Jagannath Puri Rath Yatra: बहन को नगर दिखाने निकले थे भगवान जगन्नाथ, जानिए पूरी मंदिर और जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास…
Jagannath Puri Rath Yatra 2020: पूरी मंदिर और जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास काफी पुराना है. मंदिर और रथा यात्रा का वर्णन वेद और पूराणों में देखने और सुनने को मिल रहा है. मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी2) में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है. कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है.
Jagannath Puri Rath Yatra 2020: पूरी मंदिर और जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास काफी पुराना है. मंदिर और रथा यात्रा का वर्णन वेद और पूराणों में देखने और सुनने को मिल रहा है. मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी2) में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है. कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है.
मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है. इसे नीलचक्र भी कहते हैं. मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है. इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं. यह भाग घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है. मुख्य मढ़ी (भवन) एक 20 फीट (6.1 मी॰) ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है.
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को लेकर देश में कई तरह की मन्यताएं है. कई जगहों पर लोग इसे पर्व की तरह मनाते है. पुरी के अलावा कई जगह यह यात्रा निकाली जाती हैं. यह देश का एकलौता मंदिर है जहां पूरे परिवार की पूजा की जाती है. रथ यात्रा का इितहास के बारे में लोग बताते है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा को नगर देखने की इच्छा हुई. भगवान से द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बैठाकर नगर का भ्रमण कराया. इसके बाद से यहां हर वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती हैं.
इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं लगाई जाती हैं और उन्हें नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं. यात्रा के तीनों रथ बनाए जाते है. रथ को श्रद्धालु खींचकर चलते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ में करीब 16 पहिए होते हैं और भाई बलराम के रथ में इस रथ से दो कम और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं. यात्रा का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में हैं. इसीलिए यह यात्रा हिन्दू धर्म में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है.
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें…
पुरी जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. वर्त्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित है. साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र या बलदेव) और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है. यह देश का एकलौता मंदिर है जहां पूरे परिवार की पूजा की जाती है.
पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते है. रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है. इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है. बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है. देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘ नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं. इसका रंग लाल और पीला होता है.
भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है. सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं. इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है.
इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है. रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है. इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं.
आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है. ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं. कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं. यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं.
गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है : गुंडीचा मंदिर को ‘गुंडीचा बाड़ी’ भी कहते हैं. यह भगवान की मौसी का घर है. इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था. कहते हैं कि रथयात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए यहां आती हैं. द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर रथ का पहिया तोड़ देती है और ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक एक मुहल्ले में, जहां देवी लक्ष्मी का मंदिर है, वहां लौट जाती हैं.