Holi in India: रंगों का त्योहार होली आपसी प्रेम और भाईचारे का भी प्रतीक है. होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. होली को देश के अलग-अलग हिस्सों में अनोखे अंदाज में मनाया जाता है. बिहार के मिथिला, भोजपुर और मगध में होली के अलग-अलग अंदाज हैं. पटना में कुर्ताफाड़ होली तो मगध क्षेत्र में बुढ़वा मंगल होली, वहीं समस्तीपुर में छाता पटोरी होली मनाने का प्रचलन है. गुजरात में होलिका का दर्शन करने के साथ फूल और गुलाल से होली मनाने की परंपरा है. आइए जानते है कि देश में कहां-कहां किस तरह से होली खेली जाती है.
लट्ठमार होली
लट्ठमार होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है. यह बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से मनाया जाता है. लट्ठमार होली हर साल होली के त्योहार के समय बरसाना और नंदगांव में खेला जाता है, इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए यहां आते हैं. यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है. बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है. इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं, इस दौरान इन ग्वालों को होरियारे और ग्वालिनों को हुरियारीन के नाम से सम्बोधित किया जाता है. लट्ठमार होली राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों से जुड़ा है.
खास परंपरा को रखा है जीवित
पटना में होली के विविध रूप एक साथ देखने को मिलते हैं. दूसरे शहरों से पटना में आकर बसने वाले लोग यहां भी अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. पटना में ही मिथिला, भोजपुर, मगध और अंग प्रदेश के साथ ही गुजराती, राजस्थानी और बंगाली शैली की होली देखने को मिलती है. पटना में रहने वाले मराठी, गुजराती और बंगाली परिवार स्थानीय परंपराओं के साथ ही अपने शहर की पारंपरिक होली को भी मनाते हैं. मराठी परिवार से जुड़े लोग पूरन होली तो गुजराती परिवार फूलों की होली खेलते हैं. वहीं मारवाड़ी लोग ठंडी होली मनाते हैं. मिथिला, भोजपुरी और मगध से जुड़े लोग ढोलक की धुन पर नृत्य करते हुए एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली खेलते है.
काशी की होली
धर्म नगरी काशी में होली की शुरुआत काशीवासी सबसे पहले अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ भस्म की होली खेलकर करते हैं, इस दौरान महाश्मशान पर चिता भस्म के साथ होली खेलकर पर्व की शुरुआत करते है, जिसके बाद काशी में होली के पर्व की शुरुआत हो जाती है. मथुरा, वृंदावन में फूल और लड्डुओं से होली खेली जाती है, तो वहीं बनारस में चिता भस्म से होली खेली जाती है. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की भस्म होली बड़ी ही विचित्र है, जिसे ‘मसाने की होली’ के नाम से भी जाना जाता है. मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं, जिसे मसान होली, भस्म होली और भभूत होली के नाम से भी जाना जाता है.
मराठी महिलाएं मनाती हैं पूरन होली
महाराष्ट्र में मराठी लोग भी खूब आनंद से होली मनाते हैं. महाराष्ट्र, गोवा आदि जगहों पर लोग होली को फाल्गुन पूर्णिमा अर्थात रंग पंचमी के रूप में जानते हैं, इस दौरान आसपास के घरों से लकड़ी, गोबर से बने उपले के साथ चना की बाली इकट्ठा कर नारियल डालकर होलिका का पूजन करने के बाद उसे जलाया जाता है, इसमें पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं. दूसरे दिन मिट्टी और रंग खेलने के बाद नये कपड़े पहनकर बुजुर्गों के पैर पर गुलाल रखकर उनसे आशीष प्राप्त कर अलग-अलग पकवान का आनंद लेते हैं.
मिथिला में होली मनाने की अलग परंपरा
मां जानकी की धरती मिथिला में होली मनाने की अलग परंपरा रही है. यहां पर लोग दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर फाग गाना आरंभ कर देते हैं. महिलाएं होलिका के लिए पूजन सामग्री तैयार करतीं और गीत गाती हैं. होली के दिन कुलदेवी की पूजा और उन्हें गुलाल लगाकर होली मनाई जाती है. होली के दिन से ही सप्तडोरा पर्व आरंभ होता है. बुजुर्ग महिलाएं अपनी बांह में कच्चा धाग बांधने के बाद ‘सप्ता-विपता’ की कहानी गीतों के जरिए सुनाती हैं.
बिहार में खेली जाती है कुर्ता-फाड़ होली
बिहार में कुर्ता फाड़ होली का भी खूब चलन है. ग्रामीण इलाकों में कीचड़ और गोबर से भी होली खेली जाती है. इस दौरान कई लोग एक-दूसरे के कपड़े भी फाड़ देते हैं. जिसे कुर्ता फाड़ होली कहते हैं. वही शाम में गुलाल लगाकर बड़ों का आशीष प्राप्त करने के साथ एक-दूसरे को बधाई देते हैं.
होलिका का दर्शन कर फूलों की होली
गुजरात में होलिका का दर्शन करने के साथ फूलों और गुलाल से होली मनाने की परंपरा है, इसे गोविंदा होली के रूप में भी याद किया जाता है. होली के एक दिन पहले पूरे परिवार के लोग महिलाएं, बच्चे एवं पुरुष शामिल होकर होलिका की पूजा करते हैं. अगले दिन फूल और गुलाल से होली खेलते है. नये कपड़े पहनकर लोग बड़ों के पैर पर गुलाल रखकर आशीर्वाद लेते है और लंबी उम्र की दुआ मांगते हैं. वहीं इस दिन गुजराती पकवान का आनंद लोग उठाते हैं.
होलिका की राख लगाकर शुरू होती है होली
भोजपुर होली की एक अलग मिठास है. होलिका दहन के दिन कुल देवता को बारा-पुआ चढ़ाने के साथ पूजा की जाती है, इसके बाद होलिका दहन होता है. होलिका जल जाने के बाद होली का गीत गाने के साथ उसकी चारों ओर परिक्रमा करते हैं. होली की सुबह गांव के लोग होलिका दहन की राख एक-दूसरे को लगाकर हवा में उड़ाते हैं. पुरुष एक-दूसरे के घर जाकर उनके दरवाजे पर होली के गीत गाकर शुभकामना देते हैं. दरवाजे पर होली गीत गाने का समापन करने के बाद देवी स्थान जाकर होली गीतों को विराम देने के साथ चैती गीत गाने का आरंभ करते हैं.
ठंडी होलिका की भस्म लगाकर मनाते हैं पर्व
होली के आठ दिन पहले होलाष्टक मनाया जाता है, इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता. होलिका दहन के दिन शाम में महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनने के साथ ओढऩी ओढ़ ठंडी होलिका की पूजा कर पति और परिवार की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं. वही रात में होलिका जलाने के बाद उसकी भस्म को घर पर लाकर सभी लोग लगाते हैं, इस दिन से ही नवविवाहित महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं, जो 16 दिनों तक चलती है. होली के दिन लोग बड़ों को गुलाल लगाकर उनसे आशीष प्राप्त कर कई प्रकार के व्यंजनों का आनंद उठाते हैं.
होलिका दहन के दिन भगवान की पूजा
बंगाली परिवार के लोग होलिका के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं, इसके बाद होलिका जलाने में महिला-पुरुष बच्चे सभी भाग लेते हैं. होली के दिन गुलाल-अबीर से होली मनाते हैं. घर में कई प्रकार के मिष्ठान बनते हैं. बंगाली समाज में सूखे रंग खेलने का प्रचलन है. होली के दिन एक-दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाकर बड़ों का आशीष प्राप्त करते हैं.
मगध की धरती पर बुढ़वा होली मनाने की परंपरा
मगध की धरती पर होली के अगले दिन बुढ़वा होली और झुमटा निकालने का रिवाज है. झुमटा निकालने वाले लोग होली के गीतों को गाते हुए अपने खुशी का इजहार करते हैं. मगध की होली में कीचड़-गोबर और मिट्टी का भी महत्व होता है. होली के दिन सुबह में लोग मिट्टी-कीचड़ आदि लगा कर होली का आरंभ करते हैं. मगध क्षेत्र के नवादा, गया, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद आदि जगहों में बुढ़वा होली मनाई जाती है.
समस्तीपुर में छाता-पटोरी की होली
समस्तीपुर में भिरहा और पटोरी गांव में पारंपरिक रूप से होली मनाई जाती है. वही होली के दिन छाता-पटोरी का भी प्रचलन है. यहां पर लोग होलिका जलाने के बाद अगले दिन होली मनाते हैं. रंगों से बचने के लिए लोग छाते का प्रयोग करते हुए होली के गीत गाते हैं.