Grah Dosh: थैलेसीमिया बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए विवाह से पहले कुंडली मिलान जरूरी होता है, क्योंकि माता और पिता के जरिए बीमारी बच्चों में पहुंचती है. यह बीमारी पंजाब पश्चिम बंगाल बिहार उत्तर प्रदेश दक्षिणी मध्य पश्चिम राज्यों की आदिवासी आबादी में अधिक है. यह बीमारी रक्त विकार है, एक अनुवांशिक विकार भी है. और यह बीमारी गंभीर तब हो जाती है, जब बच्चे को माता पिता दोनों से दो उत्परिवर्तन जीन मिलते हैं. एनीमिया के लक्षण हो जाते हैं, हड्डियों में समस्या हो जाती है, कमजोर हड्डियां हो जाती हैं. देर या मंद शारीरिक विकास होता है. शरीर में लोहा की अधिकता, भूख नहीं लगती, प्लीहा और यकृत बढ़ा हुआ रहता है. पौष्टिक भोजन और व्यायाम के जरिए कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं . आयरन का नियंत्रण बहुत जरूरी होता है. आइए जानते है ज्योतिषाचार्य डॉ प्रेम शंकर त्रिपाठी (पीताम्बरा ज्योतिष शक्ति पीठ अलीगंज लखनऊ) से थैलेसीमिया बीमारी के कारण और ज्योतिषीय उपचार के बारे में…
मंगल ग्रह जो रक्त कारक है, पर राहु या कमजोर चंद्रमा का प्रभाव, नीच शनि का प्रभाव या नीच सूर्य का प्रभाव जब पड़ता है, तो रक्त में विकार आ जाता है. थैलेसीमिया का उपचार करने के लिए नियमित रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है. कुछ रोगियों को हर 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता है. सामान्यत: पीड़ित बच्चे की मृत्यु 12 से 15 वर्ष की आयु में हो जाती है. सही उपचार लेने पर 25 वर्ष से ज्यादा समय तक जीवित रह सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न कुण्डली के प्रथम भाव के नाम आत्मा, शरीर, होरा, देह, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय है. इस भाव से रूप, जातिजा आयु, सुख-दुख, विवेक, शील, स्वभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है.
लग्न भाव में मिथुन, कन्या, तुला व कुम्भ राशियां बलवान मानी जाती हैं. इसी प्रकार षष्ठम भाव का नाम आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, रिपु, शत्रु, क्षत, वैरी, रोग, द्वेष और नष्ट है तथा इस भाव से रोग, शत्रु, चिन्ता, शंका, जमींदारी, मामा की स्थिति आदि बातों का अध्ययन किया जाता है. प्रथम भाव के कारक ग्रह सूर्य व छठे भाव के कारक ग्रह शनि और मंगल हैं. जैसा कि स्पष्ट है कि देह निर्धारण में प्रथम भाव ही महत्वपूर्ण है और शारीरिक गठन, विकास व रोगों का पता लगाने के लिए लग्न, इसमें स्थित राशि, इन्हें देखने वाले ग्रहों की स्थिति का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इसके अलावा सूर्य व चन्द्रमा की स्थिति तथा कुण्डली के 6, 8 व 12वां भाव भी स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. लग्न में स्थित राशि व इनसे संबंधित ग्रह किस प्रकार व किस अंग को पी़डा प्रदान करते हैं.
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ज्योतिषाचार्य के अनुसार, जिन बच्चों को थेलेसीमिया की समस्या होती हैं, उनके माता की शादी के समय गुण मिलान ठीक से नहीं किया गया था, या तो गण मिलान उत्तम नहीं था या फिर उनके चन्द्रमा (राशि) के नक्षत्रों में विरोधाभास था. वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है. शास्त्रों में बताया है कि पूर्व जन्मकृतं पाप व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे. अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है. कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है. नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं.
मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है, जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है. धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है.
इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है. इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है. इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है. कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं.
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कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है, तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है. जैसे आज कल सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता. अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा.
मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है. यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं. यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है, जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है. मंगल के कारन रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े होना संभावित हैं. सामान्यतया मंगल सिर, अस्थि मज्जा, पित्त, हिमोग्लोबिन, कोशिकाएं, गर्भाशय की अंत: दीवार, दुर्घटना, चोट, शल्य क्रियाएं, जल जाना, रक्त विकार, तन्तुओं की फटन, उच्च रक्त चाप, ज्वर. अत्यधिक प्यास, नेत्र विकार, मिरगी, अस्थि टूटना, गर्भाशय के रोग, प्रसव तथा गर्भपात, सिर में चोट, लड़ाई में चोट आदि का करक बनता हैं.
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मेष राशि का स्वामी मंगल है. यह सिर या मस्तिष्क की कारक है और इसके कारक ग्रह मंगल और गुरु हैं. मकर राशि में 28 अंश पर मंगल उच्च के होते हैं तथा कर्क राशि में नीच के होते हैं. मंगल वीर, योद्धा, खूनी स्वभाव और लाल रंग के हैं. अग्नि तत्व व पुरूष प्रधान तथा क्षत्रिय गुणों से युक्त है. यह राशि मस्तिष्क, मेरूदण्ड तथा शरीर की आंतरिक तंत्रिकाओं पर विपरीत प्रभाव डालती है. लग्न में यह राशि स्थित हो तथा मंगल नीच के हो या बुरे ग्रहों की इस पर दृष्टि हो तो ऎसा जातक उच्चा रक्तचाप का रोगी होगा.
आजीवन छोटी-मोटी चोटों का सामना करता रहेगा. सीने में दर्द की शिकायत रहती है और ऐसे जातक के मन में हमेशा इस बात की शंका रहती है कि मुझे कोई जहरीला जानवर ना काट लें. परिणाम यह होता है कि ऐसे जातक का आत्म विश्वास कमजोर हो जाता है और उसकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है जो अनावश्यक रूप से विविध प्रकार की मानसिक बीमारियों का कारण होती है. जो जातक मंगल ग्रह से पीड़ित होते हैं उन्हें अनंतमूल की जड़ लाल वस्त्र में बांध कर किसी भी दिन लाभ के चौघड़िए में गले में धारण करनी चाहिए.