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Chhath Vrat 2021 : सूर्य देव को सभी जानते हैं लेकिन छठी मैया कौन हैं ? यहां पढ़ें जवाब …

आज के समय में छठ व्रत सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं इस व्रत का फैलाव देश-विदेश तक हो चुका है. छठ व्रत में प्रचलित विधि-विधान मन में कई तरह के सवालों को जन्म देते हैं. क्योंकि ज्यादातर लोग इस व्रत की मौलिक बातों से अंजान है. यहां पढ़ें कुछ ऐसे सवाल और जवाब जो अक्सर मन में उठते हैं.

By Anita Tanvi | November 8, 2021 5:28 PM

छठ व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?

छठ व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है. जिन्हें प्रत्‍यक्ष देखा जा सकता है ये धरती पर सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं. छठ व्रत में सूर्य के साथ-साथ छठी मैया या षष्ठी माता की भी पूजा की जाती है. हिंदू पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, षष्‍ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्‍हें स्‍वस्‍थ और दीघार्यु बनाती हैं. यह व्रत अपने आप में अत्यंत खास है क्योंकि इस व्रत में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है.

सूर्य को सभी जानते हैं लेकिन छठी मैया कौन हैं?

सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के 6वें अंश को देवसेना कहा गया है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का नाम षष्‍ठी है. षष्‍ठी देवी ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं. पुराणों में इनका एक नाम कात्‍यायनी भी है. इनकी पूजा नवरात्र में षष्‍ठी तिथि को होती है. इन्हीं षष्‍ठी देवी को छठी मैया कहा गया है.

शास्त्रों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां है?

शास्‍त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है क्योंकि पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी. श्रीराम ने रावण को अंतिम वाण मारने से पहले आदित्‍यहृदयस्‍तोत्र का पाठ कर पहले सूर्य देवता को प्रसन्‍न किया था. उसके बाद उन्हें विजय मिली थी. इसी तरह जब श्रीकृष्‍ण के पुत्र साम्‍ब को कुष्‍ठ रोग हो गया था, तब उन्‍होंने सूर्य की उपासना करके इस रोग से मुक्‍त‍ि पाई थी. शास्त्रों के अनुसार सूर्य की पूजा वैदिक काल से भी पहले से होती आ रही है.

क्‍या इस पूजा में सामाजिक संदेश भी छिपा हुआ है?

सूर्यषष्‍ठी व्रत में लोग उगते हुए सूर्य के साथ ही डूबते हुए सूर्य की भी पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं. इस विधान में कई तरह के संकेत छिपे हैं. इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है, समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. इसका ही साक्ष्य है कि सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. अमीर हों या गरीब सभी बांस के डाले और सूप का ही इस्तेमाल करते हैं.

बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध क्‍यों है?

बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है. सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों की महिमा का वर्णन है. यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है. इसलिए स्वाभाविक रूप से इस प्रदेश के लोगों की आस्‍था सूर्य देवता में ज्‍यादा है. बिहार के देव सूर्य मंदिर की खासियत है कि मंदिर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जबकि आमतौर पर सूर्य मंदिर का मुख्‍य द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है. ऐसी मान्‍यता है कि यहां के विशेष सूर्य मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्‍पी भगवान विश्‍वकर्मा ने किया था. बिहार के सूर्य मंदिर का स्‍थापत्‍य और वास्‍तुकला कला बेजोड़ हैं.

अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य का क्‍या स्‍थान है?

सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है. मत्‍स्‍य पुराण के अनुसार पंचदेव में सूर्य के अलाव अन्‍य 4 में गणेश, दुर्गा, शिव, विष्‍णु हैं.

पुराण के अनुसार सूर्य की पूजा से क्‍या-क्‍या फल मिलते हैं?

भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले और अत्‍यंत दयालु हैं. वे सूर्य की उपासना करने से मनुष्‍य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है. जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे कभी दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्‍त और अंधे नहीं होते हैं. उपासक को आयु, आरोग्‍य, धन-धान्‍य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्‍य देते हैं. वे पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं.

इस व्रत में लोग नदी और तालाबों में कमर तक पानी में खड‍़े होकर पूजा क्यों करते हैं ?

छठ व्रत में सूर्य को जल से अर्घ्‍य देने का ही विधान है. पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्‍य देने और स्‍नान करने का विशेष महत्‍व बताया गया है. हालांकि यह पूजा किसी भी साफ-सुथरी जगह पर की जा सकती है.

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