22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Chhath Vrat 2021 : नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू, जानें सबसे पहले किसने किया था छठ व्रत, कहानी

हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है. छठ व्रत की शुरुआत चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है और सप्तमी को इस व्रत का पारण होता है. इस दिन सूर्यदेव की बहन छट मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है.

धार्मिक मान्यता के अनुसार छट का व्रत संतान की प्राप्ति, कुशलता और उसकी दीर्घायु, स्वास्थ लाभ की मंगलकामना के साथ किया जाता है. चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर की जाती है. अगले दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है.

इस साल 8 नवंबर को नहाय-खाय से छठ व्रत का आरंभ हो चुका है. अगले दिन 9 नवंबर को खरना होगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को संध्या सूर्य अर्घ्य दिया और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ पर्व के व्रत का पारण होगा.

सूर्य की बहन है छठी मैया

हिंदू शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष जबकि बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. इसमें सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं माता की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि में षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

Also Read: Chhath 2021 : लोक आस्था का महापर्व छठ 8 नवंबर से, जानें नहाय खाय, खरना का महत्व, विधि और तिथि

ऐसे हुई छठ व्रत की शुरुआत

ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई, तो इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे. महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया. पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया. उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं.

जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा. माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं और मेरा नाम षष्ठी देवी है. मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं. इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया. देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की. मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें