Ganga Dussehra: गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. इस बार 01 जून के दिन पड़ रहा है. इस दिन गंगा में स्नान-ध्यान करने की विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी संकट की वजह से श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी नहीं लगा पाएंगे. ऐसे में आपको घर पर रहकर ही ये पर्व मनाना होगा. गंगा दशहरा के दिन अपने घरों पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना होगा.
गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का आगमन धरती पर हुआ था, इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस बार दशमी तिथि का शुभारंभ 31 मई 2020 की शाम 05 बजकर 36 मिनट से होगा. वहीं, 01 को दोपहर 02 बजकर 57 मिनट तक रहेगा. वहीं इस बार कोरोना वायरस को लेकर देश में लागू लॉकडाउन के कारण यात्रा करना और एक जगह पर एकत्रित होने पर रोक है. इसलिए इस बार लोग अपने स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर ही स्नान कर गंगा स्नान का पुण्यलाभ उठाएंगे. इसके साथ ही मान्यता हैं कि इस दिन दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगाजल से स्नान करना श्रेयस्कर होता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण घर पर रहकर ही आपको यह गंगा दशहरा का पर्व मनाना होगा. इसके लिए नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. इसके बाद सूर्य को अर्घ्य दें. फिर ॐ श्री गंगे नमः मंत्र का जाप करते हुए मां गंगे का ध्यान कर अर्घ्य दें. मां गंगा की पूजा करने के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा जरूर दें.
शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा जी में स्नान करने की परंपरा है, इस दिन गंगा स्नान करने के बाद पूजन-उपवास करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इनमें तीन प्रकार के दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए पाप एवं तीन मानसिक पाप शामिल है. गंगा में स्नान करते समय ”ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” मंत्र का स्मरण करना चाहिए. इस मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है. इस दिन दान स्वरूप दस वस्तुओं का दान देना कल्याणकारी माना गया है.
कपिल मुनि के श्राप से महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र तथा अंशुमान के भाई भस्म हो गए थे. इन्हीं की मुक्ति के लिए महाराजा सगर के पुत्र अंशुमन ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया था, लेकिन वह असफल रहे. इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की लेकिन वह भी माता गांगा को पृथ्वी पर नहीं ला सकें. दिलीप के पुत्र भागीरथ ने कई वर्षों तक तपस्या की. तब जाकर ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और उन्होंने भागीरथ को वरदान दिया कि गंगाजी को वह पृथ्वी पर भेजेंगे.
लेकिन गंगा का वेग संभालने के लिए पृथ्वी पर कोई नहीं था तब भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न कर गंगा का वेग संभालने का अनुरोध किया. इसके बाद भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा माता का समा लिया. फिर इन्हीं जटाओं से मां गंगा का अवतरण हुआ. इसके बाद गंगा बहती हुई कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची और महाराजा सगर के पुत्रों को श्राप से मुक्ति मिली. इसके बाद से गंगा का नाम भागीरथी भी पड़ा.
Posted By : Radheshyam Kushwaha