गुरुवार के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, भगवान विष्णु करेंगे हर काम पूरा

Guruwar Vrat Katha: गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और देव गुरु बृहस्पति की आराधना के लिए विशेष रूप से समर्पित है. इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं. जो लोग गुरुवार का उपवास करते हैं, उन्हें इस उपवास के नियमों का पालन करना अनिवार्य है.

By Gitanjali Mishra | February 6, 2025 9:11 AM
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Guruwar Vrat Katha: गुरुवार व्रत के दिन पूजा कथा में कई ऐसी बातें बताई या समझाई गई हैं, जिन्हें मनुष्य को ध्यान पूर्वक अपनी दिनचर्या मे अपनाना चाहिए. वहीं कहते हैं जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा- आराधना करता है और साथ ही गुरुवार व्रत की कथा कहता और सुनता है उसकी गरीबी और कष्ट दूर हो जाते है. जीवन में सुख समृद्धि के लिए गुरुवार के दिन आप भी इस गुरुवार व्रत कथा को अवश्य सुनें या पढ़ना चाहिए.

आत्मनिर्भर होते हैं इस तारीख को जन्में लोग, कठिन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है इन्हें

गुरुवार के दिन इस कथा को अवश्य सुनें और पढ़ें

यह इस प्रकार से है कि प्राचीन काल के समय की घटना है. भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था. वह बड़ा प्रतापी और दानी राजाओं में से एक था था. वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता करता था. वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान दर्शन करने जाता था लेकिन यह बात उसकी रानी को भाती नहीं थी.वह न ही पूजन करती थी और न ही दान करने की उनकी इच्छा होती थी .एक दिन राजा शिकार खेलने वन को ओर गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी. उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से मन कर दिया.रानी ने कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं. इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं. साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी निस्वार्थ हो.धन और संतान से भला कौन ही दुखी होता है.इसकी तो सभी कामना करते हैं. पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं, अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ. मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो, निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ,साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो. ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी.लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा.वह बोली- महाराज मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम चयन से रह सकूं.

