Chaitra Navratri 2022: हिंदी वर्ष का प्रथम नवरात्र जिसे वासंतिक नवरात्र या (चैत नवरात्र) कहते हैं. इसका शुभारम्भ आज यानी दो अप्रैल शनिवार से हो रहा है. नवरात्रि घटस्थापना एक महत्वपूर्ण कार्य है, उस दौरान जौ बोना भी उसका ही हिस्सा है. कलश के नीचे उगने वाले जौ हमारे भविष्य के बारे में कुछ संकेत देते हैं.
चैत्र नवरात्रि 2022 कलश स्थापना मुहूर्त
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 01 अप्रैल, शुक्रवार, समय 11:53 एएम पर
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि समापन: 02 अप्रैल, शनिवार, समय 11:58 एएम पर
कलश स्थापना का शुभ समय
02 अप्रैल, सुबह 06:10 बजे से सुबह 08:31 बजे तक
दोपहर 12 बजे से 12:50 बजे तक
सबसे पहले मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएं. अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें. आम या अशोक के पत्तों को कलश के ऊपर रखें. नारियल में कलावा लपेटें. उसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पत्तों के मध्य रखें. घटस्थापना पूरी होने के बाद मां दुर्गा का आह्वान करें.
मां शैलपुत्री आदिशक्ति मां दुर्गा की प्रथम स्वरुप हैं. नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी ही पूजा करते हैं. इन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर कन्या के रुप में जन्म लिया था. उनका नाम शैत्रपुत्री रखा गया. पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव के अपमान के लिए सती और महादेव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, तो सती शिव जी के समझाने के बावजूद यज्ञ में चली गईं. वहां महादेव के अपमान से दुखी होकर यज्ञ के अग्नि कुंड में आत्मदाह कर लिया. वही सती अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्ध हुईं. इन्हीं को पार्वती और हेमवती भी कहते हैं. इनका विवाह भगवान शिव से हुआ.
शैलपुत्री नवजात शिशु की स्थिति को संबोधित करती है, जो निर्दोष और शुद्ध है. देवी शैलपुत्री मूल रूप से महादेव की पत्नी पार्वती हैं. देवी पार्वती अपने पिछले जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं और उस जन्म में भी वह महादेव की पत्नी थीं. सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में महादेव का अपमान सहन करने में असमर्थ होकर योग अग्नि में खुद को भस्म कर दिया. इसके बाद उन्होंने हिम राजा हिमवान के घर में पार्वती के रूप में अवतार लिया. पर्वतराज हिमालय के घर कन्या के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा.
मां शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है. यह देवी वृषभ पर विराजमान हैं, जो पूरे हिमालय पर शासन करती हैं. ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. उनका पसंदीदा पुष्प गुड़हल का फूल माना जाता है, और रंग धूसर है.
शैलपुत्री नवजात शिशु की स्थिति को संबोधित करती है, जो निर्दोष और शुद्ध है. देवी शैलपुत्री मूल रूप से महादेव की पत्नी पार्वती हैं. देवी पार्वती अपने पिछले जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं और उस जन्म में भी वह महादेव की पत्नी थीं. सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में महादेव का अपमान सहन करने में असमर्थ होकर योग अग्नि में खुद को भस्म कर दिया. इसके बाद उन्होंने हिम राजा हिमवान के घर में पार्वती के रूप में अवतार लिया. पर्वतराज हिमालय के घर कन्या के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा.
”ओम देवी शैलपुत्रायै नमः” का जाप करें.
02 अप्रैल- प्रतिपदा- मां शैलपुत्री पूजा और घटस्थापना
03 अप्रैल- द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
04 अप्रैल- तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा
05 अप्रैल- चतुर्थी- मांकुष्मांडा पूजा
06 अप्रैल- पंचमी- मां स्कंदमाता पूजा
07 अप्रैल- षष्ठी- मां कात्यायनी पूजा
08 अप्रैल- सप्तमी- मां कालरात्रि पूजा
09 अप्रैल- अष्टमी- मां महागौरी
10 अप्रैल- नवमी- मां सिद्धिदात्री, रामनवमी