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Diwali 2022: झारखंड में दिवाली पर क्यों दी जाती है लाल रंग के मुर्गे की बलि, क्या है मान्यता

गुमला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली की अमावस्या को सोहराय पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन रात को लाल रंग के मुर्गे की बलि दी जाती है. मान्यता है कि ऐसे करने से इष्टदेव प्रसन्न होते हैं और घर में लक्ष्मी का वास होता है.

Diwali 2022: झारखंड में दीपोत्सव को लेकर लोगों में उमंग व उत्साह है. अपने घर को रोशन करने में सभी जुटे हैं. गुमला में दीपावली को लेकर अलग मान्यता है. वैसे तो मूल रूप से पूरा कार्तिक माह और विशेष कर दीपावली से लेकर छठ महापर्व तक का समय शाकाहार को समर्पित है, पंरतु गुमला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली की अमावस्या को सोहराय पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन रात को लाल रंग के मुर्गे की बलि दी जाती है. मान्यता है कि ऐसे करने से इष्टदेव प्रसन्न होते हैं और घर में लक्ष्मी का वास होता है.

मुर्गे की बलि देने की परंपरा

ऐसा माना जाता है कि अमावस्या की रात इष्ट देव को बलि पंसद है. इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में लोग अपने देवता को खुश करने के लिए मुर्गे की बलि देकर सालभर के लिए सुख-शांति की कामना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इष्ट देव को खुश करने के लिए गोहार में ही बलि दी जाती है और बलि देने वाले घर के मुखिया उस मुर्गा का सेवन करते हैं. ऐसा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है. यह पंरपरा वर्षों से चली आ रही है.

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ब्रिटिश जमाने में बना काली मंदिर

इधर, काली पूजा को लेकर भी गुमला में उत्साह है. गुमला शहर के जशपुर रोड स्थित काली मंदिर में बिराजी काली मां के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है. यहां मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है. यह कहना श्रद्धालुओं व पुजारी का है. बनारस, देवघर, रजरप्पा, रामेश्वरम व उज्जैन की तरह यह भी शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है. गुमला में मां काली मंदिर में मूर्ति की स्थापना 1948 में की गयी थी. तब से यह हिंदुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. काली मंदिर के पुजारी ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय गंगा महाराज ने यहां सबसे पहले खपड़ानुमा मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित की थी. उसके बाद 1970 में मंदिर का निर्माण हुआ. यहां मां काली के अलावा भगवान शिव व अन्य देवी देवताओं की मूर्ति है.

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रिपोर्ट : जगरनाथ/जॉली, गुमला

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