करते समय उन्हें सफेद वस्त्र या सफेद फूल जरूर अर्पित करें
भोग के तौर पर भी उन्हें सफेद मिष्ठान अर्पित करना बेहद फलदायी माना गया है
मां शैलपुत्री की पूजा विधि पूर्वक करने से मनोवांछित फल मिलते है.
कुंवारी कन्याओं को विशेष तौर पर इनकी पूजा करनी चाहिए, इससे उत्तम वर की प्राप्ति होती है
शैल का अर्थ होता है पत्थर या पहाड़ होता है
इनका व्रत रखने से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है
सती और शैलपुत्री की पूरी कहानी
पौराणिक कथाओं की मानें तो एक बार राजा दक्ष के स्वागत के लिए सभी लोग सम्मान में खड़े हो गए. लेकिन, भगवान शिव शंकर अपने स्थान पर खड़े नहीं हुए. यह देखकर राजा दक्ष को अपमानित महसूस हुआ. आपको बता दें कि दक्ष की पुत्री सती थी. दक्ष ने इस अपमान का बदला लेने की ठानी और घर पर एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया, लेकिन शिव जी नहीं.
बावजूद इसके सती की जिद्द पर भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. जब वहां पहुंचीं, तो मां के अलावा किसी ने ध्यान नहीं दिया, सबने अनदेखा किया और पिता दक्ष ने भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द बोला. जिसे सुन मां सती को रहा नहीं गया और वे यज्ञ वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दी. इसके बाद उनका अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ जहां उनका नाम शैलपुत्री रखा गया.
जय अम्बे गौरी (Jai Ambe Gauri)
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली...(Maa Durga Aarti Lyrics)
अम्बे तू है जगदम्बे काली, अम्बे तू है जगदम्बे काली।।
जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गाये भारती ।।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
तेरे भक्त जनो पर, भीर पड़ी है भारी मां।।
दानव दल पर टूट पड़ों, मां करके सिंह सवारी।।
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, अष्ट भुजाओ वाली।।
दुष्टो को पलमे संहारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
मां बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाताद्ध।।
पूत कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता ॥
सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।।
दुखियो के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना मां ।।
हम तो मांगे मां तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।।
सतियों के सत को सवांरती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
चरण शरण मे खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली ।।
वरद हस्त सर पर रख दो, मां सकंट हरने वाली ।।
मं भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वाली ।।
भक्तों के कारज तू ही सारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
कौन है मां शैलपुत्री
हिमालय पर्वत पूत्री के रूप में जन्मी देवी ही मां शैलपुत्री है. दरअसल, शैल का संस्कृत में अर्थ होता है पर्वत. जो उनके पिता थे. अत: उन्हीं के नाम पर देवी शैलपुत्री का नामांकरण हुआ.
देवी शैलपुत्री का मंत्र जाप
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
(Om Devi Shailaputryai Namah॥)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी....यहां से पढ़ें दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
कन्या राशि वाले अति सुगंधित पुष्प करें अर्पित
इस नवरात्रि कन्या राशि के जातक अति सुगंधित पुष्प मां को अर्पित करें. जिससे माता की विशेष कृपा आपको मिलेगी. इसके लिए गुड़हल, गेंदा, गुलाब, हरसिंगार से भी आराधना कर सकते हैं.
कितने से कितने बजे तक अमृतसिद्धि और सर्वार्थसिद्धि योग
आपको बता दें कि 13 अप्रैल, मंगलवार यानी आज कलश स्थापना का बेहद शुभ मुहूर्त आरंभ हो चुका है. अमृतसिद्धि योग सुबह 06 बजकर 11 मिनट से शुरू हो चुका है जो दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक रहेगा और सर्वार्थसिद्धि योग सुबह 06 बजकर 11 मिनट से शुरू हुआ है यह भी दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक समाप्त हो जाएगा.
गुड़हल का फूल चढ़ाएं सिंह राशि वाले
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां को सिंह राशि वाले गुड़हल का पुष्प चढ़ाएं इसके अलावा कनेर, कमल, गुलाब पूष्प भी आप अर्पित कर सकते हैं. कहा जाता है कि भगवान सूर्य और मां दुर्गे को ये फूल बेहद पसंद होते हैं.
कर्क राशि के जातक मां को अर्पित करें श्वेत या गुलाबी फूल
कर्क राशि के जातक संभव हो तो श्वेत कमल, श्वेत कनेर फूल चढ़ाएं इसके अलावा आप गेंदा, गुडहल, सदाबहार, चमेली फूल भी चढ़ा सकते हैं. कोशिश करें कि श्वेत या गुलाबी पुष्प ही आप माता को अर्पित करें. ज्यादा लाभकारी होगा. इससे चन्द्र दोष से मुक्ति मिलेगी.
कलश स्थापना विधि (Kalash Sthapana Vidhi)
स्नानादि कर लें और स्वच्छ वस्त्र पहनें
फिर मंदिर को अच्छी तरह साफ करके गंगा जल से शुद्ध कर लें
अब लकड़ी का पाटा लें, उसपर लाल अथवा सफेद रंग का कपड़ा बिछा दें
कपड़े पर थोड़ा अक्षत रखें
उसपर मिट्टी के बर्तन रखकर जौ बोएं
अब बर्तन के ऊपर कलश रख दें फिर इसमें स्वास्तिक बना लें
कलावा या मौली से इसे चारो ओर बांधें
अब कलश में थोड़ा अक्षत डालें और सुपाड़ी व सिक्का भी डाल दें
इसके ऊपर से आम या अशोक के पत्ते डाल दें
अब कलश के ऊपर एक नारियल रखें. इससे पहले उसे चुनरी से लपेट दें और कलावा से अच्छी तरह बांध दें
फिर मां दुर्गा के सभी स्वरूपों का आव्हान करें, कलश स्थापना मंत्र पढ़ें, दीपक जलाएं
घटस्थापना के अन्य शुभ मुहूर्त
अमृतसिद्धि योग: 13 अप्रैल, सुबह 06 बजकर 11 मिनट से शुरू हो चुका है जो दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक
सर्वार्थसिद्धि योग: 13 अप्रैल, सुबह 06 बजकर 11 मिनट से दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: 13 अप्रैल, दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक
अमृत काल मुहूर्त: 13 अप्रैल, सुबह 06 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 03 मिनट तक
ब्रह्म मुहूर्त: 13 अप्रैल, सुबह 04 बजकर 35 मिनट से सुबह 05 बजकर 23 मिनट तक
जानें घटस्थापना के सभी शुभ मुहूर्त
घटस्थापना तिथि: 13 अप्रैल 2021, मंगलवार को
घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 05 बजकर 28 मिनट से 10 बजकर 14 मिनट तक
कुल घटस्थापना अवधि: 04 घंटे 15 मिनट तक
घटस्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त आरंभ: सुबह 11 बजकर 56 मिनट से
घटस्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त समाप्त: दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक
मिथुन राशि
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को पीले पुष्प चढाना चाहिए. इसके लिए आप कनेर, गुड़हल, गेंदा, द्रोणपुष्पी या केवड़ा के फूल से पूजा कर सकते हैं.
अखंड ज्योति के लिए आपको इन सामग्री
नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाए रखना चाहिए. इसके लिए आपको पर्याप्त मात्रा में शुद्ध घी, बड़ा मिट्टी या पीतल दीपक, बाती और थोड़ा अक्षत की जरूरत भी पड़ेगी. साथ ही साथ दीपक बुझे न इसके लिए कांच के शीशा का ढक्कन भी जरूरत पड़ेगा.
वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों को चैत्र नवरात्रि के दिन श्वेत कमल, सदाबहार, श्वेत कनेर, हरसिंगार, गुडहल, बेला आदि सफेद रंग पुष्पों से मां दुर्गा को अर्पित करें.
मेष राशि
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मेष राशि के जातकों को गुड़हल, लाल कमल, गुलाब, लाल कनेर या अन्य तरह के लाल पुष्प से मां भगवती को प्रसन्न करना चाहिए.
चैत्र नवरात्र शुरू, आज मां दुर्गे के इस स्वरूप की करें पूजा
आज, 13 अप्रैल, मंगलवार से चैत्र नवरात्रि (Chaitra navratri 2021) पर्व की शुरूआत हो चुकी है. नवरात्रि में मां दुर्गा (Maa Durga) के सभी 9 स्वरूपों की पूजा करने की परंपरा होती है. वहीं, नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री (Mata Shailputri) की पूजा करने का विधान होता है और नवमी को माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम मां शैलपुत्री पड़ा था.
