बुद्ध पूर्णिमा पर जानिए वे अनेदेखे बौद्ध तीर्थ, जहां चरण पड़े थे गौतम के 

केंद्र सरकार ने पर्यटन स्थलों को थीम के हिसाब से बांटा है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध सर्किट है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2024 1:46 AM
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सुशील भारती

Happy Buddha Purnima : पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने पर्यटन स्थलों को थीम आधारित सर्किटों में विभाजित किया है. इनमें विदेशी मुद्रा के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध सर्किट है. बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थलों को देखने और उन्हें अपना श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए 20 से अधिक एशियाई देशों के बौद्ध पर्यटक वर्ष में कम से कम एक बार भारत अवश्य आते हैं. इससे हमारे पर्यटन उद्योग को बल मिलता है.

  युवाओं को रोजगार का अवसर और सरकार के विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्धि मिलती है. सरकार ने पर्यटकों की सुविधा के लिए अन्य सर्किटों की तरह इस सर्किट में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का काम शुरू कराया है. इसके तहत भगवान बुद्ध से संबंधित तमाम स्थलों को एक सड़क मार्ग से जोड़ने का काम प्रगति पर है. लेकिन, इस सर्किट में बुद्ध जीवन से संबंधित खासकर  मगध और बिहार के बहुत से स्थल शामिल नहीं हो सके हैं.

  बुद्ध की जीवन यात्रा के वे भी महत्वपूर्ण पड़ाव हैं, जिनमें पर्यटकों की दिलचस्पी हो सकती है. यदि उन्हें शामिल किया जाये, तो सोने पर सुहागा हो जायेगा. केंद्र सरकार ने 2022 तक पर्यटन राजस्व को 50 अरब डालर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया था. अभी इसकी समीक्षा रिपोर्ट नहीं मिल सकी है. इन स्थलों को शामिल करने के बाद इस लक्ष्य को हासिल करने में बौद्ध सर्किट का योगदान बढ़ सकता है.

बुद्ध के जीवन के कुछ अनदेखे पड़ाव

प्राग-बोधी उरूवेला

कहते हैं कि कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ जब राजमहल छोड़ कर ज्ञान की खोज में निकले थे तो सबसे पहले राजगीर होते हुए प्राग-बोधी ऊरूवेला पहुंचे थे. वह स्थल बौद्ध सर्किट में शामिल नहीं है. 

पचमह

राजकुमार सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु के राजमहल से ज्ञान की खोज में निकले तो पांच अन्य भिक्षु भी उनके साथ उसी लक्ष्य को लेकर चले थे. बौद्ध गया तक भिक्षु उनके साथ थे. लेकिन जब सिद्धार्थ ने सुजाता के हाथों से खीर खा ली तो उन भिक्षुओं ने उन्हें पथभ्रष्ट मान लिया और उन्हें छोड़ कर चल दिये. कहते हैं कि बुद्ध को छोड़ कर निकलने के बाद वे पहले देवकली पहुंचे थे. फिर उरुवेला के पास चंक्रमण, अनिमेष लोचन, रत्न मंडप, राजायतन और मुचलिंद सरोवर आदि स्थानों में गये थे. धोबिनी पहाड़ पर कुटिया बना कर वे तपस्या करने लगे थे. उनकी पांच कुटियाओं को लोग पचमठ या पचमह कहते हैं. बौद्ध धर्म में इन स्थलों का महत्व है. इससे इन्कार नहीं किया जा सकता.  कहते हैं कि बाद में वही पांच भिक्षु बुद्ध के प्रथम शिष्य बने. लेकिन, पर्यटन विभाग के नक्शे में इनका कोई जिक्र नहीं है. दरअसल, बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त होने के बाद गौतम बुद्ध मीरादपुर, परसोहदा, पननियां, घटेरा, असनी होकर मंडा पहाड़ पहुंचे थे. वहां रुकने के बाद वे भुरहा, डुब्बा और गुणेरी में रुकते हुए सिल्क मार्ग से वाया शेरघाटी डुमरिया प्रखंड के धोबिनी घाट पहुंचे, जहां पांचों भिक्षुओं से उनकी मुलाकात हुई. बुद्ध के आभामंडल को देखने के बाद उनकी समझ में आ गया कि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो चुका है और वे गलतफहमी में थे कि खीर खाने से वे भ्रष्ट हो गये थे. इसके बाद उन्होंने बुद्ध से दीक्षा ली.