गुरुवार पूजा नियम विधि

साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना,राजा से कहना वह बृहस्‍पतिवार को हजामत बनवाए, भोजन में मांस- मदिरा खाना और कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना.ऐसा करने से सात बृहस्पतिवार में ही आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से अंतर्धान हो गये. इसके बाद रानी ने वही किया जो साधु ने बताया था. तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन- संपत्ति नष्ट हो गया और भोजन के लिए राजा-रानी तरसने लगे. तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में चाकरी के लिए चला जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता. देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा इधर, राजा के बिना रानी और दासी दुखी रहने लगीं . किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जाती. एक समय जब रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी,पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है.वह बड़ी धनवान है, तू उसके पास जा आ और 5 सेर बेझर मांग कर ले आ ताकि कुछ समय के लिए थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जा‌ए. दासी रानी की बहन के पास ग‌ई .उस दिन बृहस्‍पतिवार का दिन था.रानी का बहन उस समय बृहस्‍पतिवार की कथा सुन रही थी.दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने को‌ई उत्तर नहीं दिया. जब दासी को रानी की बहन से को‌ई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हु‌ई .उसे क्रोध भी आया , दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी,सुनकर, रानी ने कहां की है दासी इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नही अच्छे-बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा यह सब हमारे भाग्य का दोष है.यह सब कहकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा, उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आ‌ई थी. लेकिन मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हु‌ई होगी. कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर ग‌ई और कहने लगी, हे बहन. मैं बृहस्‍पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी ग‌ई लेकिन जब तक कथा होती है, तब तक न उठते है और न बोलते है, इसीलिये मैं नहीं बोली.कहो, दासी क्यों ग‌ई थी,रानी बोली, बहन हमारे घर अनाज नहीं था.ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आ‌ई. उसने दासियों समेत 7 दिन तक भूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी,इसीलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास 5 सेर बेझर लेने के लिए भेजा था,रानी की बहन बोली, बहन देखो बृहस्‍पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते है.देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो. पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ परंतु बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा.दासी घर के अंदर ग‌ई तो वहां पर उसे एक घड़ा बेझर से भरा मिल गया. उसे बड़ी हैरानी हु‌ई.उसने बाहर आकर रानी को बताया. दासी रानी से कहने लगी, हे रानी जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते है, इसलिये क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाये, हम भी व्रत किया करेंगे.दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से बृहस्‍पति व्रत के बारे में पूछा, उसकी बहन ने बताया, बृहस्‍पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं और कथा सुनें.उस दिन एक ही समय भोजन करें भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर करें. इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, अन्न, पुत्र और धन का वरदान देते हैं.साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आ‌ई रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि बृहस्‍पति देव भगवान का पूजन जरूर करेंगें . सात रोज बाद जब बृहस्‍पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा . घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन ला‌ईं तथा उसकी दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया. अब पीला भोजन कहां से आ‌ए. दोनों बड़ी दुखी हु‌ई. परंतु उन्होंने व्रत किया था इसलिये बृहस्‍पतिदेव भगवान प्रसन्न थे. एक साधारण व्यक्ति के रुप में वे दो थालों में पीला भोजन लेकर आ‌ए और दासी को देकर बोले, हे दासी. यह भोजन तुम्हारे और तुम्हारी रानी के लिये है, इसे तुम दोनों ग्रहण करना. दासी भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हु‌ई. उसने रानी से कहा चलो रानी जी भोजन कर लो परंतु रानी को भोजन आने के बारे में कुछ भी नहीं पता था इसलिए उसने कहा कि जा तू ही भोजन कर क्योंकि तू व्यर्थ में हमारी हंसी उड़ाती है.तब दासी ने कहा एक व्यक्ति भोजन दे गया है तब रानी ने कहा वह व्यक्ति तेरे लिए ही भोजन दे गया है तू ही भोजन कर. तब दासी ने कहा वह व्यक्ति हम दोनों के लिए दो थालों में सुंदर पीला भोजन दे गया है इसलिए मैं और आप दोनों ही साथ-साथ भोजन करेंगे. यह सुनकर रानी बहुत प्रसन्न हुई और दोनों ने गुरु भगवान को नमस्कार कर भोजन किया.

उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा को स्‍वप्‍न में कहा कि हे राजा उठ तेरी रानी तुझको याद करती है अपने देश को लौट जा,राजा प्रात: काल उठा और जंगल से लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल से गुजरते हुए विचार करने लगा कि रानी की गलती से उसे कितने दुःख भोगने पड़े राजपाट छोड़कर जंगल में आकर में आकर रहना पड़ा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचकर गुजारा करना पड़ा. और अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा.उसी समय राजा के पास बृहस्‍पति देव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बतला‌ओ यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी .महात्मा दयालु होते है .वे राजा से बोले, हे राजा तुम्हारी पत्नी ने बृहस्‍पति देव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हु‌ई. अब तुम चिंता मत करो भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगें. देखो, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्‍पतिवार का व्रत शुरू कर दिया है ,अब तुम भी बृहस्‍पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करो तथा दीपक जलाकर कथा सुनों.उस दिन एक ही समय भोजन करना लेकिन भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर करना. भगवान तुम्हारी सब कामना‌ओं को पूर्ण करेंगें साधु की बात सुनकर राजा बोला, हे प्रभो लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा भ‌ई नहीं बचता, जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं.मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है .मेरे पास को‌ई साधन नही, जिससे उसका समाचार जान सकूं.फिर मैं कौन सी कहानी कहूं, यह भी मुझको मालूम नहीं है .साधु ने कहा, हे राजा मन में बृहस्‍पति भगवान के पूजन-व्रत का निश्चय करो. वे स्वयं तुम्हारे लिये को‌ई राह बना देंगे. बृहस्‍पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना तुम्हें रोज से दोगुना धन मिलेगा जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्‍पति देव की पूजा का सामान भी आ जायेगा.राजा ने ऐसा ही किया और उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति हो गई. इस प्रकार जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं.

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