Happy Lohri 2022: लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी 2022 को पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाएगा. बता दें कि लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है. लोहड़ी का त्योहार है नविवाहित जोड़ों और नए जन्मे शिशुओं के लिए खास होता है. जिनके घर में कोई नए सदस्य का आगमन होता है वे उनके स्वागत में लोहड़ी और भी खास अंदाज में सेलिब्रेट करते हैं. लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था. लोहड़ी का यदि शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो ल का अर्थ लकड़ी, ओ का अर्थ उपले और ड़ी का अर्थ रेवाड़ी से है. यानि तीनों शब्द के अर्थों को मिला कर लोहड़ी शब्द बना है.
लोहड़ी का पर्व धार्मिक आस्था, कृषि उत्पादन और सर्दियों के मौसम के अंत से जुड़ा है. लोहड़ी की शाम को सभी लोग सज-धज कर एक स्थान पर इकट्ठे होकर आग जलाते हैं और इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते हैं. अग्नि देवता को खुश करने के लिए अलाव में गुड़, मक्का, तिल जैसी चीजें भी चढ़ाते और लोहड़ी की अग्नि की परिक्रमा करते हैं. जानें लोहड़ी जलाने और पूजा करने का शूभ मुहूर्त क्या है.
13 जनवरी को सायं 5 बजे के बाद रोहिणी नक्षत्र शुरू हो जाएगा.
लोहड़ी जलाने का शुभ मुहूर्त आरंभ: सायं 5:43 मिनट से आरंभ
लोहड़ी जलाने का शुभ मुहूर्त समाप्त: सायं 7: 25 मिनट तक
लोहड़ी पर जलाई जानेवाली पवित्र अग्नि में तिल अर्पित करने का रिवाज है. धार्मिक मान्यता की बात करें तो इस दिन अग्नि में तिल अर्पित करने का विशेष महत्व है. गरुड़ पुराण के अनुसार, तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुआ है, इसलिए इसका उपयोग धार्मिक क्रिया-कलापों में विशेष रूप से किया जाता है. इसलिए लोहड़ी पर अग्नि में तिल विशेष रूप से डाला जाता है. वहीं आयुर्वेदिक दृष्टि की बात करें तो इस दिन अग्नि में तिल डालने से वातावरण में मौजूद बहुत से संक्रमण समाप्त हो जाते हैं और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है. तिल का प्रयोग हवन व यज्ञ आदि में भी किया जाता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फादेमंद होता है. खास कर सर्दियों से मौसम के कारण शरीर की परेशानियों में राहत मिलता है.
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लोहड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की आराधना की जाती है.
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लोहड़ी जलाने के लिए जहां लकड़ियां इकट्ठी की गई हों उसके पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की तस्वीर स्थापित की जाती है.
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आदिशक्ति की तस्वीर के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है.
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अब सिंदूर और बेलपत्र अर्पित कर, भोग लगाएं और उन्हें नमन किया जाता है.
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भोग लगाने के दौरान श्रीकृष्ण और अग्निदेव का भी आह्वान कर उन्हें तिल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं.
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अब सूखा नारियल लेकर उसमें कपूर डाला जाता है.
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इसके बाद लोहड़ी में अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है.
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अब लोहड़ी की पवित्र अग्नि में तिल का लड्डू, मक्का और मूंगफली अर्पित किया जाता है.
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अंत में लोहड़ी की परिक्रमा की जाती है जो 7 या 11 परिक्रमा के साथ पूरी होती है.