जगन्नाथ रथ यात्रा 2022: आज जगन्नाथ मंदिर में निकाली जाएगी रथयात्रा, जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
Jagannath Rath Yatra 2022: इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, यानी आज दिन शुक्रवार से हो रही है. 12 दिनों तक चलती है. भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग के कपड़ों से ढका हुआ है और इसका निर्माण लकड़ी के 832 टुकड़ों से किया गया है.
Jagannath Rath Yatra 2022: आज यानी आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि को ये जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो रही है और शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन भगवान की वापसी के साथ इस जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन होगा. इस साल रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, यानी आज दिन शुक्रवार से हो रही है. 12 दिनों तक चलती है. मान्यता है कि इस दौरान जगन्नाथ जी 9 दिनों के लिए अपनी मौसी के घर गुंडिचा माता मंदिर जाते हैं.
Jagannath Rath Yatra 2022: रथ यात्रा तिथि और समय
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जगन्नाथ शब्द दो शब्दों जग से बना है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड और नाथ का अर्थ है भगवान
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जो ‘ब्रह्मांड के भगवान’ हैं. जानें इस बार कब है जगन्नाथ रथ यात्रा…
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जगन्नाथ रथ यात्रा: शुक्रवार, 1 जुलाई 2022
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द्वितीया तिथि शुरू: 30 जून, 2022 सुबह 10:49 बजे
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द्वितीया तिथि समाप्त: जुलाई 01, 2022 01:09
हर साल क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी. तब जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा मंदिर भी गए और वहां नौ दिन तक ठहरे. ऐसी मान्यता है कि तभी से यहां पर रथयात्रा निकालने की परंपरा है. इस रथ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं है. इस रथ यात्रा के बारे में स्कन्द पुराण ,नारद पुराण में भी विस्तार से बताया गया है.
लकड़ी के 832 टुकड़ों से किया गया है भगवान जगन्नाथ के रथ का निर्माण
भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग के कपड़ों से ढका हुआ है और इसका निर्माण लकड़ी के 832 टुकड़ों से किया गया है. भगवान बालभद्र के रथ ‘तजद्वाज’ में 14 पहिए हैं और वह लाल तथा हरे रंग के कपड़ों से ढका हुआ है. इसी तरह, देवी सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’, जिसमें 12 पहिए हैं, उसे लाल और काले कपड़े से ढका गया है.
रथ यात्रा के बारे में रोचक बातें जानें
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पारंपरिक स्रोतों के अनुसार, भगवान जगन्नाथ श्रीहरि भगवान विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक हैं. जगन्नाथ के रथ का निर्माण और डिजाइन अक्षय तृतीया से शुरू होता है.
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रथ बनाने के लिए वसंत पंचमी से लकड़ी के संग्रह का काम शुरू हो जाता है. रथ के लिए एक विशेष जंगल, दशपल्ला से लकड़ी एकत्र किए जाते हैं.
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भगवान के लिए ये रथ केवल श्रीमंदिर के बढ़ई द्वारा ही बनाए जाते हैं ये भोई सेवायत कहलाते हैं. चूंकि यह घटना हर साल दोहराई जाती है, इसलिए इसका नाम रथ यात्रा पड़ा.