आमस और सासाराम के रास्ते सारनाथ पहुंचे थे बुद्ध

बलथरवा में तीन किमी में फैले 10-12 फुट चौड़ी दीवार पर बौद्ध स्तूप की लिपियुक्त हेमाटाइट पेंटिंग्स मिली हैं, ये उस युग की निशानदेही करते हैं. कहते हैं कि वहां रुकने के बाद वे शिलाखंड में रंगीन चित्रों के पास से गुजरते हुए पांचों भिक्षुओं तक पहुंचे थे. उन तमाम स्थलों को बौद्ध सर्किट में शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन पर्यटन विभाग का उनकी तरफ ध्यान नहीं गया. कहते हैं कि भगवान बुद्ध अपने पांच प्रथम शिष्यों को साथ लेकर मल्हारी, लुटुआ, असुरैन, डुमरी, सोनडाहा होते हुए ऐतिहासिक स्थल उमगा, इसके बाद आमस और सासाराम के रास्ते सारनाथ पहुंचे थे और पंच वर्गीय भिक्षुओं को धम्म की शिक्षा दी थी. कहते हैं कि वाराणसी से वापसी के दौरान वे रफीगंज, टिकारी, मखपा, सिमुआरा, जमुआरा, नोनी, मखदुमपुर, केशपा और जहानाबाद के धराउत, धरावत कंचनपुर, धर्मपुर आदिस्थलों पर रुकते हुए भेलावर और फिर नालंदा पहुंचे थे. राजगीर से कुर्किहार, अपसढ़, इटखोरी आदि स्थलों की भी बुद्ध ने यात्रा की थी.

जब हम बौद्ध सर्किट की बात करते हैं, तो बुद्ध के जीवन के इस घटनाक्रम और उनके भ्रमण के मुख्य स्थलों पर नजर दौड़ानी चाहिए. उन्हें सर्किट में शामिल करना चाहिए. इससे बुद्ध सर्किट के दर्शनीय स्थलों में और इजाफा होगा. पर्यटकों को दिलचस्पी के कुछ और स्थल मिलेंगे. बिहार पर्यटन विभाग को चाहिए कि केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग को इन्हें सर्किट में शामिल करने का सुझाव दे. जो विदेशी पर्यटक बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थलों का नमन करना चाहते हैं, उनके लिए यह जरूरी भी है. इससे उनकी जिज्ञासा भी पूरी होगी और सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा.

…ताकि पर्यटकों का बढ़े आकर्षण 

द्ध सर्किट में जिन स्थलों को जोड़ने का हम आग्रह कर रहे हैं, उनका एक पहलू और है. सैलानियों के अंदर हमेशा कुछ नया कुछ अज्ञात तथ्यों को जानने की जिज्ञासा होती है. भारत विश्व की सबसे पुरानी मानव सभ्यता और संस्कृति की भूमि है. इसलिए आम पर्यटकों से लेकर विभिन्न विषयों में दिलचस्पी रखने वाले विदेशी पर्यटकों तक के अंदर भारत को ज्यादा से ज्यादा करीब से देखने की इच्छा होती है. इसलिए हर पर्यटन सर्किट में कुछ अनदेखे, मगर महत्वपूर्ण स्थलों को जोड़ने की निरंतर कोशिश की जानी चाहिए.

