‘इस गहराई का कोई तल नहीं’
एक बार की बात है. एक संत के पास एक चोर आया, जो उनके पास शरणागत होना तो चाहता था, लेकिन साथ ही यह भी चाहता था कि अपनी चोरी नहीं छोड़े.
एक बार की बात है. एक संत के पास एक चोर आया, जो उनके पास शरणागत होना तो चाहता था, लेकिन साथ ही यह भी चाहता था कि अपनी चोरी नहीं छोड़े. तो उन संत ने उसे इजाजत दी कि “तुम चोरी तो कर सकते हो, लेकिन अगली बार जब तुम चोरी करो, तो पूर्ण सजगता के साथ करना. तब उस चोर ने सोचा कि यह तो बहुत आसन है, क्यूंकि चोरी तो मेरी आदत है. सजगता के साथ चोरी करना कौन-सी बड़ी बात है. लेकिन हुआ यूं कि अगली बार जब वह चोरी के लिए तैयार हुआ, तो उसे संत की बात याद आ गयी और वह अपने कृत के प्रति सजग हो गया और चोरी नहीं कर सका. यहां आर्ट ऑफ लिविंग के गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर का लेख
उस चोर ने सोचा कि समय के साथ संत के आशीर्वाद में कमी आ जायेगी. लेकिन समय बीतने के बाद भी जब वह चोरी के लिए सोचता या किसी घर में चोरी के लिए घुसता उसे संत की वाणी याद आ जाती और वह चोरी नहीं कर पाता.
सजगता में बड़ी शक्ति है. यह आप में बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती है. सभी गलतियां असजगता में होती हैं, लेकिन सजगता में कोई नाराज भी नहीं हो सकता, न गलती कर सकता है और न ही कोई शिकायत. ऐसा तभी होता है जब आपका मन दुनियावी बातों और उलझनों से हटकर अपनी अंतरात्मा से जुड़ गया हो.
जब हमें किसी चीज का ज्ञान होता है, तब चीजों को संभालना आसान हो जाता है. जब हम जिंदगी के बारे में थोड़ा-बहुत समझ लेते हैं या जान लेते हैं, तो चीजों को संभालना आसान हो जाता है.
जब एक शिष्य के जीवन में गुरु का आगमन होता है, तब उसकी परमसत्य के बारे में भी सजगता बढ़ जाती है. गुरु आपको अच्छे से मथते हैं, ताकि आपका सर्वांगीण विकास हो और आप दिव्यता के साथ एक हो सकें. गुरु तपती धूप में या भयंकर तूफान में घिरे होने पर उस कुटिया की तरह हैं, जिसके भीतर जाकर आपको सुकून अवश्य प्राप्त होगा. भीतर जाने पर यही तपती धूप या यही भयंकर तूफान आपको सुंदर और आनंदमयी प्रतीत होगा.
गुरु ज्ञान का खजाना लिये हुए कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि स्वयं प्रकाश की तरह है. साधक के लिए गुरु जीवन शक्ति के समान है. जैसे एक बीज पहले इक कली और फिर फूल बनता है, ठीक वैसे ही गुरु भी हमें बड़ी सुंदरता के साथ अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ाते हैं, गुरु का जीवन में होना हम में सुरक्षा के भाव को जगाता है. गुरु एक तत्व है, हमें गुरु को शारीरिक स्तर पर ही महसूस नहीं करना चाहिए.
संत कनकदास के बारे में एक बहुत ही सुंदर कहानी है, जिससे स्पष्ट होता है कि अपने जीवन में गुरु की उपस्थिति को कैसे महसूस किया जाना चाहिए. एक बार कनकदास के गुरु ने उनको और अन्य भक्तों को एकादशी के उपवास को तोड़ने के लिए एक केला दिया, इस शर्त पर कि इसे केवल तभी खाया जाये, जब कोई नहीं देख रहा हो. अगले दिन शिष्यों ने अपने केले खाने के तरीकों का वर्णन किया. लेकिन कनकदास केला लेकर हुए वापस गुरु के पास आ गये. जब उनसे पूछा गया तो कनकदास ने कहा कि जब भी उन्होंने केले खाने की कोशिश की तो हर वक्त, हर घड़ी और हर जगह उन्हें उनके गुरु उपस्थिति महसूस हुई और वे इस केले को नहीं खा सके.
इस अनुभव को हम सानिध्य कहते हैं. इस अवस्था में सारे दुख, सारी शिकायतें दूर हो जाती हैं और हम पूरी सजगता के साथ अपने कार्य में लग जाते हैं. इस विश्वास के साथ कि कोई शक्ति है जो हर क्षण, हर घड़ी हमारा ध्यान रख रही है.
फिर प्रश्न उठता है कि कैसे हम उस परमशक्ति के साथ जुड़ाव महसूस करें? हम कैसे उन गुरु को ढूंढ़ें, जो हम में उस प्रकाश की अनुभूति करा सके? इस प्रश्न का उत्तर देना बेहद कठिन है. आपको अपनी अंत: प्रज्ञा के माध्यम से ही इसका अनुभव करना होगा.
एक बार राज भवन में एक बहुत ही जानकार और सम्मानित शिक्षक आये. वह एक महान वक्ता भी थे और राजा समेत सभी ने उनका सम्मान किया. लेकिन वह कुछ खालीपन महसूस कर रहे थे और गुरु की खोज में थे. वह एक गुरु को समर्पण करने के लिए उत्सुक था. जब वह अपने गुरु को खोजने के लिए निकल रहा था, तो राजा ने उसे अपनी पालकी भेंट की. जब वह अपने गंतव्य पर पहुंचे, तो यह पता चला कि पालकी उठाने वाले व्यक्ति में से एक उनके गुरु थे, जिन्हें वह ढूंढ़ रहे थे. गुरु को पाने की उनकी तड़प इतनी थी कि वह स्वयं गुरु को उनके पास खींच कर ले आयी.
अगर गुरु को पाने की तड़प आपके मन में उठ गयी है, तो गुरु अवश्य आपके जीवन में आ ही जायेंगे. अगर आप गुरु की ओर एक कदम बढ़ाते हैं, तो गुरु आपकी ओर सौ कदम बढ़ाते हैं. लेकिन वो एक कदम का पहला कदम आपको यानी शिष्य को ही उठाना पड़ता है. अपने गुरु के जितने निकट आप जाते जायेंगे, उतने ही आप खिलते चले जायेंगे. आपमें ज्ञान, प्रेम और नयापन बढ़ता ही चला जायेगा. इस गहराई का कोई तल नहीं है.
यही गुरु पूर्णिमा का महत्व है, अपने गुरु के प्रति कभी न अंत होने वाला और बिना किसी शर्त का संबंध रखना.