कब है महानिशा पूजा
नवरात्र में महानिशा पूजा सप्तमी युक्त अष्टमी या मध्य रात्रि में निशीथ व्यापिनी अष्टमी में की जाती है. इस साल चैत्र नवरात्रि में महानिशा पूजा 20 अप्रैल को की जानी है.
पूजा सामग्री का है विशेष महत्व
नवरात्रि में प्रतिपदा (Navratri First Day) यानी कि पहले दिन प्रातः जौ-बोने , कलश स्थापना और दिया प्रज्वलित करने के साथ मां नव दुर्गा की पूजा का शुभारम्भ होता है. नवरात्रि पूजा में अलग-अलग तरह की पूजा सामग्री का विशेष महत्व है.
नवरात्रि 2021 में इस्तेमाल में लाएं ये 9 पौधों की पत्तियां
केले का पत्र
दारूहलदी (कवी) पत्र
हल्दी पत्र
बेल पत्र
अनार पत्र
अशोक पत्र
जयंती पत्र
धान पत्र
अमलतास पत्र
मां दुर्गा का वाहन (Maa Durga Vahan)
इस चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा घोड़े की सवारी करके आयेंगी और नर वाहन पर सवार होकर विदा हो जायेंगी.
मां ब्रह्मचारिणी का इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा रूप के पश्चात देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर में एक नए रूप में जन्म लिया. यह स्वरूप ही मां ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इन्हें सती के रूप में भी जाना जाता है.
कलश स्थापना मुहूर्त
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 13 अप्रैल को प्रातः 5:45 बजे से प्रातः 9:59 तक और अभिजीत मुहूर्त पूर्वाह्न 11: 41 से 12:32 तक का होगा.
नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना
नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में व्रत रखने का बहुत अधिक महत्व होता है. इन नौ दिनों में व्रत रखने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसके लिए विशेष तरह की पूजन विधि है. नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री (Mata Shailputri) स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि में प्रतिपदा (Navratri First Day) के दिन प्रातः जौ-बोने , कलश स्थापना और दिया प्रज्वलित करने के साथ मां नव दुर्गा की पूजा का शुभारम्भ होता है.
Chaitra Navratri 2021 पर कैसे करें कलश स्थापना और क्या है शुभ मुहूर्त
पूजा की क्या-क्या सामग्री है जरूरी
नवरात्रि पूजा में अलग-अलग तरह की पूजा सामग्री का विशेष महत्व है. पूजन विधि तभी पूरी होती है जब पूजा की सभी सामग्री मौजूद हो. इसके लिए जरूरी है पहले यह जानना कि पूजा की क्या-क्या सामग्री होती है.
चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी
नवरात्रि में प्रतिपदा (Navratri First Day) के दिन प्रातः जौ-बोने , कलश स्थापना और दिया प्रज्वलित करने के साथ मां नव दुर्गा की पूजा का शुभारम्भ होता है. इस बार चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी.
इन चीजों का खुद करना होगा जुगाड़
आम के पत्ते , पानी वाला जटायुक्त नारियल, हवन के लिए आम की लकड़ी, पुष्प, फूलों का हार
चैत्र नवरात्र पूजा में लगने वाली पूजन सामग्री
मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप,वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, पानी वाला जटायुक्त नारियल, दुर्गासप्तशती किताब, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पांच मेवा, घी, लोबान,गुग्गुल, लौंग, कमल गट्टा,सुपारी, कपूर. और हवन कुंड, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, शहद, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल रेशमी चूड़ियां, सिंदूर, आम के पत्ते, लाल वस्त्र, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस, कलश, साफ चावल, कुमकुम,मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल ,फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, दुर्गा चालीसा व आरती की किताब,कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ आदि.
नवरात्रि घटस्थापना पूजा विधि
सबसे मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएं
अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें
आम या अशोक के पत्तों को कलश के ऊपर रखें
नारियल में कलावा लपेटे
उसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पत्तों के मध्य रखें
घटस्थापना पूरी होने के पश्चात् मां दुर्गा का आह्वान करते हैं
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
दिन- मंगलवार
तिथि- 13 अप्रैल 2021
शुभ मुहूर्त- सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट तक।
अवधि- 04 घंटे 15 मिनट
घटस्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक।
गर्मी में रख रहें नवरात्रि का व्रत तो इन फलों का जरूर करें सेवन
यदि गर्मी में आप भी रख रहें नवरात्रि का व्रत तो जिसमें फूड पदार्थ या फल में पानी की मात्रा अधिक होती है उसका सेवन जरूर करें. ऐसा करने से नौ दिनों तक आपका शरीर व्रत के बावजूद ज्यादा कमजोर नहीं होगा. ये फल आपके बॉडी में कम हो रही पानी की मात्रा को बनाएं रखने में मददगार साबित हो सकते हैं. अत: चैत्र नवरात्रि के दौरान इन फलों का करें सेवन...
