15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Gaya Pitru Paksha: पितृपक्ष में गया जी पिंडदान करना क्यों है जरूरी, जानें इस तीर्थ का महत्व और पौराणिक कथा

Gaya Pitru Paksha: पितृपक्ष में पितरों को तर्पण किया जाता है. हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है. सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. इसलिए ही इस तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है. एक बार जो व्यक्ति गया जाकर पिंडदान कर देता है, उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है. अधिकतर लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो जाए.

Gaya Pitru Paksha: पितृपक्ष में पितरों को तर्पण किया जाता है. हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है. सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. इसलिए ही इस तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है. एक बार जो व्यक्ति गया जाकर पिंडदान कर देता है, उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है. अधिकतर लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो जाए.

हर साल पितृपक्ष में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु गया पहुंचकर अपने पितरों के आशीर्वाद पाने के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं. पिछले साल पितृपक्ष मेला में 13 से 28 सितंबर तक गयाजी में 8 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पितरों का पिंडदान और तर्पण किया था, इस साल बढ़ते कोरोना वायरस के कारण गयाजी के प्रसिद्ध विष्‍णुपद मंदिर का पट बंद है. मेला क्षेत्र में सन्‍नाटा पसरा है. वहीं, फल्‍गु की जलधारा भी शांत है. देवघाट भी चुप है. गयाजी की मान्यता है कि पुत्र अपने पितरों को जो पिंडदान अर्पित करते हैं वह श्रद्धाभाव से किया गया श्राद्ध है, जिसे पाकर उनके पितर मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं. जिसके कारण इस आधुनिक समय में भी पितृपक्ष मेला में लोगों की भीड़ जुटती है.

गया जी का महत्व

हिन्दू धर्म में गया जी का महत्व बहुत अधिक है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति का पिंडदान गयाजी में हो जाता है. उसकी आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है. विष्णु पुराण में कहा गया है कि गया में श्राद्ध हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिलती है. गरुण पुराण के मुताबिक गया जी जाने के लिए घर से गया जी की ओर बढ़ते हुए कदम पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनाते हैं.

गया जी तीर्थ की पौराणिक कथा

गया भस्मासुर के वंशज गयासुर की देह पर बसा हुआ स्थान है. एक बार की बात है गयासुर दैत्य ने कठोर तप किया. तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर उन से वरदान मांगा कि उसकी शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए, जो कोई भी व्यक्ति उसे देखे वह पापों से मुक्त हो जाए. ब्रह्मा जी ने गयासुर को तथास्तु कहा, इसके बाद लोगों में पाप से मिलने वाले दंड का भय खत्म हो गया. लोग और अधिक पाप करने लगे. जब उनका अंत समय आता था तो वह गयासुर का दर्शन कर लेते थे. जिससे सभी पापों की मुक्ति हो जाती थी.

इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए देवताओं ने गयासुर को यज्ञ के लिए पवित्र भूमि दान करने के लिए कहा. गयासुर ने विचार किया कि सबसे पवित्र तो वो स्वयं हैं और गयासुर ने देवताओं को यज्ञ के लिए अपना शरीर दान किया. दान करते हुए गयासुर ने देवताओं से यह वरदान मांगा कि यह स्थान भी पापों से मुक्ति और आत्मा की शांति के लिए जाना जाए. गयासुर धरती पर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया. गया तीर्थ भी इसलिए पांच कोस में फैला हुआ है. समय के साथ इस स्थान को गया जी पितृ तीर्थ के रूप में जाना जाने लगा.

News Posted by: Radheshyam Kushwaha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें