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Holi 2022: होली से पहले क्यों किया जाता है होलिका दहन ? धार्मिक मान्यताओं के साथ वैज्ञानिक कारण भी जानें

Holi 2022: प्रत्येक साल रंगों की होली से पहले होलिका दहन किया जाता है. जिसमें पवित्र अग्नि जलाते हैं, यह रोशनी प्रहलाद की अच्छाई की जीत का प्रतीक है. लेकिन क्या आप जानते है कि होलिका दहन का दिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण होता है.

Holi 2022: हम सभी बड़ी होली से पहले छोटी होली का पर्व मनाते हैं. इस दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है, जिसमें पवित्र अग्नि जलाते हैं, यह रोशनी प्रहलाद की अच्छाई की जीत का प्रतीक है जिसमें उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका की बुराई जलकर समाप्त हो गई थी और भक्त प्रह्लाद की विजय हुई थी. लेकिन क्या आप जानते है कि यह दिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी क्यों बहुत महत्वपूर्ण होता है.

धार्मिक महत्व : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने जब अपनी साधना के बल पर शक्ति हासिल कर लिया तो उसके बाद वह चाहने लगा कि हर कोई उसकी भगवान की तरह उसकी पूजा करे. पर उसके पुत्र प्रह्लाद की आस्था भगवान विष्णु में थी. उसने अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए उसने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करना जारी रखा. इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को कई सजाएं दी पर हर बार भगवान विष्णु पर उसकी प्रबल आस्था ने उसे बचा लिया. इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई जिसमे वह प्रह्लाद के साथ जलती आग पर बैठेगी.

होलिका ने तपस्या के बल पर एक ऐसा कपड़ा प्राप्त किया था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंच सकता था. दूसरी ओर भक्त प्रह्लाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था. पर जैसे ही आग जली, प्रह्लाद ने भगवान नारायण का जाप करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया. इसी तरह प्रह्लाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई. यही कारण है होली का यह त्योहार होलिका दहन के नाम पर जाना जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.

होलिका दहन का वैज्ञानिक महत्व जानें

होली शिशिर और बसंत ऋतु के बीच में मनाई जाती है. इस समय भारत में मौसम बहुत तेजी से बदलता है. दिन में हम गर्मी का अनुभव करते हैं तो रात में ठण्ड का. शिशिर ऋतु में ठंड के प्रभाव से शरीर में कफ की मात्रा अधिक हो जाती है जबकि वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं. इस तरह यह समय बीमारियों का समय होता है. हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक इस समय आग जलाने से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है.

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वातावरण से बैक्टीरिया को दूर करती है होलिका की अग्नि

होलिका दहन करने से यह हमारे आसपास के वातावरण से बैक्टीरिया को दूर करता है. इसके साथ ही अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने से शरीर में नई ऊर्जा आती है, जो इस मौसम में हुए कफ दोष से निजात पाने में मदद करता है. दक्षिण भारत में होलिका दहन के बाद लोग होलिका की बुझी आग की राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं. ये सारी क्रियाएं शरीर से रोगों को दूर करने में बहुत मददगार होते हैं.

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