सत-आचरण के तेल से जलाएं निर्मल मन की बाती
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि मां लक्ष्मी वाह्यपूजा की अपेक्षा आंतरिक शुचिता पर अधिक प्रसन्न होती हैं. यदि उसका पालन कर लिया जाये, तो बिना किसी टोना-टोटका के उपासक हर दृष्टि से खुशहाल रहेगा.
पांच दिवसीय पर्व दीपावली पर महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए पहले व्यक्ति को स्वयं में पात्रता विकसित करनी चाहिए. इसके लिए बहुत तंत्र-मंत्र, टोना-टोटका की जरूरत नहीं. सिर्फ जिस प्रकार घर और प्रतिष्ठान आदि को साफ-सुथरा करते हैं, उसी प्रकार व्यक्ति को अपने मन-मस्तिष्क, भाव-विचार को साफ-सुथरा करके पवित्र कर लेना चाहिए. व्यक्ति को कोई सामग्री संग्रहित करने के लिए जैसे बिना टूटे-फूटे अच्छे पात्र की जरूरत होती है, वैसे ही भगवान नारायण की पत्नी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए अधकचरेपन की प्रवृत्ति से दूर तो रहना ही चाहिए.
इस संबंध में स्कन्दपुराण में कहा गया है कि मां लक्ष्मी वाह्यपूजा की अपेक्षा आंतरिक शुचिता पर अधिक प्रसन्न होती हैं. यदि उसका पालन किया जाये, तो बिना किसी टोना-टोटका के अगले एक वर्ष तक उपासक हर दृष्टि से खुशहाल रहेगा. उक्त पुराण के वैष्णव खंड के 110वें अध्याय में पांच दिवसीय दीपावली पर्व तक पांच निषेधों को जरूर मानने की सलाह दी गयी है, जिसमें जीव हिंसा, परायी स्त्री के प्रति वासनात्मक भाव या संबंध, नशा, चोरी और छल (विश्वासघात). इन दुष्प्रवृत्तियों से जब व्यक्ति दूर होता है, तब उसी क्षण महालक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं. व्यक्ति सन्मार्ग पर चलता है. वह अपने जीवन का भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक, सांसारिक लक्ष्य निर्धारित करता है.
निरुद्देध्य जीवन की जगह लक्ष्यपूर्ण जीवन जीना ही लक्ष्मी की प्राप्ति का उद्देश्य हो. यदि हम एक ओर सात्विक पूजा करें और दूसरी ओर अपवित्र आचरण, तो माता लक्ष्मी रुष्ट होती हैं. धर्मग्रंथों का कहना है कि लक्ष्मीजी की बड़ी बहन दरिद्र लक्ष्मी हैं, जो नारी की पीठ पर रहती हैं, इसलिए परायी नारी को पीठ की ओर से देखने वाला लक्ष्मी की जगह उनकी बड़ी बहन दरिद्र लक्ष्मी का उपासक हो जाता है, फिर उसके घर-प्रतिष्ठान में दरिद्र लक्ष्मी डेरा डाल देती हैं और वह परेशान तथा विपन्न होने लगता है.
त्रिरात्रि का विशेष महत्व
इस पांच दिवसीय दीपावली पर्व पर घर के मुख्यद्वार और आंगन में तिल के तेल का दीपक जरूर जलाना चाहिए, क्योंकि तिल के तेल में लक्ष्मी का वास होता है. धर्म में त्रिरात्रि का विशेष महत्व है, क्योंकि नरक चतुर्दशी को ही भगवान विष्णु ने वामन बन कर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगा और तीन दिन में तीनों लोक ले लिया. बलि ने इन तीन दिनों तक धरती पर उत्सव की प्रार्थना की थी. विष्णुजी ने धनतेरस से अमावस्या तक हर वर्ष उत्सव की बलि की प्रार्थना स्वीकार कर ली थी. दीपावली पर्व पर घर के बड़े सदस्यों के सम्मान के साथ पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करना चाहिए, क्योंकि उनकी ही कृपा से जीवन मिला है. इस प्रकार मन की पवित्रता यदि नहीं है, तो महंगे से महंगे सामानों, वस्तुओं से भी पूजा का लाभ नहीं मिलेगा. पांच दिवसीय प्रकाश के इस पर्व का आशय भी पांच ज्ञानेंद्रियों को पवित्रता के दीये में सत-आचरण के तेल और निर्मल मन की बाती से प्रकाशित करने का मुख्य रूप से है.
पंच ज्ञानेंद्रियों को करें आलोकित
मनुष्य का मन दृश्य (आंख), गंध (नासिका), स्पर्श (त्वचा), स्वाद (जिह्वा) शब्द (कान) से ही संचालित और प्रभावित होता है. इन्हीं को प्रज्वलित करने का पर्व दीपोत्सव है.
धन्वन्तरि जयंती :
धनु+अंतरी का अर्थ अंतर्मन के धनुष को सही-सलामत रखना है. नेत्रों को धनुष कहा गया है. मन को सर्वाधिक प्रभावित करने का काम आंखें करती हैं. लिहाजा इसको सकारात्मकता प्रदान करने का पर्व है यह.
नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली) :
शरीर नाड़ियों के जाल से संचालित है. मां के गर्भ से जन्म लेते समय इसी नार से अलग होकर स्वतंत्र जीवन की शुरुआत होती है. इसे सही-सलामत करने के लिए प्राणायाम किया जाता है. इसमें नासिका (नाक) का योगदान है.
त्वचा के रोम-छिद्र (बड़ी दिवाली) :
रोम छिद्रों से सूर्य और चंद्रमा की किरणें शरीर में प्रवेश करती हैं. यानी असंख्य दीप हैं हमारे शरीर में. यह दिन प्रकृति के संपर्क में रहकर इन्हें ज्योतित करने का संदेश देता है.
जिह्वा का दिन अन्नकूट :
यह 56 भोग, हर प्रकार के लाभप्रद वस्तुओं के सेवन का दिन. इसी दिन गो-वर्धन पूजा की जाती है. ग या गो इंद्रियों को भी माना गया है.
भैया दूज (कान) :
प्रेम की शुरुआत मृदुल शब्दों से और युद्ध कठोर शब्दों से. अत: सकारात्मक शब्दों को मस्तिष्क में रखें और नकारात्मक को मिटा देने की सीख देता है यह दिन.