Indira Ekadashi 2020 kab hai, Indira Ekadashi 2020: इन्दिरा एकादशी का व्रत 13 सितंबर को है. आश्विन माह में कृष्ण पक्ष एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं. इस एकादशी के श्राद्ध के दौरान पड़ने से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही स्वयं भी उस मनुष्य के लिए स्वर्ग लोक के दरवाजे खुल जाते हैं. इस बार इन्दिरा एकादशी पर एक खास संयोग बन रहा है.
व्यक्ति जब अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धा से न करके किसी दबाव में करता है या फिर किसी अयोग्य व्यक्ति द्वारा श्राद्ध कर दिया जाता है तो पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है, जिसकी वजह से श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के परिवार में हमेशा कोई न कोई समस्या बनी रहती है. ऐसे में पितृपक्ष की एकादशी के दिन यह महाप्रयोग करके आप इस समस्या को दूर कर सकते हैं.
एकादशी के दिन उरद की दाल, उरद के बड़े और पूरियां बनाएं. ध्यान रखें कि आपको इस दिन चावल का प्रयोग नहीं करना है. उसके बाद एक कंडा जलाकर उस पर एक पूरी रखकर उसमें उरद की दाल और उरद के बड़े की आहुति दें, इसके बाद अपने पास ही एक पात्र जल से भरा हुआ भी रखें. यह सब करने के बाद भगवद्गीता का पाठ करें. पाठ करने के बाद निर्धनों को भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लें.
एकादशी तिथि प्रारम्भ 13 सितम्बर की सुबह 04 बजकर 13 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त 14 सितम्बर की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक
14 सितम्बर को पारण (व्रत तोड़ने का) समय दोपहर 12 बजकर 59 मिनट से शाम 03 बजकर 27 मिनट तक
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय सुबह 08 बजकर 49 मिनट
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है.
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए. जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए. हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है. व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय सुबह होता है. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए. कुछ कारणों की वजह से अगर कोई सुबह पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए.
कभी कभी एकादशी तिथि लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है. जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए. दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं. सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए. जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं. भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha