Chanakya Niti : कंगाल बना देती है व्यक्ति की ये आदतें, जितना जल्दी हो सके कर दें त्याग, जानिए क्या कहते है चाणक्य…

Chanakya Niti : चाणक्य श्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं. चाणक्य को राजनीति और कूटनीति का माहिर माना जाता है. चाणक्य के अनुसार व्यक्ति पद और धन से श्रेष्ठ नहीं बनता है. व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से श्रेष्ठ बनता है. इसलिए व्यक्ति को सदैव ही गलत आदतों से दूर रहना चाहिए. क्योंकि गलत आदतें व्यक्ति की प्रतिभा का नाश करती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2021 11:50 AM
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Chanakya Niti : चाणक्य श्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं. चाणक्य को राजनीति और कूटनीति का माहिर माना जाता है. चाणक्य के अनुसार व्यक्ति पद और धन से श्रेष्ठ नहीं बनता है. व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से श्रेष्ठ बनता है. इसलिए व्यक्ति को सदैव ही गलत आदतों से दूर रहना चाहिए. क्योंकि गलत आदतें व्यक्ति की प्रतिभा का नाश करती हैं. इसलिए जीवन में यदि सफल होना है तो इन आदतों से दूर रहना चाहिए. गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आचरण को लेकर मनुष्य को सदैव गंभीर और सर्तक रहना चाहिए. जो व्यक्ति अपने आचरण को लेकर सचेत नहीं रहता है उसे जीवन भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

आचार्य चाणक्य के अनुसार जिन लोगों में ये चार प्रकार की गंदी आदतें होती हैं, उनपर कभी भी मां लक्ष्मी की कृपा नहीं बरसती है. ऐसे लोग यदि धनवान भी होते हैं तो जल्द ही उनके जीवन में दरिद्रता आने लगती हैं. व्यक्ति को आर्थिक जीवन समृद्धशाली बनाने के लिए इन चार आदतों का तुरंत ही त्याग कर देना चाहिए.

बुरी संगत से बचें

व्यक्ति की सफलता में संगत का बहुत बड़ा योगदान होता है. बुरी संगत में बैठने से व्यक्ति की बुद्धि का नाश होता है और फिर गलत काम करने लगता है. विद्वान लोगों के साथ संगत करने से मस्तिष्क का पूर्ण विकास होता है और व्यक्ति चिंतनशील बनती है. वहीं बुरे व्यक्तियों की संगत में बुरी आदतों को सीखता है.

दूसरों की बुराई न करें

निंदा रस से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए. जो व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है और उसकी कमियां देखता है वह व्यक्ति एक दिन स्वयं ही इन अवगुणों से युक्त हो जाता है. आरंभ में तो निंदा रस में आनंद आने लगता है, लेकिन धीरे-धीरे वे सभी अवगुण स्वयं में आने लगते हैं.

अहंकार न करें

चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को अहंकार से बहुत दूर रहना चाहिए. अहंकार में व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भूल करने लगता है और एक दिन यही अहंकार उसके पतन का कारण बन जाता है. रामायण कथा में रावण का चरित्र इसका प्रमुख उदाहरण है. सभी ग्रंथ और विद्वानों की शिक्षाओं का सार यही है कि सफल बनना है तो सर्वप्रथम अहंकार का त्याग करें, अंहकार जब तक रहेगा, वह प्रेम से व्यक्ति को दूर रखेगा.

लालच से बनाएं दूरी

लालच यानि लोभ भी एक प्रकार से व्यक्ति का शत्रु है. इसे हर प्रकार की बुराइयों का कारक माना जाता है. इसलिए लालच से दूर रहना चाहिए. लोभ करने वाला व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं रहता है. लालच के कारण उसका चित्त शांत नहीं रहता है और दूसरों से जलन मानने लगता है.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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