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Ekadashi Vrat Niyam: एकादशी के दिन क्यों नहीं खाते हैं चावल? जानें व्रत से जुड़ा यह जरूरी नियम

Ekadashi Vrat Niyam: एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चावल खाना पाप होता है. भूलकर भी इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए. लेकिन क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है? अगर नहीं तो आइये जानते है क्यों एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए.

Ekadashi Vrat Niyam: हिंदू पंचांग के अनुसार, 01 मई 2023, सोमवार के दिन मोहिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा. यह व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाएगा. इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों के सर्वनाश के लिए मोहिनी रूप धारण किया था. मोहिनी एकादशी के दिन पूजा अर्चना करने से मन को शांति मिलती है और धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है. इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति की सभी परेशानियां दूर हो जाती है. इस दिन चावल नहीं खाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चावल खाना से पाप होता है. ऐसे में चलिए जानते हैं एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाना चाहिये…

एकादशी पर चावल क्यों नहीं खाते?

पौराणिक कथा के अनुसार मां भागवती के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था और उनका अंश पृथ्वी में समा गया था. जिसके बाद चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए थए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन चावल खाना पाप होता है. इस दिन जो व्यक्ति चावल खाता है, उतने ही कीड़े उसे अगले जन्म में काटते हैं. इसलिए इस दिन भूलकर चावल न खाएं. वहीं एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. जो इनकी नित्य पूजा-अर्चना करता है, उसके ऊपर भगवान विष्णु की सदैव कृपा बनी रहती है और धन आगमन भी होता है.

चावल नहीं खाने के वैज्ञानिक कारण

वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है.

क्या करना चाहिए

बता दें कि एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर अपने नित्यकर्म से मुक्त होकर भगवान श्रीहरी का भजन और वंदन करना चाहिए, एक समय भूखे रहकर एक समय फलाहार करना चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा भजन कर ब्राह्मणों को सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए.

हिंदू धर्म में एकादशी का महत्व

हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं. यह तिथि हर महीने में दो बार आती है. एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. पूर्णिमा से आगे आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के उपरान्त आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं. इन दोनों प्रकार की एकादशियों का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. ऐसे में साल में 24 एकादशी आती है.

एकादशी व्रत के सामान्य नियम

एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ेगा. इस दिन मांस, कांदा (प्याज), मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए. एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन व आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ सुथरा कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है.

साल में कौन-कौन से हैं एकादशी

  • चैत्र माह में पापमोचिनी और कामदा एकादशी आती है.

  • वैशाख में वरुथिनी और मोहिनी एकादशी आती है.

  • ज्येष्ठ माह में अपरा या अचना और निर्जला एकादशी आती है.

  • आषाढ़ माह में योगिनी और देवशयनी एकादशी आती है.

  • श्रावण माह में कामिका और पुत्रदा एकादशी आती है.

  • भाद्रपद में अजा (जया) और परिवर्तिनी (जलझूलनी डोल ग्यारस) एकादशी आती है.

  • आश्‍विन माह में इंदिरा एवं पापांकुशा एकादशी आती है.

  • कार्तिक में रमा (रंभा) और प्रबोधिनी एकादशी आती है.

  • मार्गशीर्ष में उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी आती है.

  • पौष में सफला एवं पुत्रदा एकादशी आती है.

  • माघ में षटतिला और जया (भीष्म) एकादशी आती है.

  • फाल्गुन में विजया और आमलकी एकादशी आती है.

  • अधिकमास माह में पद्मिनी (कमला) एवं परमा एकादशी आती है.

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