तरबूज
लौकी
पपीता
केला
सिंघाड़े फलों का जरूर करें सेवन
कब है नवमी की तिथि
13 अप्रैल दिन मंगलवार को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की तिथि से नवरात्रि प्रारंभ हो रहा है. वहीं, पंचांग के अनुसार नवमी की तिथि 21 अप्रैल को शुरू हो रही है और व्रत का पारण दशमी तिथि 22 अप्रैल को होगा.
कलश स्थापना विधि (Kalash Sthapana Vidhi)
सुबह जल्दी उठें
स्नानादि करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें
घर के मंदिर को अच्छे से साफ करें, गंगा जल से शुद्ध कर लें
एक लकड़ी का पाटा लेकर, उसपर लाल या सफेद रंग का कपड़ा बिछा दें
फिर कपड़े पर अक्षत रखें और मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं
इसके बाद बर्तन के ऊपर कलश रख दें
इसमें स्वास्तिक बनाएं
कलावा या मौली बांधें
कलश में सुपाड़ी, सिक्का और अक्षत डाल दें
ऊपर अशोक के पत्ते या आम के पत्ते रखें
एक नारियल लें और उसे चुनरी से लपेट दें
फिर इसमें भी कलावा या मौली बांधें
अब मां दुर्गा के सभी स्वरूपों का आव्हान करें
दीप जलाएं और कलश के आगे अगरबत्ती जलाएं और मंत्र पढ़ें
देवी ब्रह्मचारिणी मंत्र
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
(Om Devi Brahmacharinyai Namah)
नवरात्रि पूजा से पूर्व जरूर करें ये पांच काम
मन और शारिरीक स्वच्छता के अलावा घर की स्वच्छता भी जरूरी
पूजा स्थान को गंगा जल से करें शुद्ध
घर या मंदिर के मुख्य द्वार पर बनाएं स्वास्तिक का चिन्ह
पूजा से पूर्व मौन धारण कर बुरे विचार को करें समाप्त
मांस-मछली और लहसुन-प्याज का सेवन बिल्कुल भी न करें
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
देवी ब्रह्मचारिणी को नंगे पांव दर्शाया गया है.
उनकी दो भुजाएं है
दाहिने हाथ में जपने वाली माला है
तो बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं.
घटस्थापना के दौरान बन रहे ये दो योग
घटस्थापना के दौरान बन रहा है सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग. जिसके कारण कलश स्थापना का महत्व और बढ़ जाएगा.
ब्रह्मचारिणी पूजा का महत्व
यदि जातक के कुंडली में मंगल खराब या कमजोर हो तो विवाह समेत कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. ऐसे में देवी ब्रह्मचारिणी की विधिपूर्वक पूजा उन्हें अवश्य करनी चाहिए.
मां ब्रह्मचारिणी का इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा रूप के पश्चात देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर में एक नए रूप में जन्म लिया. यह स्वरूप ही मां ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इन्हें सती के रूप में भी जाना जाता है.
चैत्र नवरात्रि में कब होगी देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी. इस बार यह तिथि 14 अप्रैल को पड़ेगी.
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री पूजा
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के साथ मां शैलपुत्री पूजा करने की परंपरा होती है. इन्हें हिमालय पुत्री भी कहा जाता है. जिन्हें पूजने से चंद्र दोष दूर होता है. उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है.
आज का पंचांग, 12 अप्रैल 2021, सोमवार
चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या दिन 06 बजकर 58 मिनट के उपरांत प्रतिपदा
श्री शुभ संवत -2077, शाके-1942,हिजरी सन- 1441-42
सूर्योदय -05:44
सूर्यास्त -06:16
सूर्योदय कालीन नक्षत्र- रेवती उपरांत अश्विनी, वैधृति-योग, ना- करण
सूर्योदय कालीन ग्रह विचार- सूर्य-मीन,चंद्रमा-मीन,मंगल-वृष,बुध-मीन,गुरु-कुम्भ,शुक्र - मेष,शनि-मकर,राहु-वृष,केतु -वृश्चिक
किस सवारी पर आयेंगी मां दुर्गे, क्या है इसके मायने
धार्मिक पुराणों के अनुसार नवरात्रि पर मां का घोड़े पर आना अशुभ संकेत होता है.
