देवघर: बाबा बैद्यनाथ ने मंदिर परिसर में दी जनता कर्फ्यू की सहमति,पसरा रहा सन्नाटा..
झारखण्ड के देवघर Deoghar में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ मंदिर deoghar baba dham परिसर में भी सन्नाटा छाया रहा.यह एक सिद्धपीठ है.जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को "देवघर" अर्थात देवताओं का घर Deoghar कहते हैं. बैद्यनाथ Baba baidyanath स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है.
कोरोना वायरस coronavirus के संक्रमण से बचने के लिए पूरा देश युद्धस्तर पर तैयारियां कर रहा है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी narendra modi ने देश की जनता से अपील की थी कि एक दिन के लिए देश की जनता अपने ही द्वारा जनता कर्फ्यू janta curfew लगाए.और इस आह्वान का असर कल रविवार को सफलतापूर्वक पूरे देश मे दिखाई दिया.जहां सड़कों पर न निकलते हुए लोगों ने इसे सफलता का जामा पहनाया वहीं झारखण्ड के देवघर Deoghar में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ मंदिर deoghar baba dham परिसर में भी सन्नाटा छाया रहा.यह एक सिद्धपीठ है.जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को “देवघर” अर्थात देवताओं का घर Deoghar कहते हैं. बैद्यनाथ Baba baidyanath स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है.
स्थानीय पंडा समाज के लोगों के अनुसार ऐसा दृश्य बहुत ही कम देखा जाता है जब बाबा मंदिर में एक भी भक्त नही आए जबकि यहां प्रतिदिन हजारों भक्तों का हुजुम उमड़ता दिखता है.जो बाबा बैद्यनाथ की पूजा करने आते हैं.लेकिन रविवार को बाबा नगरी के साथ -साथ बाबा मंदिर परिसर भी लॉक डाउन रहा.बाबा मंदिर प्रवेश द्वार के ठीक अंदर फूल और बेलपत्र के दुकान बंद पड़े थे.सफाईकर्मी मन्दिर परिसर की सफाई में पूरा ध्यान दिए हुए दिखे.हालांकि मंदिर परिसर में मंदिर के कुछ पुरोहित जरूर दिखे जो बाबा बैद्यनाथ से इस विपत्ति से उबरने की प्रार्थना कर रहे थे.
पूरी बाबा नगरी जहां कल इस विपत्ति में प्रधानमंत्री के आह्वान के साथ खड़ी थी वहीं कल बाबा मंदिर परिसर का नजारा ऐसा था मानो इस संकट से उबरने के इस प्रयास में स्वयं बाबा बैद्यनाथ ने भी अपने तरफ से सहमति दी हो.
स्थापना व कथा :
इस मनोकामना लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये. एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये.उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा. रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी. शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा. अन्ततोगत्वा वही हुआ. रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई. रावण उस लिंग को एक अहीर जिनका नाम बैजनाथ भील था , को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया. इधर उन अहीर भील ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया. फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया. इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये. जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है.
देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान.देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है.हर साल सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु “बोल-बम” “बोल-बम” का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है. ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं.