Ganesh Chaturthi 2020 Puja Vidhi, Muhurat : आज देशभर में मन रहा हैं गणेशोत्सव, जानिए कैसे बनें यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव और ऐश्वर्य के देवता गजानन
Ganesh Chaturthi (Ganpati Puja) 2020 Date, Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Timings in India: आज से यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और तेजस्विता के प्रतीक भगवान गणेश का उत्सव शुरू हो रहा है. शनिवार रात 11:34 बजे तक चतुर्थी है. उत्सव की सभी तैयारी पूरी कर ली गयी है. इस बार कोरोना के कारण 10 दिवसीय उत्सव नहीं मनाया जायेगा़ अधिकतर जगह तीन से पांच दिवसीय उत्सव का आयोजन किया गया है. हालांकि जो भक्त अपने घरों में पूजा करते हैं, वे 10 दिनों तक भगवान की पूजा-अर्चना करेंगे. एक सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान की प्रतिमा का विसर्जन होगा.
Ganesh Chaturthi (Ganpati Puja) 2020 Date, Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Timings in India: आज से यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और तेजस्विता के प्रतीक भगवान गणेश का उत्सव शुरू हो रहा है. शनिवार रात 11:34 बजे तक चतुर्थी है. उत्सव की सभी तैयारी पूरी कर ली गयी है. इस बार कोरोना के कारण 10 दिवसीय उत्सव नहीं मनाया जायेगा़ अधिकतर जगह तीन से पांच दिवसीय उत्सव का आयोजन किया गया है. हालांकि जो भक्त अपने घरों में पूजा करते हैं, वे 10 दिनों तक भगवान की पूजा-अर्चना करेंगे. एक सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान की प्रतिमा का विसर्जन होगा.
सिद्धिविनायक की चार कथाएं…जो निष्ठा, प्रतिबद्धता, बुद्धि, तत्परता की देती हैं सीख
भगवान गणेश को बुद्धि का देवता कहा गया है. वहीं उनके विश्वास और कर्तव्य निष्ठा की कथाएं लोगों को प्रेरणा देती हैं. बप्पा की उत्पत्ति से लेकर उनके पराक्रम से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. इनसे इनसान सीख लेकर जीवन में अच्छे व्यक्ति के रूप में खुद को स्थापित कर सकता है़ पंडित रामदेव का कहना है कि भगवान गणेश की चार कथाओं से मनुष्य सीख लेकर और अनुकरण कर जीवन में अच्छे मनुष्य के रूप में खुद को स्थापित कर सकता है.
माता-पिता की सात बार परिक्रमा कर नापा पूरा संसार
मान्यता है कि एक बार सभी देवता मुसीबत में थे. ऐसे में सभी भगवान शिव के शरण में गये. भगवान शिव के साथ उनके दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी बैठे हुए थे. देवताओं की परेशानी सुनने के बाद भगवान शिव ने दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय में से कौन देवताओं की मदद करेगा पूछा. इस पर दोनों तैयार हो गये. ऐसे में भगवान शिव ने दोनों भाइयों के बीच प्रतियोगिता आयोजित की. दोनों भाई में जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करेगा उसे देवताओं की मदद करने की अनुमति दी जायेगी. पिता के निर्देश के बाद कार्तिकेय अपनी सवारी मोर लेकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े. जबकि भगवान गणेश अपनी सवारी मूषक के साथ पृथ्वी की परिक्रमा करने की सोचने लगे. भगवान गणेश ने पृथ्वी की परिक्रमा के लिए पिता शिव और माता पर्वती के नजदीक आकर सात बार परिक्रमा किया और अपना स्थान ग्रहण कर लिया. पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटे कार्तिकेय ने खुद को विजेता बताया, जबकि गणेश जी ने माता-पिता को ही पूरा संसार माना.
सीख
इंसान को भगवान गणेश की तरह माता-पिता का भक्त होना होगा. जीवन में सभी काम के अलावा
माता-पिता की सेवा ही बड़ी पूंजी के रूप में लोग ग्रहण कर सकते हैं. माता-पिता के प्रति इंसान अपने कर्तव्य को पूरा कर संसार का हर सुख हासिल कर सकता है.
मां की आज्ञा को पूरा करते दंड भी सह लिया
माता पार्वती स्नान करने गयीं, उस वक्त उनका कोई भी रक्षक नहीं था. ऐसे में उन्होंने चंदन के लेप से गणेशजी को तैयार किया. अपने पुत्र को आदेश दिया कि उनकी अनुमति के बिना किसी को घर में प्रवेश न दें. इस बीच पिता भगवान शिव वापस लौटे, पर माता कि आज्ञा का पालन करते हुए भगवान गणेश ने उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी. इस पर पिता क्रोधित हुए और नंदी को गणेश से युद्ध करने को कहा, पर गणेश ने नंदी को हरा दिया. इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया.
गजमुख को सेवक और मित्र बना लिया
असुरों के राजा गजमुख की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने वरदान दे दिया कि वह किसी शस्त्र से नहीं मारा जायेगा. इसका दुरुपयोग करते हुए राजा गजमुख देवी-देवताओं पर भी आक्रमण करने लगे. परेशान देवता भगवान शिव के पास पहुंचे, तब उन्होंने गजमुख से युद्ध करने गणेश को भेजा. भगवान गणेश बिना किसी शस्त्र लिये राजा गजमुख से भीड़ गये. गजमुख की पीठ पर कूदकर बैठ गये. जीवनभर के लिए मूषक बना दिया. और अपने वाहन के रूप में रख लिया. वहीं राजा गजमुख हमेशा के लिए भगवान गणेश के सेवक और मित्र बन गये.
संबंध की मर्यादा को पहचानना जरूरी
मान्यता है कि भगवान गणेश की बुद्धि और पराकाष्ठा देख तुलसी ने भगवान गणेश को विवाह का प्रस्ताव दिया था. पर भगवान गणेश ने अपनी मर्यादा समझते हुए तुलसी को विवाह के लिए मना कर दिया. इसका कारण पूछने पर भगवान गणेश ने कहा कि वह लक्ष्मी स्वरूपा हैं. और लक्ष्मी उनकी मां पार्वती की ही स्वरूप हैं. ऐसे में मां के स्वरूप से विवाह करने की अनुमति धर्म नहीं देता.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha