Holi 2024: क्या आप जानते है ये भयावह परंपरा, जहां पर तलवार-गोली और बम बारूद की खेली जाती है होली

Holi 2024: राजस्थान के उदयपुर में रंगों की होली नहीं खेली जाती है. यहां पर गोली-बम और बारूद चलते हैं. आखिर रंग की जगह बारूद और गोलियों से होली खेले जाने की वजह क्या है? आइए विस्तार से जानते है...

By Radheshyam Kushwaha | March 22, 2024 10:04 PM

Holi 2024: राजस्थान के उदयपुर में एक अनोखी तरह से होली खेली जाती है. इस होली में रंग नहीं गोली-बम और बारूद चलते हैं. यहां पर तलवार-गोली, बम-बारूद और तोप से होली खेलने की भयावह परंपरा है. इसे जमराबीज कहा जाता है. यह परंपरा राजस्थान के उदयपुर जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर मेनार गांव की है, जहां पर रंगों से होली नहीं खेली जाती. यहां पर तलवार-गोली और बम बारूद से होली खेली जाती है. इस दिन यहां पर खुलेआम बंदुक से गोलियां दागी जाती है.

450 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा

रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बदस्तूर निभा रहे हैं. बंदूकों की धायं-धायं और तोप की गर्जना के साथ आतिशी नजारे का यह दृश्य उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बर्ड विलेज के नाम से मशहूर मेनार गांव का है, जहां मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बीते 450 वर्षों से कुछ इसी अंदाज से होली का त्योहार मना रहे हैं. होली के दूसरे दिन जमराबीज की रात को मेनारिया ब्राह्मण समाज रणबांकुरे बन कर आतिशी नजारों के साथ होली का जश्न मनाते हैं, जिसे देखने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में लोग मेनार गांव पहुंचते हैं. ब्राह्मण समाज के युवा रियासत काल से चली आ रही इस परंपरा को आज भी आगे बढ़ा रहे है.

26 मार्च के दिन जमराबीज

जमराबीज मनाने का इतिहास चार सौ साल पुराना है. इस साल 26 मार्च के दिन जमराबीज मनाया जाएगा. सभी मेवाड़ी वेशभूषा में आते हैं. इनके पास तलवार, हथियार होते हैं. इसके बाद नृत्य का दौर भी शुरू होता है. पटाखे जलाए जाते हैं. हवा में बारूद की गंध भर जाती है. होली खेलने का ये तरीका ख़ास वजह से है. ये कार्यक्रम देर रात शुरू होता है और अगले दिन सुबह तक चलता है. इस दिन गांव का मुख्य ओंकारेश्वर चौक सतरंगी रोशनी से सजाया जाता है. जमराबीज के दिन दोपहर एक बजे के क़रीब शाही लाल जाजम ओंकारेश्वर चबूतरे पर बिछाई जाती है.

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जहां पर मेनारिया ब्राह्मण समाज के 52 गांवों के मौतबिरान पंच मेवाड़ की पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते है. फिर देर रात 9 बजे से मुख्य कार्यक्रम शुरू होता है जो भोर तक चलता है . जानकारी के अनुसार, सवा 400 साल से जमराबीज की चल रही परंपरा इतिहास कार बताते है. मेनारिया ब्राह्मणों ने मुग़लों से हुए युद्ध में विजय प्राप्त कर मुग़लों के थाने को यहां से खदेड़ दिया था, इसी खुशी में यहां के ग्रामीण पिछले सवा 400 वर्षो से जमराबीज त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है.

मुगलों से जीत की खुशी में मिली थी पदवी

मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह प्रथम ने मुगलों पर विजय की ख़ुशी में मेनार के ग्रामीणों को शौर्य के उपहार स्वरूप शाही लाल जाजम, नागौर के प्रसिद्ध रणबांकुरा ढोल , सिर पर कलंकी धारण , ठाकुर की पदवी, मेवाड़ के 16 उमराव के साथ 17 वें उमराव की पदवी मेनार गांव को दी. वही आजादी तक मेनार गांव की 52 हज़ार बीघा जमीन पर किसी प्रकार का लगान नहीं वसूला गया.

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