Diwali 2024: धार्मिक के अलावा दिवाली का है सांस्कृतिक महत्व, यहां से जानें

Diwali 2024 cultural significance: दिवाली का सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है. यह त्यौहार आशा और सकारात्मकता का प्रतीक है, जो विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को एकत्रित करता है. इस अवसर को जीवंत सजावट, आतिशबाजी और सामुदायिक भोज के माध्यम से मनाया जाता है, जो एकता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं.

By Shaurya Punj | October 22, 2024 8:40 AM
an image

Diwali 2024:  दिवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, भारत और दुनिया भर में भारतीय समुदायों के बीच सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है. यह अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दिवाली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक दिन की अपनी अनूठी रीति-रिवाज़ और महत्व होता है. यहां से जानें कब मनाई जाएगी दिवाली और क्या है इसका सांस्कृतिक महत्व

Diwali 2024 Kab Hai: धनतेरस से होगी दिवाली शुरूआत, जानें किस दिन है दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज

कब मनाई जाएगी दिवाली ?

दीपोत्सव का आयोजन रात के समय किया जाता है. 31 अक्टूबर 2024, जो कि बृहस्पतिवार है, को अमावस्या तिथि दिन में 2 बजकर 40 मिनट पर प्रारंभ हो रही है. इसके पूर्व चतुर्दशी तिथि है. इस कारण, इस वर्ष दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी. दीपावली के पर्व पर महारात्रि में अमावस्या तिथि का होना आवश्यक है. इसलिए, 1 नवंबर को दीपावली का उत्सव मनाना शास्त्रानुसार उचित नहीं माना जाएगा. शास्त्रों के अनुसार, 31 अक्टूबर को दीपावली का उत्सव मनाना ही सही है.

दिवाली का सांस्कृतिक महत्व क्या है ?

दिवाली का सांस्कृतिक महत्व भी है. आशा और सकारात्मकता के साझा उत्सव में विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट करती है. इस त्यौहार को जीवंत सजावट, आतिशबाजी और सामुदायिक दावतों द्वारा चिह्नित किया जाता है जो एकजुटता की भावना को बढ़ावा देते हैं. दिवाली, या दीपावली, पूरे भारत में विविध रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाई जाती है जो देश की समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने को दर्शाती हैं. प्रत्येक क्षेत्र त्योहार में अपना अनूठा स्वाद जोड़ता है, जिससे यह वास्तव में एक अखिल भारतीय उत्सव बन जाता है.

दिवाली सिर्फ एक त्यौहार से कहीं अधिक है; यह एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है जो आत्मनिरीक्षण और नैतिक विकास को प्रोत्साहित करता है. इसका उत्सव प्रतिकूलता के खिलाफ प्रेम, एकता और लचीलेपन के सिद्धांतों का प्रतीक है. जब परिवार दीये जलाने और मिठाइयां बांटने के लिए इकट्ठा होते हैं, तो वे न केवल प्राचीन परंपराओं का सम्मान करते हैं, बल्कि धार्मिकता और करुणा से निर्देशित जीवन जीने की अपनी प्रतिबद्धता को भी मजबूत करते हैं. दिवाली अंततः आशा की किरण के रूप में खड़ी है, जो व्यक्तियों और समुदायों के लिए समान रूप से उज्जवल भविष्य की ओर मार्ग प्रशस्त करती है.

आचार्य पंडित राकेश मिश्रा
कर्मकाण्डी एवं अनुष्ठान विशेषज्ञ
प्रदेश अध्यक्ष(विद्वान परिषद)
राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ, बिहार

Exit mobile version