Chaturmas 2024 : शुरू हो रहा है आंतरिक शक्तियों की जागृति का पुण्य काल चातुर्मास

देवशयनी से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं. उनका एक पैर दानवीर राजा बलि के यहां तथा एक पैर क्षीरसागर में रहता है.

By Rajnikant Pandey | July 16, 2024 8:32 PM

Chaturmas 2024 : देवशयनी एकादशी (17 जुलाई, 2024) से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी – 12 नवंबर, 2024) तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं. इस अवधि को ‘चातुर्मास’ कहा गया है. इस दौरान सृष्टि के पालन का दायित्व मां लक्ष्मी संभालती हैं. इसके पीछे संकेत है कि पालनकर्ता भगवान विष्णु जो करते हैं, वह माता लक्ष्मी भी कर सकती हैं.

सलिल पांडेय, मिर्जापुर
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु योग-निद्रा में हो जाते हैं और सृष्टि के पालन का दायित्व मां लक्ष्मी संभालती हैं. भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के 70वें अध्याय के अनुसार, माता लक्ष्मी प्रजापति ब्रह्मा के साथ मिलकर भगवान विष्णु के दायित्व का निर्वाह करती हैं. अलग-अलग एकादशी तिथियों के महात्म्य के क्रम में यह भी उल्लेख है कि देवशयनी से कार्तिक शुक्ल एकादशी जिसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं, की अवधि तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं. उनका एक पैर दानवीर राजा बलि के यहां तथा एक पैर क्षीरसागर में रहता है. इस अवधि को ‘चातुर्मास’ कहा गया है.

इसलिए बढ़ जाती है देवशयनी एकादशी की महत्ता

खान-पान के साथ अनेक संयम बताये गये हैं. इस दौरान शुभकार्य नहीं होते. शास्त्रों का अध्ययन किया जाता है. सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि माता लक्ष्मी को सारा दायित्व सौपने के पीछे नारी को अबला नहीं, बल्कि सबला बनाने का उद्देश्य है. पालनकर्त्ता भगवान विष्णु जो करते हैं, वह माता लक्ष्मी भी कर सकती हैं. महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से भी इस एकादशी की महत्ता बढ़ जाती है. इसी चार मास में कार्तिक अमावस्या दीपावली पर्व पर माता लक्ष्मी का बुद्धि-विवेक के देवता पुत्र रूप गणेश के साथ पूजा की जाती है. चातुर्मास में सामाजिक एवं पारिवारिक समरसता भी परिलक्षित होता है. त्रिदेवों के परिवार का एक एक सदस्य इस अवधि में सक्रिय है. त्रिदेवों में खुद ब्रह्मा, नारायण की भार्या लक्ष्मी एवं शिवपुत्र गणेश, सबका आदर एवं सम्मान हो रहा है. इसके अतिरिक्त शुभ कार्यों को रोककर भूमि से खाद्यान्न के रूप में जीवन पैदा करने का भी संदेश है. माता लक्ष्मी त्रेता में भगवान श्रीराम की भार्या हुईं. उनको भूमिजा माना जाता है. भगवान विष्णु के साथ क्षीरसागर में रहते समय माता लक्ष्मी नीरजा थीं. इस प्रकार देवशयनी से देवोत्थान एकादशी तक माता लक्ष्मी का सीता बनकर श्रीराम के साथ वनगमन की चुनौतियों एवं लोककल्याण के लिए सुख-सुविधा के त्याग के भाव को प्रदर्शित कर रहा है. खुद देवसत्ता द्वारा नारी-गौरव के रूप में वर्ष का एक तिहाई माह निर्धारित किया गया है.

ये चार माह ऊर्जा संचयन का पर्व

देवशयनी एकादशी के आध्यात्मिक पक्ष की गहरी विवेचना की जाये, तो यह पर्व वाह्य जगत के प्रति शयन और आंतरिक पक्ष की जागृति का पर्व है. 12 महीनों के बीच देवशयनी से देवोत्थान एकादशी के चार माह ऊर्जा संचयन का पर्व है. स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार भी उत्तम स्वास्थ्य के लिए 24 घंटे के दौरान आठ घंटे का एक तिहाई समय शयन (सोना) आवश्यक है. सनातन ऋषियों ने निद्रा में भी देवत्व का भाव देखा है. सुकून भरी नींद के लिए ही मार्कण्डेय ऋषि द्वारा रचित श्रीदुर्गासप्तशती के पांचवें अध्याय में ‘या देवी सर्वभूतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’ की प्रार्थना की गयी है. ऋषि ने विष्णुजी की माया शक्ति, मनुष्य की चैतन्यशक्ति, ज्ञान की महत्ता, उत्तम स्वास्थ्य के लिए क्षुधा (भूख) के बाद निद्रा को स्थान दिया है. इसके बाद ही अन्य सांसारिक कामनाओं की आराधना का उल्लेख किया गया है. देवत्व की ऊर्जा के संचयन के वक्त में वामन द्वादशी की तिथि को क्षीरसागर में शयन (योगनिद्रा) कर रहे भगवान विष्णु करवट बदलते हैं. चार माह (लगभग 120 दिन) की अवधि का दो माह (60 दिन) का समय इस दिन पूरा होता है. करवट का बदलना ज्ञान को कर्मोंमुख बनाना है.
इस आधार पर चातुर्मास की अवधि वाह्य आकर्षणों से मुक्त होकर आंतरिक शक्ति की जागृति का काल है. भ्रमणशील ऋषि-मुनि यात्रा स्थगित कर तपस्यारत हो जाते हैं. चार माह की वर्षा और शरद ऋतु में अंतरिक्ष से प्रवाहित शक्तियों को अर्जित करने की यह उत्तम अवधि है.

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चातुर्मास में क्या न खायें
'चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ (यात्रा), अषाढ़े बेल। सावन साग, भादो दही, कुवांर करेला, कार्तिक मही (मट्ठा)' को स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद बताया गया है. सात्विक आहार लेना ही हितकर है.
इस दौरान क्या न करें
झूठ न बोलें. इससे जिह्वा पर बैठी मां सरस्वती को पीड़ा होती है और वे रुष्ट होती हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि भावी पीढ़ी अज्ञानी होती है. साथ में पुण्य नष्ट होता है. साथ ही किसी के साथ छलछद्म न करें, यह महापाप बताया गया है. गोस्वामी तुलसीदास ने 'निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहिं कपट छल-छिद्र न भावा' चौपाई में स्पष्ट कर दिया है.

सोमवार, 22 जुलाई से हो रही है सावन की शुरुआत

इस वर्ष खास संयोग है कि सावन माह की शुरुआत सोमवार, 22 जुलाई को शुभ प्रीति और सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रही है और सोमवार, 19 अगस्त को समाप्त होगी. यह भी संयोग है कि इस बार श्रावण माह में पांच सोमवार हैं- 22 जुलाई, 29 जुलाई, 5 अगस्त, 12 अगस्त और 19 अगस्त.

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