पर्यटन पर ध्यान देने की इसलिए भी आवश्यकता है कि यह 10 करोड़ से भी अधिक लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार देने वाला उद्योग है. वर्ष 2020 के कोविड महामारी काल में भारत के पर्यटन उद्योग को गहरी चोट लगी थी. उस साल केवल 27 लाख विदेशी पर्यटक ही भारत आये. इसके बावजूद पर्यटन से देश को 119.9 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ था. इसके एक वर्ष पूर्व 2019 में 1.9 करोड़ से अधिक पर्यटक भारत आये थे. वर्ष 2028 तक इस उद्योग से 512 मिलियन डॉलर की आय की उम्मीद की जा रही है. निश्चित रूप से सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रही है. पर्यटकों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं प्रदान करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन यदि छूटे हुए और पर्यटकों की दिलचस्पी की संभावनाओं वाले स्थलों को भी इस अभियान में शामिल कर लिया जाये तो इसके बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे. विशेषज्ञों का भी मानना है कि पर्यटकों की दिलचस्पी ऐसी जगहों में बढ़ी है, जो बहुत ज्यादा चर्चित नहीं हैं. पर्यटक धार्मिक और आध्यात्मिक यात्राओं के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति और भोजन का आनंद लेने के मौके भी देख रहे हैं.

‘वर्केशन’ यानी काम के साथ-साथ यात्रा करना

भारत हमेशा से एक चर्चित पर्यटन स्थल रहा है. भारत में ऐतिहासिक किले हैं, राजा-महाराजाओं के महल हैं, घने जंगल हैं और पर्यटकों के लिए विकल्पों की कोई कमी नहीं है. महामारी में एक नया ट्रेंड भी शुरू हुआ है, ”वर्केशन” यानी काम के साथ-साथ यात्रा करना. लोग पर्यटन स्थलों पर ठहर कर दफ्तर का काम करने के तरीके निकाल रहे हैं. पर्यटक अब ऐसे होम स्टे बुक करना पसंद कर रहे हैं, जहां उन्हें निजता मिले और वे घर जैसा माहौल महसूस कर सकें. हालांकि, यह देशी पर्यटन को बढ़ावा देने के निमित्त उपयोगी है. विदेशी पर्यटकों को भारत के इतिहास, धर्म और संस्कृति के अलावा जीवनशैली आकर्षित करती है. उनके सामने जितने विकल्प होंगे, उनकी दिलचस्पी उतनी ही बढ़ेगी.

वर्केशन ट्रेंड क्या है और इसका पर्यटन पर क्या प्रभाव है?

“वर्केशन” का मतलब है काम के साथ-साथ यात्रा करना. यह ट्रेंड महामारी के बाद से लोकप्रिय हुआ है, जहां लोग यात्रा के दौरान अपने काम को जारी रखते हैं, जिससे घरेलू पर्यटन को भी बढ़ावा मिल रहा है.

बौद्ध सर्किट क्या है?

बौद्ध सर्किट भारत के उन स्थलों का समूह है जो भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े हैं. ये स्थल विदेशी बौद्ध पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं और पर्यटन उद्योग के विकास में सहायक हैं.

बौद्ध सर्किट का महत्व क्या है?

बौद्ध सर्किट का पर्यटन में बड़ा योगदान है क्योंकि बुद्ध से जुड़े स्थल एशियाई बौद्ध पर्यटकों को भारत आकर्षित करते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं.

बौद्ध सर्किट में कौन से प्रमुख स्थल शामिल हैं?

बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर आदि स्थल बौद्ध सर्किट में शामिल हैं. हालांकि, मगध और बिहार के कुछ महत्वपूर्ण स्थल अभी शामिल नहीं किए गए हैं.

पर्यटन से भारत को क्या लाभ होते हैं?

पर्यटन उद्योग 10 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है और विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध करता है. सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के प्रयासों से इसमें और वृद्धि की जा रही है.

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