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Guru Purnima 2024: ‘गुरु’ वह है जो हमें अन्धकार पर विजय और ज्ञान प्राप्त करने में हमारा मार्गदर्शन करता है, जानें श्री श्री परमहंस योगानन्द जी का उपदेश

Guru Purnima 2024: “हे गुरुदेव, आपने मुझे संभ्रम की भूमि से ऊपर उठाकर शान्ति के स्वर्ग में स्थापित कर दिया है. मेरी चिन्ता की निद्रा समाप्त हो गयी है और मैं आनन्द में जाग्रत हूं” -श्री श्री परमहंस योगानन्द

By Radheshyam Kushwaha | July 21, 2024 7:37 AM
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Guru Purnima 2024: अनेक लोगों के मन में “गुरु” शब्द की धारणा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में होती है, जो शिक्षा प्रदान करता है, मार्गदर्शन करता है, अथवा निर्देश देता है. परन्तु, एक आध्यात्मिक गुरु केवल इतना ही नहीं अपितु इससे बहुत अधिक होता है. “गुरु” शब्द के दो भाग होते हैं. “गु” अर्थात् अन्धकार और “रु” अर्थात् मिटाना या दूर भगाना. सरल शब्दों में, “गुरु” वह है जो हमें हमारे अन्धकार पर विजय प्राप्त करने में सहायता करता है और ज्ञान प्राप्त करने में हमारा मार्गदर्शन करता है. सतगुरु वह होता है जिसने ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त कर लिया है और अन्तिम सत्य की खोज करने के लिए हमारा पथप्रदर्शन करता है. जब सच्चे ज्ञान एवं ईश-सम्पर्क की हमारी लालसा तीव्र हो जाती है, तो प्रत्युत्तर में हमारी आत्म-साक्षात्कार की चुनौतीपूर्ण यात्रा में हमें मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए ईश्वर हमारे पास एक दिव्य माध्यम अथवा गुरु भेज देते हैं. ऐसे गुरु स्वयं ईश्वर के द्वारा ही नियुक्त होते हैं. वे ईश्वर के साथ एक होते हैं और उन्हें इस पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में उपदेश देने का अधिकार प्राप्त होता है. गुरू मौन ईश्वर की वाणी होते हैं.

श्री श्री परमहंस योगानन्द एक ऐसे ही गुरु थे. वे एक पूजनीय आध्यात्मिक शिक्षक थे जो कालातीत आध्यात्मिक गौरव ग्रन्थ, “योगी कथामृत” के लेखक थे, जिसने सम्पूर्ण विश्व में लाखों लोगों के जीवन को रूपांतरित किया है, इस अद्भुत पुस्तक में उन्होंने अपने दिव्य गुरुदेव स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी के प्रेमपूर्ण परन्तु कठोर मार्गदर्शन में ईश्वर-साक्षात्कार प्राप्त करने के मार्ग का वर्णन किया है. वे कहते हैं, “गुरु और शिष्य के मध्य सम्बन्ध प्रेम एवं मैत्री की महानतम अभिव्यक्ति होती है. यह वह अशर्त दिव्य मैत्री है जो दोनों के एकमात्र लक्ष्य, अर्थात् ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम की इच्छा, पर आधारित होती है.”

गुरु अपने शिष्य को आध्यात्मिक मार्ग में अहंकारजन्य आदतों पर विजय प्राप्त कर प्रेम, शान्ति, और आनन्द का विकास करने की शिक्षा प्रदान करता है. क्रियायोग जैसी वैज्ञानिक ध्यान प्रविधियों के अभ्यास के माध्यम से, गुरु भक्तों की चेतना को उच्चतर स्तरों तक ले जाता है और अन्ततः इस जन्म में अथवा भावी जन्मों में ईश्वर की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन प्रदान करता है. वह भक्तों का सर्वश्रेष्ठ मित्र और शुभचिन्तक होता है और उन्हें अशर्त प्रेम करता है, चाहे वे निम्नतम मानसिक स्तर पर हों अथवा ज्ञान के उच्चतम स्तर पर हों. गुरु पूर्णिमा के इस पवित्र अवसर पर ऐसे गुरु के प्रति हमें अपना गहनतम प्रेम, भक्ति, निष्ठा एवं समर्पण अर्पित करना चाहिए.

योगानन्दजी ने, आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के सर्वश्रेष्ठ मार्ग अर्थात् क्रियायोग तथा सन्तुलित जीवन जीने की कला की अपनी शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए सन् 1917 में रांची में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) और सन् 1920 में लॉस एंजेलिस में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की थी। इच्छुक साधक योगदा आश्रमों के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार गृह-अध्ययन पाठमाला के लिए आवेदन कर सकते हैं. योगानन्दजी ने कहा कि एक औसत भक्त गुरु के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है. भक्त को गुरु-प्रदत्त ध्यान प्रविधियों के अभ्यास के माध्यम से 25% प्रयास करना होगा, 25% प्रयास गुरु के आशीर्वादों के माध्यम से होता है, और 50% ईश्वर की कृपा के माध्यम से प्राप्त होता है.

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यदि गुरू अपने भौतिक शरीर में उपस्थित नहीं होते हैं तब भी वे अपने अनुयायियों के आध्यात्मिक कल्याण का उतना ही ध्यान रखते हैं. ऐसी स्थिति में उनकी शिक्षाएं ही गुरु होती है और उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं के माध्यम से उनके साथ सम्पर्क बनाए रख सकते हैं. गुरु अपने शिष्यों का सदैव संरक्षण करते हैं और जब भी वे गहन श्रद्धा के साथ उन्हें पुकारते हैं तो वे सदैव उपस्थित रहते हैं.
लेखिका : रेणु सिंह परमार

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