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Holika Dahan Ki Katha, जीत गई भक्त प्रह्लाद की भक्ति और हारा हिरण्यकश्यप का अहंकार

Holika Dahan Katha: होलिका दहन से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलित हैं, किंतु इनमें से हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की कथा सबसे अधिक प्रसिद्ध है. आइए, इस पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं.

Holika Dahan Ki Katha: होलिका दहन का उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. यह एक महत्वपूर्ण कथा से जुड़ा हुआ है, जो प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्णित है, जिसमें भक्त प्रह्लाद, उनकी बुआ होलिका और राक्षसराज हिरण्यकश्यप का उल्लेख है.

हिरण्यकश्यप का अभिमान

प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर राजा हुआ करता था, जिसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त किया. उसने यह प्रार्थना की कि उसे न तो दिन में, न रात में, न किसी मनुष्य द्वारा, न पशु द्वारा, न धरती पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से मारा जा सके. इस अद्वितीय वरदान के कारण वह अजेय बन गया और देवताओं को पराजित कर तीनों लोकों पर शासन करने लगा.

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हिरण्यकश्यप ने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया और अपने राज्य में विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया. जो भी उनकी पूजा नहीं करता, उसे कठोर दंड दिया जाता था.

भक्त प्रह्लाद की भक्ति

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अत्यंत समर्पित भक्त था. वह अपने पिता के निर्देशों की अनदेखी करते हुए निरंतर विष्णु की आराधना करता रहा. इस पर हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ और उसने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए कई प्रयास किए. उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे प्रह्लाद को पहाड़ से गिरा दें, समुद्र में फेंक दें, या जंगली जानवरों के सामने छोड़ दें, लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बचता रहा.

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होलिका का छल

अंततः हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद ली. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. एक योजना बनाई गई जिसमें प्रह्लाद को उसकी गोद में बैठाकर आग में जलाने का प्रयास किया गया, ताकि प्रह्लाद का अंत हो सके और होलिका सुरक्षित रह सके.

होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में उठाया और अग्नि प्रज्वलित की. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका का वरदान विफल हो गया और वह स्वयं आग में जलकर राख हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित बाहर निकल आया. इस प्रकार, यह घटना यह दर्शाती है कि अधर्म और अहंकार का अंत अवश्यंभावी है और ईश्वर अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं.

होलिका दहन की परंपरा

इस घटना की याद में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन का आयोजन किया जाता है. इस दिन लोग लकड़ियों और उपलों से होलिका का निर्माण करते हैं और अग्नि जलाकर बुरी शक्तियों का नाश करने का प्रतीकात्मक संदेश देते हैं. इसके बाद, अगली सुबह होली का रंगों का त्योहार मनाया जाता है, जो प्रेम, भाईचारे और उल्लास का प्रतीक है.

होलिका दहन का संदेश

होलिका दहन हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, यदि व्यक्ति सच्चे मार्ग पर चलता है और भगवान में श्रद्धा रखता है, तो वह सदैव सुरक्षित रहता है.

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