इससे देश पर आर्थिक संकट गहराने का संकेत हो सकता है
पड़ोसी देश से सीमा विवाद होने की संभावनाएं बढ़ जाती है
प्राकृतिक आपदा जैसे आंधी, तूफान, भूकंप आदि के संकेत होते हैं.
यही नहीं ये सत्ता पर बैठे लोगों के लिए भी चुनौती भरा समय खड़ा कर सकता है
नवरात्रि 2021 में इस्तेमाल में लाएं ये 9 पौधों की पत्तियां
केले का पत्र
दारूहलदी (कवी) पत्र
हल्दी पत्र
बेल पत्र
अनार पत्र
अशोक पत्र
जयंती पत्र
धान पत्र
अमलतास पत्र
घटस्थापना के अन्य शुभ मुहूर्त
अमृतसिद्धि योग: 13 अप्रैल का सुबह 06 बजकर 11 मिनट से दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक
सर्वार्थसिद्धि योग: 13 अप्रैल का सुबह 06 बजकर 11 मिनट से दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: 13 अप्रैल का दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक
अमृत काल मुहूर्त: 13 अप्रैल का सुबह 06 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 03 मिनट तक
ब्रह्म मुहूर्त: 13 अप्रैल का सुबह 04 बजकर 35 मिनट से सुबह 05 बजकर 23 मिनट तक
नवरात्रि पूजा सामग्री सूची
मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो,
कपूर, धूप, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य,
केसर, चौकी, रोली, मौली, सुगंधित तेलबेलपत्र, कमलगट्टा,
मेंहदी, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, सुपारी साबुत, पटरा, आसन,
पुष्प, दूर्वा, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्पहार,
वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, बिंदी, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल, रेशमी चूड़ियां, सिंदूर,
मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, आदि
पहले दिन होगी मां शैलपुत्री की पूजा (Maa Shailputri Puja Vidhi)
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना करने की विधि होती है. इसी के साथ मां शैलपुत्री के स्वरूप की पूजा भी शुरू हो जाती है. शैलपुत्री देवी को दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम रूप माना गया है. हिमालय पुत्री देवी शैलपुत्री को पूजने से चंद्र दोष दूर होता है. उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है.
मां दुर्गा का वाहन (Maa Durga Vahan)
इस चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा घोड़े की सवारी करके आयेंगी और नर वाहन पर सवार होकर विदा हो जायेंगी.
चैत्र अमावस्या या सोमवती अमावस्या आज (Chaitra Amavasya 2021, Somwati Amavasya 2021)
चैत्र नवरात्रि 2021 से एक दिन पहले चैत्र अमावस्या या सोमवती अमावस्या पूजा की जायेगी. हिंदू धर्म में इस पर्व का खासा महत्व होता है. चैत्र अमावस्या का शुभ मुहूर्त 11 अप्रैल से ही शुरू हो रहा है 12 अप्रैल तक रहेगी. इस दिन पीपल के वृक्ष और चंद्रमा की पूजा का महत्व होता है.
कब कौन से स्वरूप की होगी पूजा (Chaitra Navratri 2021 Dates)
प्रतिपदा तिथि: मां शैल पुत्री की पूजा और घटस्थापना
द्वितीया तिथि: मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीया तिथि: मां चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी तिथि: मां कुष्मांडा पूजा
पंचमी तिथि: मां स्कंदमाता पूजा
षष्ठी तिथि: मां कात्यायनी पूजा
सप्तमी तिथि: मां कालरात्रि पूजा
अष्टमी तिथि: मां महागौरी
नवमी तिथि: मां सिद्धिदात्री और रामनवमी पूजा
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त (Kalash Sthapana Shubh Muhurat 2021)
कलश स्थापना का पहला शुभ मुहूर्त: 13 अप्रैल की सुबह 5 बजकर 58 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट तक
कलश स्थापना का दूसरा शुभ (अभिजित) मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक
Posted By: Sumit Kumar Verma