Grah Dasha: चंद्रमा और शुक्र नरम स्वभाव वाले ग्रह हैं, जहां शुक्र इच्छाओं, आराम और सुखों का प्रतीक है और चंद्रमा मन है, जो आपको शुक्र द्वारा दिए गए सुखों का आनंद लेने में सक्षम बनाता है. यह संयोग न केवल आराम की चाहत को बढ़ाता है, बल्कि व्यक्ति रचनात्मक कार्यों की ओर आकर्षित हो सकता है. चंद्रमा व्यक्ति की मां, मां के प्यार, भावनाओं, घर और मन का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं शुक्र ग्रह पत्नी, पत्नी के प्रेम, वैवाहिक जीवन, यौन गतिविधियों और जीवन की सभी विलासिता का प्रतिनिधित्व करता है. आइए जानते है ज्योतिषाचार्य अम्बरीश मिश्र से कि कब किस व्यक्ति हो सुख और कष्ट मिलता है.
लग्न से सप्तम भाव तथा उपचय में स्थित चंद्रमा सर्वत्र मंगलकारी होता है. शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तथा पंचम और नवम भाव में स्थित चंद्रमा गुरु के सदृश पूज्य है. चंद्रमा की 12 अवस्थाएं हैं. अश्विनी आदि तीन नक्षत्र से एक अवस्था बनती है. अश्विनी आदित्य नक्षत्र के क्रम से प्रवास अवस्था, दृष्टावस्था, मृतावस्था, जयावस्था, हास्यावस्था, नतावस्था, प्रमोदावस्था, विषादावस्था, भोगावस्था, ज्वरावस्था, कंपावस्था तथा सुखावस्था ये चंद्रमा की 12 अवस्थाएं है.
इन अवस्थाओं के क्रम में चंद्रमा की स्थिति होने पर क्रमशः प्रवास, हानि, मृत्यु, जय, हास, रति, सुख, शोक, भोग, ज्वर, कम्प तथा सुख यह फल प्राप्त होते हैं. चंद्रमा के जन्म लग्न में होने पर तुष्टि, द्वितीय भाव में रहने पर सुख हानि, तृतीय भाव में रहने पर राज सम्मान, चतुर्थ भाव में कलह, पंचम भाव में रहने पर स्त्री का लाभ होता है.
छठे स्थान में धन-धान्य की प्राप्ति , सप्तम भाव में रहने पर प्रेम सम्मान की प्राप्ति, चंद्रमा के अष्टम स्थान में रहने पर मनुष्य के प्राणों को संकट बना रहता है. नवम भाव में उसके स्थित रहने पर कोष में धन की वृद्धि होती है. दशम भाव में चंद्रमा के रहने पर कार्य सिद्धि, एकादश भाव में विजय, द्वादश भाव में मृत्यु तुल्य कष्ट होता है.
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कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा–इन सात नक्षत्र में पूर्व दिशा की यात्रा करनी चाहिए. वहीं माघ, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती तथा विशाखा– इन सात नक्षत्रों में दक्षिण की यात्रा करना चाहिए. अनुराधा,ज्येष्ठा,मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा, श्रवण तथा धनिष्ठा नक्षत्रों में पश्चिम की यात्रा करना चाहिए. शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी तथा भरणी नक्षत्रों में उत्तर की यात्रा प्रशस्त होती है.
अश्विनी, रेवती, चित्रा तथा धनिष्ठा नक्षत्र नवीन अलंकारों को धारण करने के लिए श्रेष्ठ हैं. मृगशिरा, अश्विनी, चित्रा, पुष्य, मूल और हस्त नक्षत्र कन्यादान, यात्रा तथा प्रतिष्ठादि कार्यों में शुभप्रद होते हैं. जन्म लग्न में शुक्र और चंद्र के रहने पर शुभ फल की प्राप्ति , इस प्रकार की दोनों ग्रह द्वितीय भाव में रहने पर भी शुभ फल प्रदान करते हैं, तृतीय भाव में स्थित चंद्रमा बुध शुक्र बृहस्पति, चतुर्थ भाव में मंगल शनि चंद्र सूर्य और बुध श्रेष्ठ होते हैं.
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पंचम भाव में शुक्र, गुरू, चंद्रमा और केतु के रहने पर शुभ होता है. षष्ठ भाव में शनि, सूर्य और मंगल, सप्तम भाव में बृहस्पति तथा चंद्रमा शुभ है. अष्टम भाव में बुध और शुक्र, नवम भाव में गुरु शुभ फल देता है. जन्म के दशम भाव में स्थित सूर्य, शनि एवं चंद्रमा. एकादश भाव में सभी ग्रह शुभ फल देते हैं. जन्म के द्वादश भाव में बुध और शुक्र सब प्रकार के सुखों को प्रदान करते हैं. सिंह के साथ मकर , कन्या के साथ मेष, तुला के साथ मीन, कुंभ के साथ कर्क, धनु के साथ वृष, और मिथुन के साथ वृश्चिक राशि का योग श्रेष्ठ होता है। यह षडाष्टक योग प्रीतिकारक होता है.