Chanakya Niti: निराशा की पहली किरण है ईर्ष्या, जानें आचार्य चाणक्य ने क्यों बताया था जीवन को अनमोल…
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य का मानना था जीवन अनमोल है, जो व्यक्ति जीवन का महत्व नहीं समझता है वह पशु के समान है. मनुष्य को जीवन का दर्शन समझना चाहिए, ये ईश्वर और प्रकृति का दिया हुआ ऐसा उपहार है जिसकी जितनी सराहना और कृतज्ञता व्यक्त की जाए कम है. चाणक्य ने मनुष्य के जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए कई विचार दिए है.
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य का मानना था जीवन अनमोल है, जो व्यक्ति जीवन का महत्व नहीं समझता है वह पशु के समान है. मनुष्य को जीवन का दर्शन समझना चाहिए, ये ईश्वर और प्रकृति का दिया हुआ ऐसा उपहार है जिसकी जितनी सराहना और कृतज्ञता व्यक्त की जाए कम है. चाणक्य ने मनुष्य के जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए कई विचार दिए है. इन विचारों को उन्होंने अपनी चाणक्य नीति में समाहित किया. मनुष्य के जीवन को लेकर चाणक्य के विचारों को यदि अमल में लाया जाए तो मनुष्य के जीवन आने वाले तमाम दुख और कष्ट दूर हो जाएंगे.
संस्कार, ज्ञान और विज्ञान से आते हैं अच्छे विचार
मनुष्य के लिए अच्छे विचार होना बहुत ही जरूरी होता है, अच्छे विचार व्यक्ति को खुशहाल रखता है. जीवन में जितनी सकारात्मकता होगी जीवन उतना ही खुशहाल होता है. जीवन में सकारात्मकता आती है अच्छे विचारों से, और अच्छे विचार आते हैं संस्कार, ज्ञान और विज्ञान से. जो लोग इन चीजों को अपने जीवन में आत्मसात करते हुए आगे बढ़ते हैं वे जीवन का सही अर्थ जानते हैं. व्यक्ति को जीवन में निराशा के भाव कभी नहीं आने देना चाहिए, इससे आत्मविश्वास में कमी आती है. अपने मेहनत पर भरोसा करते हुए कार्य करते रहना चाहिए. परिणाम कुछ भी हों. ध्यान रहे मेहनत से किया गया श्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता है. जीवन के कई मोड़ों पर यह काम आता है. जीवन में किसी से कभी जलन या ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, इनसे जितना हो सके दूर रहने की चेष्टा करनी चाहिए, क्योंकि जीवन में निराशा की पहली किरण ईर्ष्या है.
निंदा से दूर रहने वाले व्यक्ति होते हैं बुद्धिजीवी व प्रतिभाशाली
चाणक्य ने निंदा को महारोना माना है, इससे ग्रस्त व्यक्ति को यह अनुमान ही नहीं होता कि परनिंदा के कारण वह अपने बहुमूल्य समय और कार्य को व्यर्थ कर रहा है. व्यक्ति को निंदा से बचकर रहना चाहिए. जो व्यक्ति निंदा से बचकर रहता है, वे आगे अपने पथ पर बढ़ता रहता है. निंदा से दूर रहने वाले व्यक्ति बुद्धिजीवी और प्रतिभाशाली होते है. इसके जकड़ में आने वाले लोग जीवन भर निंदा रोग से ग्रस्त रहते है. निंदा का उद्गम हीनता और कमजोरी से होता है. कमजोर एवं हीनता से ग्रसित लोग ही परनिंदा करते है. निंदा दूसरे लेागों पर दोषारोपण करना, व्यक्ति जब स्वयं किसी की निंदा करता है तो उसे उसमें बेहद सुख और सुकून अनुभव होता है, लेकिन जब वह खुद निंदा का पात्र बनता है तो उसके आगे तूफान-सा मंजर उपस्थित हो जाता है. वह सोचता है कि उसे ऐसा सबक सिखाए कि जीवन भर याद करेगा. चाणक्य ने कहा है कि निंदा से ग्रस्त व्यक्ति को यह अनुमान ही नहीं होता है कि परनिंदा के कारण वह अपने बहुमूल्य समय और कार्य को वयर्थ कर रहा है.
संतान पर पड़ता है माता-पिता के आचरण का प्रभाव
चाणक्य ने कहा है कि माता-पिता के गुण-अवगुण व आचरण का प्रभाव उसकी संतान पर पड़ता है. यदि मनुष्य बेईमान, चरित्रहीन और दुष्ट प्रवृत्ती का है तो उसकी संतान भी उसके अवगुणों से युक्त होती है. बच्चों को 24 घंटे ईमानदारी एवं सच्चाई का उपदेश देने से ही वे सरल हृदय के और निष्कपट नहीं बनते हैं. बच्चे अपने माता-पिता के आचरण को देखकर वैसे बनते है. बच्चे माता-पिता के परछाई होते है. परछाई उसी दिशा में चलती है, जहां पर वास्तविक स्वरूप चलता है, इसलिए बच्चों को उपदेश देने की बजाय स्वयं उस मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए.