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Guru Gobind Singh Jayanti 2021: गुरू गोविन्द सिंह के दो बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया, मासूमों का साहस देख मुगल भी रह गये दंग

Guru Gobind Singh Jayanti 2021, Guru Govind Singh Life History : मुगलों की बढ़ती ताकत और उनके जुल्म देखते हुए गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों को लड़ना सिखाया. इसके लिए उन्होंने सैन्य दल का गठन किया, हथियारों का निर्माण करवाया और युवकों को युद्धकला का प्रशिक्षण भी दिया.

Guru Gobind Singh Jayanti 2021: आज सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती है. बिहार के पटना साहिब गुरुद्वारा सहित देश और दुनिया के ऐसे हिस्सों में जहां सिख समुदाय के लोग रहते हैं, वहां गुरु गोबिंद सिंह की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. सिखों के लिए गुरू गोविन्द सिंह के योगदान कई लिहाज से बहुत खास है. मुगलों की बढ़ती ताकत औऱ उनके जुल्म देखते हुए गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों को लड़ना सिखाया. इसके लिए उन्होंने सैन्य दल का गठन किया, हथियारों का निर्माण करवाया और युवकों को युद्धकला का प्रशिक्षण भी दिया.

गुरु गोबिंद सिंह ने सिख युवकों की सेना तैयार की और मुगलों के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी. कई लड़ाईयां उन्होंने जीतीं तो कईयों में उन्हें पराजय का भी सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी भी हथियार नहीं डाले और ना ही समझौता किया. चमकौर की लड़ाई में उनके दो बेटों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. वहीं दो छोटे बेटों को मुगल सैनिकों ने इस्लाम कबूल नहीं करने पर जिंदा ही दीवार में चुनवा दिया. लेकिन उन्होंने घुटना नहीं टेका. उनका बड़ा बेटा अजित सिंह तो चमकौर में वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए.

बंदा बहादुर को बना दिया अपना प्रतिनिधि : गुरु गोबिंद सिंह का पूरा जीवन मुगलों के खिलाफ लड़ाई और सिखों की रक्षा करने में बीता. मुगल सैनिक जब उनके खिलाफ अभियान छेड़ते तो गुरू गोविन्द सिंह उसने गुरिल्ला लड़ाई छेड़ देते. इसी दौरान उनकी मुलाकात बंदा बहादुर से हुई. गुरु गोबिंद सिंह को शायद ये आभास हो गया था कि इस लड़ाई में उनको अपने प्राणों का बलिदान करना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने बंदा बहादुर से सिखों को मार्गदर्शन करने को कहा.

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इसी दौरान एक दिन जब गुरु गोबिंद सिंह अपने शिविर में आराम कर रहे थे, अचानक दो मुगल सैनिकों ने हमला बोल दिया. गोबिंद सिंह ने दोनों को मार गिराया लेकिन उनके पेट में गहरा घाव लग गया. टांके लगाए गए. गुरु गोबिंद सिंह का जख्म भर रहा था. लेकिन इसी समय उन्होंने तीरंदाजी का अभ्यास करना शुरू कर दिया. जोर पड़ने से टांके खुल गए और जख्म जानलेवा हो गया.

अपने अंत को निकट देख गुरू गोविन्द सिंह ने अपने शिष्यों को इकठ्ठा किया, और सिखों से कहा कि, आगे सिखों का मार्गदर्शन पवित ग्रंध गुरू ग्रंथ साहिब करेगा. 16 अक्टूबर 1708 में गुरू गोविन्द सिंह का निधन हो गया. लेकिन, अंत सिर्फ गुरू गोविन्द सिंह के शरीर का हुआ था, उनकी वीरता, उपदेश और दर्म के प्रति अगाध आस्था आज भी करोड़ों सिखों का मार्ग दर्शन करती है.

Posted by: Pritish Sahay

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