20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Dev Uthani Ekadashi 2020: आज है देवउठनी एकादशी, जानिये इस दिन से शुरू हो जाएगे शुभ कार्य…

Dev Uthani Ekadashi 2020: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस बार देवउठनी एकादशी बुधवार, 25 नवंबर को है. हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं.

Dev Uthani Ekadashi 2020: देवउठनी एकादशी तिथि आज है. इस दिन शालीग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस बार देवउठनी एकादशी बुधवार, 25 नवंबर को है. हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं. मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीहरि विष्णु इसी दिन राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे, इस एकादशी को कई नामों से जाना जाता है जिनमें देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी प्रमुख हैं. इस साल देवउठनी एकादशी 25 नवंबर, बुधवार को है. इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इस एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है.

यहां जानें देवउठनी एकादशी का महत्व

प्रबोधिनी एकादशी को पापमुक्त एकादशी के रूप में भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राजसूय यज्ञ करने से भक्तों को जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, उससे भी अधिक फल इस दिन व्रत करने पर मिलता है. भक्त ऐसा मानते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना करने से मोक्ष को प्राप्त करते हैं और मृत्युोपरांत विष्णु लोक की प्राप्ति होती है.

इस दिन से शुरू हो जाते हैं मांगलिक कार्य

मान्यता है कि आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, उस दिन से श्रीहरि विश्राम के लिए चार महीनों तक श्रीरसागर में चले गए थे. इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं. वहीं, देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.

तुलसी विवाह का है विधान

इस दिन कई स्थानों पर शालिग्राम तुलसी विवाह का भी प्रावधान है. बता दें कि शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है. मान्यता है कि इस बात का जिक्र मिलता है कि जलंधर नाम का एक असुर था. उसकी पत्नी का नाम वृंदा था जो बेहद पवित्र व सती थी. उनके सतीत्व को भंग किये बगैर उस राक्षस को हरा पाना नामुमकिन था. ऐसे में भगवान विष्णु ने छलावा करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और राक्षस का संहार किया.

इस धोखे से कुपित होकर वृंदा ने श्री नारायण को श्राप दिया, जिसके प्रभाव से वो शिला में परिवर्तित हो गए. इस कारण उन्हें शालिग्राम कहा जाता है. वहीं, वृंदा भी जलंधर के समीप ही सती हो गईं. अगले जन्म में तुलसी रूप में वृंदा ने पुनः जन्म लिया. भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बगैर तुलसी दल के वो किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे.

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा. देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया. इसलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है.

News Posted by: Radheshyam Kushwaha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें